पिछला भाग
(जन्मदिन: 23 जुलाई) |
चंद्रशेखर आजाद को उनके जन्मदिन के दिन याद करना तो बस एक झूठा उत्सव है। होना तो यह चाहिए कि हम साल के हर दिन ऐसे लोगों को याद करें। और सिर्फ़ याद ही नहीं करें वरन इनसे प्रेरणा भी लें। जन्मदिन और शहादत के दिन किसी शहीद को याद कर लेना या एक आलेख चिपका देना तबतक महत्वहीन है जबतक हम उनके सपनों का भारत नहीं बना डालते। लेकिन यहाँ तो सालों से परम्परा बन चुकी है कि बस जन्मदिन के दिन दो फूल स्मारकों पर, चित्रों पर चढ़ा लो और ड्यूटी पूरी हो जाती है। लेकिन इन उत्सवों के बहाने हम उन लोगों को याद तो कर लेते हैं वरना देश और इसके लोगों को अब फुरसत नहीं है कि वे रिमिक्स गानों, पब, बार, डांस और पार्टी के चक्कर से बाहर निकलकर एक झलक इधर भी देख लें। इसी समाज का हिस्सा होने के चलते आइए मैं भी एक बार इस झूठे उत्सव में शामिल हो जाता हूँ। (पिछले भाग से ही खुद का लिखा हुआ)
(समाप्त)
(इस लेख को प्रस्तुत करने की याद उसी शख्स के चलते आई जो इन दिनों भगतसिंह पर अपना लेख प्रकाशित कर रहे हैं। इसलिए उनको मैं धन्यवाद देता हूँ। उम्मीद है वे उसे स्वीकारेंगे।)
bahut acchi jaankari uplabdh karane ke liye hardik dhnywad
जवाब देंहटाएंआज़ादी के दीवानों की दीवानगी देखने लायक है.
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत कर्ता का परिश्रम झलकता है प्रस्तुति में ||
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ -- आदर्शों का सतत अनुकरण आवश्यक ||