शनिवार, 8 अगस्त 2015

स्वतंत्रता दिवस पर बच्चों के कुछ और भाषण (हिन्दी और भोजपुरी में)

दो साल से ज़्यादा बीत गए यहाँ कुछ लिखे। ऐसा नहीं है कि लिखा नहीं जा रहा था, फेसबुक पर तो लगातार कुछ न कुछ लिखते रहे, यहाँ नहीं लगा सके। ब्लॉग जगत से दूरी बनी रही। 15 अगस्त, 2012 के भाषण यहाँ सबसे ज़्यादा पढ़े गए हैं। आज फिर हम कुछ भाषणों को प्रस्तुत कर रहे हैं, जो 2013, 2014 और हाल में इसी आगामी स्वतंत्रता दिवस के लिए लिखे गए हैं। इस बार दो भोजपुरी भाषण भी दिए जा रहे हैं। 

1

प्यारे साथियो! 15 अगस्त 1947 के बाद 66 साल गुजर गए हैं। हर साल इस दिन हम झंडा फहराते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं, भाषण देते हैं, नाचते गाते हैं, यही हमारी परंपरा हो गई है। लेकिन आजादी जन्मदिन की पार्टी नहीं होती। यह दिन हमें बताता है कि हम आजाद हैं। यह बात एक मायने में जरूर सही हो सकती है लेकिन क्या सचमुच हम आजाद हैं? आदमी का इतिहास बताता है कि ग़रीब और कमज़ोर हमेशा रईसों और ताककवरों के गुलाम रहे हैं। यह बात भारत के लिए भी सच है। आजादी की कीमत उस लड़के से पूछकर देखिए, जो 15 अगस्त और 26 जनवरी को स्कूल के किसी कार्यक्रम या आयोजन में जाकर खुश होने की जगह सड़कों पर 1-2 रुपए में झंडे बेचता है। 

एक ठुमके के 1 करोड़ कमाने वाले फिल्मी सितारे, एक बल्ले को हवा में हाँकने पर लाखों रुपए लेने वाले खिलाड़ी और करोड़ों रुपए अपनी पोती के नाम पर एक दिन में पानी में बहा देने वाले सहारा और 5 लोगों के रहने के लिए गरीबों के खून से करोड़ों की बिल्डिंग बनवा लेने वाले मुकेश अम्बानी, इन सबके लिए तो आजादी पैरों की जूती है। और यही लोग अब हमारे देश में बच्चों और युवाओं के आदर्श बन रहे हैं। भगतसिंह जैसे शहीदों की चमक फीकी पड़ती मालूम रही है। जरूरत है भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों को आदर्श के रूप में अपनाने की। 

भगतसिंह जैसे व्यक्ति को आदर्श बनाना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि उनकी कहानी सुनाने भर से शासक डर जाते हैं। हाल में महाराष्ट्र में एक लड़की द्वारा भगतसिंह की गाथा गाने पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया था। जिस व्यक्ति की कहानी से ही सरकारें डर जाती हों, लुटेरे दमन शुरू कर देते हों, वह व्यक्ति जब इस देश और दुनिया के लाखों करोड़ों युवाओं और बच्चों का आदर्श बन जाएगा तब जाकर यह दुनिया बेहतर जगह बन पाएगी। 

यह ध्यान रहे कि सैम की जगह श्याम के शासक बन जाने भर से देश आजाद नहीं हो जाता, यह तो सिर्फ कुर्सी की अदला बदली है। यही तो 15 अगस्त 1947 को भी हुआ।

जिन्होंने लूटा मुल्क को सरेआम
उन लफंदरों की तलाशी कोई नहीं लेता
गरीब लहरों पर पहरे बिठाए जाते हैं
समंदरों की तलाशी कोई नहीं लेता

मेरी बातों को नकारात्मक न मानकर सोचने लायक माना जाए, यह मेरा अनुरोध है। हमें दुनिया से हर किस्म के शोषकों का खात्मा करना होगा। वरना यह आजादी झूठी ही रहेगी। हालात तो यह है कि 

डाढ़ी जड़ अब गाछ के बाटे रहल बटोर।
आखिर फल कइसे मिली, पत्ता पत्ता चोर।।

मैं इतना कहकर अपनी बात समाप्त करता हूँ कि ध्यान रहे आजादी अभी अधूरी है। 

(2013)

2


उपस्थित सज्जनो और मेरे साथियो! आज हमारा देश आज़ादी की 67वीं वर्षगाँठ मना रहा है। सबसे पहले मैं अपने विद्यालय द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आपका स्वागत करता हूँ। 

आज़ादी का जश्न मनाना कितना आसान है! लेकिन इस आज़ादी को पाना कितना मुश्किल! आज़ादी पाने की क़ीमत क्या है, यह तब पता चलता है जब हम आज़ादी के दीवानों की कहानियाँ पढ़ते हैं। भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, शिव वर्मा जैसे क्रांतिकारियों की दास्तान दिल दहलाने वाली है। भूख हड़ताल में जतिनदास के प्राण चले गए, हैवानों और साम्राज्यवादियों के खिलाफ़ लड़ने वाले भगवतीचरण वोहरा बम का परीक्षण करते समय चल बसे, भगतसिंह मात्र साढ़े तेईस साल की उम्र में फाँसी चढ़ गए, खुदीराम बोस मात्र 19 साल की उम्र में फाँसी पर लटका दिए गए, कई क्रांतिकारियों को काले पानी की सज़ा दी गई, तो कई मानवता के दुश्मनों की गोली का शिकार हो गए। क्रांतिकारी हमसे विदा लेते वक़्त कहते थे - 

गोली लगती रही खून गिरते रहे
फिर भी दुश्मन को हमने न रहने दिया
गिर पड़े आँख मूँदे धरती पे हम
पर ग़ुलामी की पीड़ा न सहने दिया
अपने मरने का हमको न ग़म साथियो
कर सफ़र जा रहे दूर हम साथियो!

