सात साल पहले मैं दसवीं कक्षा में पढ़ता था। स्वतंत्रता दिवस से पहले 31 जुलाई 2004 को एक गीत लिखा जो मशहूर गीत ‘कर चले हम फ़िदा’ की तर्ज पर था। शुरु-शुरु में तो लिखनेवाले प्रसिद्ध तर्जों पर ही गीत लिखा करते हैं, ऐसा मैं समझता हूँ। उसी तरह मैंने भी यह गीत लिख दिया। 15 अगस्त 2004 को इसे गाना था। अब तो गीत नहीं गाता, बस सुनने का शौक है। पूर्वाभ्यास(रिहर्सल) के समय इसे गाने के दौरान ‘कर चले हम फ़िदा’ की पँक्तियाँ जुबान पर अपने आप आ जाती थीं। गीत कुछ है ही इस तरह का कि अगर आप गाएँ तो ‘कर चले हम फ़िदा’ बीच में आ ही जाता है। मैं अपनी लिखी कविताओं और गीतों में बहुत कम को ही पसन्द करता हूँ लेकिन आज भी यह गीत मुझे पसन्द है और शायद हमेशा रहेगा। पढ़िए वह गीत और बताइए कैसा लगा? यह गीत भी, मानकर चलिए उसी दृश्य पर है जिसपर ‘कर चले हम फ़िदा’ फिल्माया गया है। ध्यान रहे यह आज से सात साल पहले लिखा था। इसलिए इसमें कोई सुधार नहीं करनेवाला। लीजिए पढ़िए वह गीत।
कर सफ़र जा रहे दूर हम साथियों।
माँ न रोवे तू करना करम साथियों।
कर सफ़र ……2
गोली लगती रही ख़ून गिरते रहे
फ़िर भी दुश्मन को हमने न रहने दिया
गिर पड़े आँख मूँदे धरती में हम
पर गुलामी की पीड़ा न सहने दिया
अपने मरने का हमको न गम साथियों
माँ न रोवे…
कर सफ़र …
जान देने की बारी अयेगी जब
पीछे हटना नहीं ज़िंदग़ी में कभी
जाँ भी देना वतन पे न तू भूलना
मरते-मरते ये हम कह रहे हैं अभी
मरते दम तक सहा गोली बम साथियों
माँ न रोवे…
कर सफ़र …
देश मुनियों का यह न अंधेरे में हो
तुम जलाते ही रहना नये दीप को
ख़ुश रखना सबों को किसी भी तरह
मोती ही लेना तुम फेंक के सीप को
तुम कभी रहने देना न तम साथियों
माँ न रोवे…
कर सफ़र …
भूलना न कभी बात ये तुम सभी
हम जनम लेते हैं सिर्फ़ भारत में ही
प्यार करना सबों से न नफ़रत कभी
क्योंकि इससे पड़ोगे मुसीबत में ही
यहीं लेंगे जनम हरदम साथियों
माँ न रोवे…
कर सफ़र … 2
माँ न रोवे …2
पहली रचना प्यारी रचना ||
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ||
बहुत-बहुत बधाई ||
रविकर जी,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद। लेकिन यह रचना मेरी पहली रचना नहीं है।
चंदन जी,
जवाब देंहटाएंआप सुंदर गीत और कविताएँ लिख सकते हैं। अभ्यास क्यों छोड़ दिया?
आदरणीय द्विवेदी जी,
जवाब देंहटाएंअभ्यास छोड़ा तो नहीं लेकिन अब बहुत कम लिखता हूँ। पहले तो जानबूझकर लिखता था। अब खुद कविता या गीत आएँ तभी बाहर उतरते हैं। वैसे कभी-कभार अभी भी विचारों को शब्द देकर जान-बूझकर लिख देता हूँ।
पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा ....शुभकामनायें
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