नन्दी की पीठ  का कूबड़
दामोदर धर्मानंद कोसाम्बी
(प्रोफेसर कोसम्बी द्वारा  रचित  बच्चों के लिए  शायद यह एक  मात्र  कहानी  है। यह कहानी उन्होंने अपने सहयोगी दिव्यभानुसिंह चावडा को, 1966 में , अपनी असामयिक मृत्यु  से  कुछ  दिन  पहले ही भेजी थी। यह कहानी  किसी भी  भाषा  में पहली बार प्रकाशित हो रही है।)
(गाँव के वार्षिक  मेले का अवसर  है। उसमें जानवरों की खरीद-फरोख्त का अच्छा  कारोबार  होगा। गाँव के मुखिया  का बेटा राम, सुबह-सुबह अपने नन्दी बैल  को  चराने ले जाता है। शाम  को नन्दी जानवरों की जलूस की अगुवाई करेगा। जंगल  के एक  छोर  पर तालाब  है। धीरे-धीरे  वहाँ बूढ़े पीपल के पेड़ के नीचे  राम के बहुत  से  मित्र  इकट्ठे  हो जाते हैं। वे सभी एक सवाल का जवाब  खोजने की कोशि श करते हैं - भारतीय बैलों के पीठ  पर कूबड़ क्यों होता है?)
रामः ‘नन्दी! यह बताओ कि बैलों की पीठ  पर ही कूबड़ क्यों होता है? जरा भैंस को  देखो। और  उधर घोड़े को देखो। उनकी पीठ  तो एकदम  चपटी है।’
तभी  राम का कुत्ता  मोती दौड़ता और  हाँफता हुआ  आया। मोती ने कहा, ‘भौं, भौं! क्या तुम्हें पता  है - जब मैं बिल्ली  को  पकड़ने दौड़ता हूँ तो वो अपनी पीठ  मेहराब जैसे  ऊपर उठाती है। नन्दी की पीठ के साथ भी  शायद यही हुआ होगा। उसे किसी ने डराया होगा।’ उसके बाद   मोती और  नन्दी पानी पीने चले गए।
‘टर! टर! टर!’ में ढक पानी से  कूदते हुए टर्राया। ‘हमारे बहादुर नन्दी को  डराना  काफी  कुछ  दिन  पहले शेर ने पूरा  दम लगाया फिर   भी नहीं  पाया। अब  सब  देखो - मैं कैसे  फूलकर कुप्पा होता हूँ। मुझे लगता है कि नन्दी ने मेरी तरह ही अपने कूबड़ में  हवा  भर ली होगी।’
यह सुनकर बूढ़ा नाग, पीपल के पेड़ की जड़ के बिल में  से  बाहर निकला। ‘हिस! हिस! उसने फुँफकारते हुए कहा, ‘हवा से  सिर्फ छाती  भरती है, पीठ  नहीं। मैंने एक  बार मोटा  चूहा  निगला और  फिर  मैं पूरे हफ्ते सोता  रहा। तब मेरा शरीर  भी  बीच में   फूल  गया था। नन्दी ने भी जरूर कोई मोटी चीज  निगली होगी।’
‘हा! हा! हा!’ भालू  चीखते हुए जंगल  में  से  बाहर आया। ‘नन्दी हमेशा  छोटी-छोटी चीजें ही खाता है। तुम्हें क्या लगता है-  उसने एक  बड़ा कद्दू निगला है? पिछले साल मैंने मधुमक्खियों के छत्ते से  शहद  चुराया था। उसके बाद   मधुमक्खियों ने मुझे जम कर  काटा। उससे  मेरा चेहरा  एक  तरफ बुरी तरह से फूल  गया। मुझे लगता है कि हमारे नन्दी को  भी  किसी ने काटा होगा।’
इसी बीच बंदर भी  पीपल के पेड़ से  कूदता हुआ नीचे  आया। ‘खों! खों! खों! देखो इस पेड़ के फल  खाने के बाद  मेरे नीचे के गाल  किस तरह फूल  जाते हैं। नन्दी घास चरता है। उसने जरूर उस घास को  अपने कूबड़ में  उसे छिपाया होगा। छिपी घास को  ही वो बाद में   धीरे-धीरे  कर के चबायेगा। देखो वो कैसे  घास की जुगाली  कर रहा है?’