हमारे क्रांतिकारी अंग्रेजों की हैवानियत का शिकार होते रहे और एक दिन हमें आधी अधूरी आज़ादी मिल गई। वह दिन था 15 अगस्त 1947, जिस दिन को भारत का स्वतंत्रता दिवस कहते हैं। लेकिन भगतसिंह ने कहा था कि उनकी लड़ाई अंग्रेजों तक खत्म नहीं होगी। यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र का, एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का शोषण करता रहेगा।

हमें भगतसिंह के कथन पर सोचना ही होगा और उनके सपनों को हकीकत में बदलना होगा। साधारण जनता के शोषकों की गहरी नींद को तोड़ना ही होगा। भगतसिंह ने 8 अप्रैल 1929 को एसेंबली में बम फेंकते हुए कहा था कि बहरों को सुनाने के लिए धमाके की ज़रूरत होती है। ऐसे हज़ारों लाखों भगतसिंह की ज़रूरत इस दुनिया को है।

चलते चलते भगतसिंह का वह नारा जो उन्होंने एसेम्बली में लगाया था -

इंकलाब ज़िंदाबाद!

(15 अगस्त 2013 के लिए लिखा...)

3

उपस्थित सज्जनो और साथियो! आज हमारा देश आज़ादी का जश्न मना रहा है। 1947 के बाद 68 साल पूरे हो गए हैं। अंग्रेजों की लम्बी ग़ुलामी से हमारा देश यूँ ही आजाद नहीं हुआ। इसमें लाखों हिन्दुस्तानियों ने अपना सब कुछ गँवा दिया। आज इस देश में ऐसी ताकतें बढ़ने लगी हैं, जो आपस में मेलजोल की जगह फसाद और नफरत को बढ़ावा देती हैं। आपस में धर्म और संप्रदाय के नाम पर लड़ाने का इनका इरादा हम कामयाब नहीं होने दें, आज यह तय करें।

देश में कुछ संगठन और राजनीतिक दल नफरत फैलाकर आमलोगों की रोज़ की जरूरतों से ध्यान हटाना चाहते हैं। दुर्भाग्य है कि ऐसे ही लोग कई ऊँची जगहों पर पहुँच गए हैं। हमारा मकसद ऐसी ताकतों को कमजोर करना होना चाहिए। आए दिन मानवता की बात करने और मेलजोल को बढ़ाने वाले लोगों को उनलोगों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है, जिनका आज़ादी और आज़ादी की लड़ाई से कोई रिश्ता ही नहीं रहा है। जो अंग्रेज़ी सत्ता से मिले हुए थे, उनके भक्त देश में धर्म के नाम पर झगड़े, दंगे करवाते रहते हैं।

आज इस अवसर पर हम सब यह शपथ लें कि ऐसी फासीवादी ताकतों से देश और दुनिया को बचाए रखेंगे।

जय एकता! जय मानवता!

(6.8.2015)

भोजपुरी भाषण 

1

बिद्यालय में आइल हमार देसवासी भाई बहिन लोग! आजे के दिन हमनी के देस आजाद भइल रहे, एही से हर साल पनरे अगस्त के हमनी सभ ए दिन के अपना आजादी के तेवहार के रूप में मनाइले। हई आकास में लहरात तिरंगा झंडा आजादी के निसान ह।

हमनी आज के दिन ई कसम खाए के कि अपना देस के, आजादी के आ धरती के रक्छा करेम। अतने कह के हम आपन बात खतम करs तानी कि हमनी के तिरंगा झंडा हमेसा अइसहीं लहरात रहे।

2

आजादी के ए महान परब पर रउरा लोगन के हम स्वागत करs तानी। आज हमनी के देस के आजादी के 68 साल पूरा हो रहल बा। अंगरेजन के जुलुम आ अतेयाचार से तबाह होके देस के बहादुर लोग दू स बरिस ले लगातार लड़ाई लड़ल आ अन्त में पनरे अगस्त उनइस सौ सैंतालिस के आजादी के सपना पूरा भइल। बाकिर आजो ए देस के करोरन लोग खातिर आजादी एगो सपने बा। हमनी के ई सपना पूरा करे के पड़ी। अपना महान सहीद लोग के जान लगा के मिलल ए आजादी के सहेज के राखे के पड़ी ना तs फेर आजादी खतरा में पड़ जाई। ए देस के जवान लोग से हमार हान जोड़ के निहोरा बा कि आजादी के मोल समझीं आ ओकरा खातिर आपन जान देवे के पड़े तबो ओकरा के सहेज के राखीं। अतना कह के हम आपन बात खतम कर रहल बानी।

आजादी अमर रहो!
आजादी अमर रहो!
(2014)