"कैसा प्रदर्शन, क्या सिर्फ पुलिस की गालियाँ और मार खाने के लिए…हरगिज नहीं! इस तरह का कोई भी कदम मैं उस समय तक नहीं उठाऊंगा, जब तक मेरे पास एक अदद बंदूक न हो" - चे ग्वेरा
गुरुवार, 30 जून 2011
ज़िंदग़ी(कविता)
कल मुझे मिला
एक दवा का दुकानदार
उसने कहा मुझसे
साहब! नज़र नहीं आ रहे काफ़ी दिनों से
दवा नहीं ले जा रहे मेरी दुकान से
घर में सब ठीक तो हैं?
(यह कविता 2009 में लिखी गई थी। हो सकता है इसका शीर्षक उतना उचित नहीं जान पड़े।)
मानों चोर को चौकीदारी सौंपना.
जवाब देंहटाएंबेचारा अपना शुभ चिन्तक ढूँढ़ रहा होगा |
जवाब देंहटाएंआप दिख गए, सोचा पूंछ ही लूँ की आखिर
कारण क्या है--
मर्ज ठीक हो गया कि मरीज --