निर्मल हृदय की प्रार्थना
निष्कपट मन की भावना
कोई नहीं सम्भावना
फिर भी तुम्हारी साधना
यह कर रहा संसार है!
ईश्वर तुम्हें धिक्कार है!
ये चीख कैसी आज सुन
तनिक ये आवाज सुन
ले सुनाता, राज सुन
तेरा ही ये व्यापार है!
ईश्वर तुम्हें धिक्कार है!
कहीं तंत्र है, कहीं मंत्र है
चमचा तेरा स्वतंत्र है
क्या खूब! ये षडयंत्र है
हर जगह अत्याचार है!
ईश्वर तुम्हें धिक्कार है!
है एक मेरी चाहना
हो अगर मुझसे सामना
एक प्रश्न मुझको पूछना
क्या दिल में तेरे प्यार है?
ईश्वर तुम्हें धिक्कार है!
24 अप्रिल 2010 को लिखी काल्पनिक सत्ता के प्रति यह मेरी एक कविता है जो अधूरी रह गई थी। जब कविता लिख रहा होता हूँ और किसी किस्म का विघ्न पैदा होता है या कोई बीच में आकर अवरोध पैदा कर देता है तब वह कविता अधूरी ही रह जाती है। फिर उसे शायद ही पूरा कर पाता हूँ या कर पाऊंगा।
लाखों-करोड़ों लोग कितनी श्रद्धा और निर्मल हृदय से भगवान की पूजा, जप-तप-व्रत-पाठ-नमाज-रोजा जाने क्या-क्या करते हैं लेकिन होता क्या है?
जिसने अवरोध पैदा किया शायद उसीने यहां लगाने की प्रेरणा दी है (और कोई नहीं आप खुद).
जवाब देंहटाएंअमिताभ बच्चन भी याद आये ||
जवाब देंहटाएंधार्मिक जगत में ईश्वर या जगत की रचना करने वाले को निर्दयी भी कहा गया है.
जवाब देंहटाएंसमाज का यह हाल ईश्वर ने नहीं किया फिर क्यों धिक्कार है ?
जवाब देंहटाएंकविता तो पूरी है। इस का हर चरण अपने आप में पूरी कविता है। आप को अधूरी लगती है तो फिर समझ लो नई कविता की तैयारी है।
जवाब देंहटाएंहजारों-लाखों लोग तरह-तरह के तर्कों से अपने दिमाग पर गुरूर करते हुए ईश्वर-सत्ता को नहीं स्वीकार करते... अपने स्वार्थ पूरे करने निमित्त छल, कपट, मिथ्या-व्यवहार और भ्रष्टाचार आदि जाने क्या-क्या करते हैं...लेकिन होता क्या है... प्रायः ऐसे निर्भीक लोग ही दुराचारों और अनाचारों में प्रवृत्त मिलते हैं... यदि ईश्वर-भय या ईश्वर-आस्था के कारण कोई अपनी ऊर्जा को पाषाण पूजने में व्यर्थ कर रहा है तो क्या बुरा है? .. वह किसी का गला तो नहीं काट रहा, किसी के अनिष्ट में तो नहीं लगा हुआ.
जवाब देंहटाएंएक बार फिर :
जवाब देंहटाएंयदि ईश्वर-भय या ईश्वर-आस्था के कारण कोई अपनी ऊर्जा को पाषाण पूजने में व्यर्थ कर भी रहा है तो क्या बुरा है?
मैंने जब से नियमित 'संध्या' ईश्वर-भजन छोड़ा है... दैनिक-चर्या तो बिगड़ी ही, साथ ही मनोबल में पहले की बनिस्पत कमी भी आयी है.
जवाब देंहटाएंमैंने जब से नियमित 'संध्या' ईश्वर-भजन छोड़ा है... दैनिक-चर्या तो बिगड़ी ही, साथ ही मनोबल में पहले की बनिस्पत कमी भी आयी है.
जवाब देंहटाएंप्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंमेरे मामले में तो उलटा लग रहा है। मैंने जब से ये सब छोड़ा है तब से मनोबल में पहले की तुलना में वृद्धि हुई है।
चन्दन जी,
जवाब देंहटाएंअपवाद हमेशा रहते हैं..... क्या आप अपवाद तो नहीं?
प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंमैं क्यों? शायद सारे लोग जो ईश्वर में यकीन नहीं करते ऐसे ही होते हों। अधिकांश तो होते ही हैं।
कृपया संशय दूर करें :
जवाब देंहटाएंशायद जिसे हम 'मनोबल' समझ रहे हों वह कहीं हमारे 'अहंकार' का गुबार तो नहीं?
:)
चन्दन जी,
माना आपकी आयु पूरे विश्व में सबसे अधिक हो.. तो भी क्या ऐसे में आप अपने से किसी को बड़ा मानेंगे? अथवा बड़े का दर्जा देंगे?
ईश्वर को क्यूं धिक्कार है? दुनिया की यह हालत है इसमें ईश्वर का क्या दोष है। ईश्वर बेचारा हो तो कुछ करे। इस साल अमरनाथ यात्रा के दौरान अब तक 45 लोगों की मौत हो चुकी है। धर्म के दुकानदार अपनी दुकानदारी चमकाने के लिए लोगों को बहकाने का तगड़ा इंतेजाम किये हुए हैं। कोई मरे तो मरता रहे उनकी कमाई पर सेंध नहीं लगनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंआदरणीय प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंमनोबल और अहंकार अलग हैं।
मनोबल का ईश्वर आदि से कोई संबंध शायद नहीं है, जहाँ तक मैं समझता हूँ। मनोबल हमारे दैनिक व्यवहार, मानसिक हालत, भौतिक यानि मौसम पर भी निर्भर है। कभी-कभी शरीर का असर भी शायद इसपर पड़ता होगा। अपने व्यक्तित्व का अलग अस्तित्व महसूस करना अहंकार नहीं है। अपनी पहचान तो होनी ही चाहिए ताकि हम आपको या आप हमको पहचान सकें।
अहंकार शायद ही कोई अच्छा काम कराता है लेकिन मनोबल का अर्थ हम हमेशा सकारात्मक अर्थ में ही लेते हैं।
अगला सवाल और खुलकर हो तो कुछ कह पाऊंगा।