‘तुम आखिर एक  लालची बंदर की तरह ही बोले,’ राम ने कहा। ‘देखो, नन्दी का कूबड़ हमेशा  एक-जैसा ही रहता है। फल  खाने के बाद  तुम्हारे गाल  एकदम  पिचक जाते हैं। पर नन्दी का कूबड़ बिल्कुल  एक-समान ही रहता है।’
नन्दी ने कहा, ‘मुझे लगता था कि जिस प्रकार  सभी  बैलों  के सींग  होते हैं वैसे   ही  सभी बैलों का कूबड़ भी होता होगा। कल मुझे जिला  स्तरीय प्रदर्शनी में  प्रथम  पुरस्कार  मिला। वहाँ पर यूरोप से  लाये कुछ  बैल  भी  थे। मुझे वो बैल कुछ अजीब  लगे! उनके न तो सींग  थे और  उनकी पीठ  भी  एकदम  चपटी, सपाट  थी। यूरोप के बैल  एक-दूसरे से  फुसफुसाकर कह रहे थे, ‘जरा देखो उस कुबड़े बैल  को , जिसे पहला   ईनाम  मिला है! मुझे इस सबके पीछे   मनुष्य  की ही कारिस्तानी नजर  आती है। पीठ  में  कूबड़ के कारण  बैल  पर हल  का जुआ  अच्छी तरह  बैठता है। कूबड़ के कारण ही मैं हल और बैलगाड़ी को  बेहतर  तरीके से  खींच पाता हूँ। यूरोप के बैलों ने मुझे बताया - उनके देशों में  जुताई के लिए  पहले घोड़ों का उपयोग  होता था। अब  खेतों की जुताई मशीनों द्वारा  की जाती है।’
राम ने इससे  असहमति जतायीः ‘इस पुस्तक  के अनुसार  भगवान  शिव नन्दी की सवारी कर ते हैं। भगवान ने नन्दी की पीठ  पर कूबड़ इस लिए बनाया जिससे वो उसपर झुककर  कुछ  आराम  कर सकें। देखो, इस चित्र  में  भगवान  कितनी आसानी से  नन्दी पर सवारी कर  रहे हैं। हमारे गाँव का कुलदेवता तो स्वयं  यह पीपल का पेड़ है। चलो, अब  पीपल के पेड़ से  ही नन्दी के कूबड़ का कारण  पूछते हैं।’
बूढ़े पीपल के पेड़ ने उत्तर  दियाः ‘नन्दी ने सही  ही कहा। मनुष्य  ने बैलों को  अपने लिए बनाया है। इंसानों ने ही मोती जैसे  कुत्ते बनाए हैं। इंसानों ने ही धान और  गेहूँ बनाया है। साथ-साथ, मनुष्य ने खुद को  भी  बनाया है।’
रामः ‘यह कैसे   सम्भव  है? हमारा नया घर  पिछले वर्ष बना था। कई  लोगों ने उसे मिलकर   बनाया था। उसके लिए  पेड़ों को  काटा  गया। फिर  लट्ठों और  तख्तों को लम्बाई में  काटा गया। इसके लिए कई  लोगों को मेहनत करनी पड़ी। उसके बाद   पूरे फ्रेम  को  कीलें ठोक कर  जोड़ा गया। मैंने छत पर फूस बिछाने में  अपने पिताजी की मदद  की। परंतु हमने नन्दी को कैसे बनाया? वो छोटे बछड़े जैसा पैदा हुआ था और  तभी से उसके पीठ  पर कूबड़ है। दो साल पहले मोती एकदम  छोटा  पिल्ला था। मैंने बस  इतना ही किया। माँ से  निगाह बचाकर अपनी थाली में  से मोती को  कुछ  अपना खाना  खिलाया। हमने तो मोती को  कुत्ता  नहीं  बनाया। अनाज  पैदा करने के लिए  हमने खेत  में  सिर्फ बीज बोए। इससे, बस चार महीने में हमें उसी प्रकार  का बहुत  सारा और  अनाज  मिला। हमने तो वो अनाज नहीं  बनाया।’
