बिल्ली ने कहा ।
दूध नहीं पिउंगी,
दूध में मिलावट है,
पानी मिलाया गया है उसमें
और वो भी, वो पानी
जिसमें पहले से मिलावट है ।
कल रात
काफी देर तक
गुनगुनाता रहा एक मच्छर
मैंने पूछा – काटते क्यों नहीं ?
मच्छर ने जवाब दिया –
अब नहीं काटूंगा कभी
खून में मिलावट है,
आदमी का खून
आदमी का नहीं लगता ।
चूहा भी बैठा रहता है
शांत
सिर्फ़ पतले प्लास्टिक से काम चलाता ।
किताबों को नहीं काटता, कुतरता
दाँतों से ।
उसकी शिकायत है
किताबों में लेखक नहीं,
सिर्फ़ कागज और स्याही दिखते हैं ।
ये क्या है ||
जवाब देंहटाएंकहाँ से मारा ||
चोरी दिखती है ||
बहुत खूब ||
मजेदार ||
सही चित्रण ||
बधाई चन्दन जी ||
आदरणीय --
हा हा हा हा --
रविकर जी,
जवाब देंहटाएंचोरी कहने के पहले सबूत दीजिए। अपनी एक भी लिखी हुई बात की चोरी नहीं करता कभी। अगर कुछ लिया तो संदर्भ जरूर देता हूँ। खासकर कविता, कहानी और किसी भी रचना में चोरी का सवाल ही नहीं पैदा होता।
वैसे आपके कहे का बुरा नहीं मानता।
चोरी तो हर आदमी करता ही है, परीक्षा में भी। कहिए तो इस पर भी एक पूरी पोस्ट लिख दी जाय।
मैंने देखा है कि पहले देशी साबुन को चूहे शौक से खाते थे. अब चूहे इन्हें सूँघते तक नहीं. मिलावट काफी हो गई है. अच्छा व्यंग लिखा है.
जवाब देंहटाएंसाहित्य प्रमी चूहे को स्तरीय सामग्री उपलब्ध कराई जाय.
जवाब देंहटाएंआदरणीय राहुल जी,
जवाब देंहटाएंअवश्य। कोशिश तो हो रही है और आप लोग भी करें वरना यही हाल 22वीं सदी में भी देखने को मिलेगा या इससे भी बुरा हो सकता है।
आपके लेखन ने इसे जानदार बना दिया है....
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