गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

स्वामी विवेकानंद का दूसरा पक्ष


स्वामी विवेकानंद वह पहले प्रसिद्ध व्यक्ति हैं, जिनसे मेरा परिचय हुआ और मैं इन्हें जितना संभव हुआ, पढता गया। तब मैं नवीं कक्षा में था। यहाँ विवेकानंद के बनाये हुए सुंदर चेहरे से बाहर कुछ देखने की कोशिश की है मैंने। विवेकानंद के भक्तों से गुजारिश है कि खिसियाने से पहले पढ लें इसे। यहाँ कई बातें अप्रत्यक्ष रूप से विषय से संबंधित हैं, भले वे अलग दिखें या थोड़ी लंबी हो जाएँ।

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

अब तो अपना असली नाम भी भूल गया हूँ... (भोजपुरी से हिन्दी में अनूदित)


अभी आब ता आपन असली नाम भी भुला गईल बानी... शीर्षक से एक व्यंग्य या लघुकथा या जो कहें, पढा। सोचा कि इसे पढवाते हैं। प्रस्तुत है इसका हिन्दी अनुवाद। हालाँकि इसका अधिकांश हिस्सा हिन्दी में था, फिर भी अनुवाद करने की कोशिश की है। 

शहर में पिछले १० दिन से एक मनोचिकित्सक की बड़ी धूम मची थी, हर आदमी के मुँह से एक ही बात कि अगर आप डिप्रेशन के शिकार हैं, तो इस मनोचिकित्सक से ज़रूर मिलें, यह मनोचिकित्सक आपकी समस्या २ मिनट में ठीक कर देगा, आपको अवसादमुक्त कर देगा। और यह बात झूठी भी नहीं थी, पिछले १ महीने से जो भी डिप्रेशन का शिकार उसके पास गया उसे उसने २ दिन में ठीक कर दिया। 

यह सब सुन और जान कर एक आदमी सुबह से उसके क्लिनिक में अपना इलाज करवाने के लिए भूखा-प्यासा लाइन में लगा रहा। भूख के मारे उसकी हालत ख़राब हो गई तब जाकर दिन में २ बजे उसका नंबर आया। गया डॉक्टर की केबिन में, कुर्सी पर बैठा।