पीपल का पेड़ः ‘राम तुम एक  बहुत  होशियार  लड़के हो। यही सीखने का अच्छा  तरीका  है - बस  प्रश्न पूछते रहो। तब तक  प्रश्न पूछो जब तक  तुम सच की जड़ तक नहीं  पहुँचो। अब  ध्यान  से  सुनो। मैं तुम्हें वही बताने जा रहा हूँ जिसे मैंने खुद अपनी आँखों से  देखा है। आज से हजारों  साल पहले  मनुष्य  लगभग  उसी तरह रहते थे जैसे  आज तुम्हारा मित्र  बंदर रहता है। वे भोजन  और  फलों के लिए  पेड़ों पर चढ़ते। वो बेर और कुकुरमुत्ते तोड़ते। वे जमीन  के अंदर  से  कंद खोदकर  निकाल ते। मनुष्य  बिल्कुल  भालू  की तरह ही शहद  इकट्ठा करते। वे कभी -कभी भालू की तरह ही अपने पंजों से  मछलियों का शिकार   के  लिए  अन्य  जान वरोंआग  थी, न हल  और  न ही घर  और झोपडि़याँ। तब गाँव भी  नहीं  थे। फिर  ग्राम  देवता  का सवाल ही पैदा नहीं होता है। लोग  इधर-उधर  से  भोजन  एकत्र  कर अपना जीवन चलाते थे। परंतु अब  लोग  अपना भोजन  उगाते हैं।’
रामः ‘पर अगर  हम इस प्रकार जी सकते थे तो फिर  हमने क्यों भोजन  उगाया? देखो मेरे पिता  और  बड़ा भाई  खेतों पर कितनी मेहनत करते हैं। क्या हम इतनी मेहनत किए बिना जिन्दा नहीं  रह सकते?’
पीपल का पेड़ः ‘हर समय  पर्या प्त मात्रा  में  भोजन  इकट्ठा करना   सम्भव  नहीं  होता है। कभी -कभी सूखा  पड़ता है जिससे  नदी-नाले सूख जाते हैं। मछलियाँ मर जाती हैं। शिकारी  जानवर  दूर-दराज चले जाते हैं। फल  भी  नहीं  मिलते हैं। एक  बात और  है - पूरे साल भर चीजें इकट्ठी करना  सम्भव  नहीं  होता है। इंसान को  भोजन  इकट्ठा करके उसे संभाल-संजोकर रखना  सीखना  पड़ा। बारिश  के बाद  की फसल  अक्सर  बहुत  अच्छी होती है। आप पूरे साल उस फसल का अनाज  खा सकते हैं। अगर  अधिक  उपज  होगी तो उससे  ज्यादा  लोग  जीवित  रह पायेंगे। मैं अपनी सबसे ऊपर की टहनी  से पाँच बड़े गाँवों को  देख सकता हूँ। पुराने जमाने में  इस पूरे इलाके में मुझे पाँच लोग  भी  नजर  नहीं  आते थे।’
रामः ‘ठीक है। पर लोगों ने मेरे मोती जैसे  कुत्ते क्यों बनाए?’
पीपल का पेड़ः ‘पुराने जमाने में  शिकार  भी  आदमियों की तरह शिकार का पीछा करते थे। यह देख मनुष्यों ने कुछ  भेडि़यों के बच्चों को  पाला। इनमें से   अधिकदुबारा  जंगली  भेड़िये बने और  चले गए। परंतु उनमें से  कुछ  मनुष्यों के साथ रहने लगे। वे लोगों  के लिए  शिकार   बदले में  लोग उन्हें बचा हुआ मांस और  हड्डियाँ खाने को  देते। इस प्रकार जंगली  भेड़िये पालतू बने। अब  हम उन्हें कुत्ते के नाम  से  जानते हैं।’
रामः ‘मुझे खुशी  है कि लोगों ने ऐसा किया। अगर  मोती नहीं  होता तो मैं भला क्या करता? परंतु नन्दी की पीठ  पर कूबड़ किस तरह आया? शायद वो शुरू से  ही था। मुझे अभी तक इस प्रश्न का उत्तर  नहीं  मिला।’
पीपल का पेड़ः ‘मनुष्यों  के लिए  जंगली  हिरणों का लगातार  पीछा करना  काफी   कठिन  काम था। गाय-बैल  भी  जंगली जीव  थे। परंतु वो धीमी  गति  से  चलते थे। मनुष्य  मांस के लिए  उनका पीछा करते। कुछ  समय बाद उन्होंने मोती की तरह ही कुछ  गाय-बैल के बछड़ों को  भी  पालतू बनाया। इसके लिए  उन्होंने सबसे  तगड़े बछड़ों को चुना। उनमें से कुछ की पीठ  पर छोटा  कूबड़ था। कूबड़ के कारण  लोगों  को  अधिक  मांस मिलता था। इसके लिए  वो लगातार  कूबड़ वाले बछड़ों को चुनते रहे और  उन्हें भरपेट खाने को  देते रहे। इससे धीरे-धीरे  कूबड़ बड़ा होने लगा। मनुष्यों को कूबड़ वाले गाय-बैलों को पालतू बनाना  ज्यादा  आसान  लगा। गायें दूध देतीं। अब  धीरे-धीरे  लोग  शिकार   धीरे-धीरे  नन्दी जैसे, बड़े कूबड़ वाले बैल  विकसित हुए।
रामः ‘यह तो बहुत  होशियारी की बात है। पर यह अनाज  कैसे  विकसित हुए?’
