मंगलवार, 31 मई 2011

वरदान का फेर (नाट्य रुपांतरण, भाग -2)

वाचक: दोनों जून 1-1 कटोरा साबूदाना उबालकर महात्माजी पीते थे। आइए हम देखते हैं कि वे किस तरह नित्य मूर्खोपनिषद् का पाठ करते हैं। (महात्माजी के हाथ में एक मोटी पुस्तक है। वे पढ़ते हैं।
ॐ नमो मूर्खेश्वराय मूर्खतां देहि मे सदा।
वंदे मूर्खोपनिषदम् ग्रंथम् पठति मूर्खशिरोमणि:॥

रविवार, 29 मई 2011

ये टाई काहे को पहनता है भाई?

कल क्या टाई के बगैर गंभीर पत्रकारिता नहीं हो सकती? शीर्षक से एक आलेख देखा तो एक कहानी याद आ गयी। जरा ध्यान से सुनिएगा।
     यह कहानी ठीक से याद नहीं। लेकिन गालिब के बारे में है। एक बार गालिब को बादशाह ने भोजन पर बुलाया। गालिब ठहरे गरीब आदमी। कोई शाही या राजसी वस्त्र तो था नहीं उनके पास। इसलिए पहुंच गए सीधे अपने सादे कपड़ों में। द्वारपाल ने दरवाजे से भगा दिया। गालिब कहते रहे कि मैं गालिब हूं और मुझे भोजन पर बुलाया गया है।