पीपल का पेड़ः ‘सदियों पहले मैंने लोगों  को  भूख  मिटाने के लिए  पत्ते और  घास के बीज खाते हुए देखा था। इसके अलावा   खाने को  कुछ  और  नहीं  था। धीरे-धीरे  उन्होंने सबसे  मोटे बीजों को छाँट कर  अलग  किया। सभी घासें एक -जैसी नहीं होती हैं। लोगों ने पाया कि अच्छी घासें सबसे मुलायम  और  नर्म मिट्टी  में  ही अच्छी उगती हैं। मुलायम मिट्टी सभी जगह  नहीं  मिलती है। परंतु अगर  कंद को  एक  नुकीली छड़ से  खोदकर निकाला कारण  लोगों  ने मोटी घास के बीजों को  बोने के लिए  जमीन  में  गड्ढे खोदने शुरू किए। लोग अगली फसल  के लिए  हमेशा  सबसे मोटे बीज ही बोते।’
रामः ‘हम अनाज  के बीजों को  तो इस तरह नहीं  बोते हैं। हम हल  से  खेत  जोतते हैं। लोगों ने हल का उपयोग  करना कैसे  सीखा?’
पीपल का पेड़ः ‘इसे  सीखने में  उन्हें बहुत  समय लगा। पहले  उन्होंने नुकीली छड़ से जमीन  की सतह  को  खुरचा। परंतु उससे कोई खास फायदा  नहीं  हुआ। वैसे, कच्चा  अनाज  खाने में  बहुत  अच्छा  नहीं होता। इसके लिए  इंसान ने आग  की जानकारी  हासिल की। शुरू में  उन्हें जंगल  की भीषण आग  से  डर  लगता था। वे आग और  जंगली  जीवों को  देखकर डर से भागते थे। फिर  उन्होंने खाना  पकाना  सीखा। वे आग  से  मिट्टी  के बर्तनजमीन  की गहरी जुताई के लिए  उन्हें ऐसी चीज  की जरूरत  थी जो अधिक  ताकत  से  खींच सके। तब उन्होंने हल  के टेढ़े फल  को  खींचने के लिए  बैलों  का इस्तेमाल करना  शुरू किया। हल  को  खींचने के लिए  मनुष्य  को बड़े जानवरों की जरूरत  थी। इसलिए  उन्होंने जानवरों को मांस के लिए  मारना बंद  किया। इस प्रकार उन्हें नन्दी जैसे  बढि़या और  ताकतवर बैल  मिले।
रामः ‘जरा कल्पना  करो मेरे नन्दी को  मारने की! कितनी बेवकूफी की बात है। पर अभी आपने मनुष्य  द्वारा  खुद अपने निर्माण  का जिक्र किया था।’
पीपल का पेड़ः ‘मैंने अभी  तुम्हें बताया कि किस प्रकार मनुष्य  को  आग  ने भयभीत  करना बंद  किया। शुरू में  लोग  आग को  भगवान  के रूप  में  पूजते थे। धीरे-धीरे  इंसानों ने आग बनाना  सीखी। इसके लिए  उन्होंने दो सूखी  लकडि़यों को आपस में   रगड़ा। फिर  उन्होंने मुझे और  नन्दी को  पूजना शुरू किया। हमने मनुष्य  को भोजन  दिया। मेरे फल  अभी  भी खाने योग्य   हैं। परंतु अब  लोगों को  मेरे छोटे भाई  अंजीर के फल  ज्यादा  स्वादिष्ट  लगते हैं। अंजीर आकार  में  बड़ी और  मीठी होती हैं। वैसे अंजीर का पेड़ छोटा  और  कमजोर  होता है। उसे अच्छी मिट्टी  की जरूरत  होती है। और साथ में  ढेर  पानी की भी। जंगल  की सफाई, कटाई हुई। लेकिन मैं भाग्यवश बच गया। कई  बार जंगल में  आग  लगी और  मेरे परिवार  के तमाम सदस्य मारे गए। मैं कई  बार बाल-बाल बचा। लोग  आज भी  आग, नन्दी और  मेरी पूजा करते हैं। पर अब  यह पूजा-उपासना कम हो रही है। हमने मनुष्य  को  नहीं  बनाया। मैं यह बात स्पष्ट  करना 
रामः ‘फिर किसने बनाया?’
पीपल का पेड़ः ‘वर्तमान मनुष्य  को  खुद उसने ही बनाया है। शुरू में  वो छोटा  और  बंदर जैसा अच्छा  दोस्त  था। परंतु वो निस्सहाय था। आग  के बाद  उसने धातुओं को  खोजा। पहले तांबा। फिर  लोहा। उससे पहले मनुष्य  ने पत्थरों के औजार बनाए। लोगों  ने शिकार   के लिए  तीर-कमान बनाए। उन्होंने भोजन  को  संचित कर  सुरक्षित रखने के लिए टोकरियाँ और चमड़े के थैले बनाए। मछलियाँ पकड़ने के लिए  जाल  बनाए। इस प्रकार लोगों को  अधिक  भोजन  मिल पाया। खेती-बाड़ी की कठिन  मेहनत ने मनुष्य  को  बलवान  बनाया। लोग  अपने सिर  पर भारी  बोझ  ढोने लगे। इस कारण  लोग सीधे  खड़े होकर चलने लगे। लोगों ने झोपडि़याँ और  घर  बनाये। वे कपड़े पहनने लगे। पुराने जमाने में  कई  बड़े-बूढ़े मनुष्य  भी  मेरी छाँव तले  नंगे रहते थे। बिल्कुल  वैसे ही  जैसे  तुम बचपन  में  नंग-धड़ंग घूमते थे।’
रामः ‘गर्मी के दिनों में  मुझे अभी  भी कपड़े बिल्कुल  नहीं  सुहाते हैं। परंतु मेरी माँ मुझे नंग-धड़ंग दौड़ने से  मना करती हैं। अब  मुझे आप एक  बात और  बतायें। यह भगवान  कब आये?’
पीपल का पेड़ः ‘पहले लोगों ने चीजों  के उगने के बारे में   जाना। उन्होंने उगती चीजों को  अपने उपयोग  के लिए  इकट्ठा किया। इससे  लोगों को  लगा कि सभी  चीजों को कोई महान  माता  जन्म  देती है। हम अभी भी कहते हैं, ‘पृथ्वी हमारी माता है।’ फिर  इंसान ने इकट्ठी की गई चीजों से  कहीं ज्यादा  चीजें खुद बनाना  सीखीं। तब उसने सोचा, ‘मुझे भी  किसी ने बनाया होगा?’ तब इंसानों ने भगवान  को  जन्म  दिया। लोगों ने कहा, ‘भगवान ने हर चीज  बनायी है।’ परंतु मुझे असली  सच पता  है। मैं मनुष्य  के सभी भगवानों से   अधिक को  स्वयं  खुद का निर्माण  करते हुए देखा है। उसे अभी इस काम को  और  आगे मनुष्य  जाति अन्य  लोगों के साथ बहुत  क्रूर  व्यवहार  करता है।’
 
 
प्रख्यात गणितज्ञ, सांख्यिकीविद,इतिहासविद डी. डी. कोसाम्बी की यह बाल कहानी नेट पर प्रस्तुत आपने बहुत बड़ी सेवा की है ,चंदन कुमार मिश्र। आभार ।
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन कहानी. सही मायने में बालसाहित्य को दिशा देती हुई कहानी. हैरानी की बात है कि 46 वर्ष बाद भी कहानी हिंदी बालसाहित्य के विमर्श—क्षेत्र का हिस्सा न बन सकी. मैं चंदन भाई और रविकुमार दोनों का बेहद आभारी हूं जिन्होंने इस कहानी से परचाया.
जवाब देंहटाएंडी. डी. कोसाम्बी की यह बाल कहानी ज्ञान में अभिवृद्धि करती है.....!
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा शेयर की गई कहानी नन्दी की पीठ का कूबड़ बहुत ही अच्छी लगी आगे भी ऐसी पोस्ट करते रहे।
जवाब देंहटाएंMaurya Vansh
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