गुरुवार, 9 जून 2011

काहिल अधिकारियों के भरोसे है मढौरा बिजली आफिस

मढौरा, सारण।


जनता की सुविधाओं के प्रति सरकार कितनी लापरवाह है इसका एक उदाहरण सारण जिले के मढौरा के बिजली आफिस में हो रही भयंकर लापरवाही है। हुआ कुछ यों कि 18 मई की रात को आँधी-तूफान आने के बाद स्टेशन रोड का ट्रांसफार्मर जल गया और पूरे इलाके में अंधेरे का राज कायम हो गया। लाइनमैन ने अगले दिन अधिकारी को सूचित कर दिया। मढौरा बिजली आफिस के एस डी ओ लम्बे समय से अपना प्रभार ओवरसियर को सौंप कर छुट्टी पर हैं। लेकिन ओवरसियर और अन्य कर्मचारियों की लापरवाही का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इन लोगों ने छपरा कार्यालय को 30 मई तक कोई सूचना नहीं दी। इसी बीच यह सुनने में आया कि ट्रांसफार्मर के लिए चन्दा इकट्ठा किया जा रहा है और 200 केवीए क्षमता के ट्रांसफार्मर के लिए लगभग 15-20 हजार रूपयों की जरूरत है। लोगों ने सरकार की देरी से तंग आकर चंदा देकर ही ट्रांसफार्मर लगवाने की सोची।
और कुछ लोगों से सौ रूपये, दो सौ रूपये से लेकर पाँच सौ-हजार तक चंदे के रूप में वसूले भी गए। सरकारी कर्मचारियों की लापरवाही इसी से साफ हो जाती है कि स्टेशन रोड से बिजली आफिस की दूरी मात्र एक से डेढ़ किलोमीटर ही है और स्टेशन रोड के घरों से बिजली आफिस सीधे दिखता है। और छपरा की दूरी इतनी ही है कि मढौरा से एक-डेढ़ घंटे में आप आसानी से पहुँच सकते हैं। लेकिन किसी ने 30 मई तक छपरा कार्यालय को सूचना तक नहीं दी। 31 मई को लगभग 30-40 लोगों के बिजली आफिस में जाने और कहने के बाद लगभग 12-1 बजे छपरा कार्यालय को फोन से सूचना दी गई। जब यह सवाल पूछा गया कि क्यों 12-13 दिन से अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई तो संबंधित अधिकारी का जवाब था कि आँधी-पानी के बीच उन्हें फुरसत ही नहीं मिली। एक फोन के लिए भी जब किसी अधिकारी को फुरसत नहीं है जबकि छपरा की दूरी मढौरा से 27-28 किलोमीटर ही है और फोन को दूरी से भला कैसा संबंध है? फिर लोगों को कहा गया कि पाँच जून तक ट्रांसफार्मर आ जाएगा। इसी बीच चार जून को ओवरसियर की भी मढौरा कार्यालय से बदली हो गई और बड़ा बाबू ने प्रभार ग्रहण किया। और 18 मई से लोग आज तक बिजली की कमी से जूझ रहे हैं। बिजली बोर्ड और सरकार को इस बात खयाल तक नहीं है कि किस कर्मचारी को कब और कहाँ भेजना है। लाइनमैन और बड़े बाबू के दम पूरा सब स्टेशन चल रहा है और सरकार की सुशासन व्यवस्था को दिखा रहा है। ट्रांसफार्मर मुजफ्फरपुर से आता है और मुजफ्फरपुर की दूरी इतनी ही है दो घंटे में आसानी से आप मढौरा से मुजफ्फरपुर जा सकते हैं। बिहार की राजधानी से कम दूरी होने के बावजूद बिजली बोर्ड की इस लापरवाही का क्या मतलब है?
      एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि आज से पंद्रह साल पहले एक ट्रांसफार्मर जो स्टेट बैंक के पास लगा हुआ था, जिसका कार्यक्षेत्र भी आज से ज्यादा था वह कभी जलता नहीं था लेकिन अब किस किस्म के ट्रांसफार्मर लगाए जाते हैं कि आए दिन ट्रांसफार्मर जलते रहता है। स्टेशन रोड में दो-तीन वर्कशॉप हैं जिनकी बिजली-खपत ज्यादा है। या तो सरकार ट्रांसफार्मर की क्षमता बढ़ाए या इन वर्कशॉपों के लिए अलग से ट्रांसफार्मर की व्यवस्था करे। लोगों के कहने पर भी 200 केवीए की जगह 100 केवीए का ट्रांसफार्मर लाने की बात कही गई है। अब तो यह रोज का नियम हो गया है कि कुछ दिन पर ट्रांसफार्मर जल जाता है और लोग ऐसे ही बिजली के लिए आँख बिछाए रहते हैं। मोबाइल चार्ज करने के लिए भी लोगों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

एक तो वैसे ही बिजली की हालत अच्छी नहीं है और दूसरे बिजली आफिस के हर काम में लोगों को परेशानी होती है। बिजली आफिस लोगों से अपना बिल लेने में तो देरी नहीं करता है लेकिन लोगों के लिए कितनी सुविधा वह प्रदान कर रहा है, यह तो लोग ही जानते हैं। किसी भी काम से अगर मिस्त्री को कोई खोजे तो मिस्त्री का कोई अता-पता नहीं होता और न ही बिजली आफिस से सही सूचना मिल पाती है। अगर तार टूट गए या किसी किस्म की समस्या आई तो मिस्त्री का कुछ पता ही नहीं रहता। बिजली बिल हर महीना जरूर आता है लेकिन मीटर रीडर कभी-कभार ही रीडिंग लेने आता है। अपनी मर्जी से सबका यूनिट लिखकर और बिल बनाकर भेज दिया जाता है। बिजली बिल में मीटर रेंट के नाम और एफ़ पी पी सी ए चार्ज के नाम पर हर महीने पैसे वसूले जा रहे हैं। जब मीटर लगाया जा रहा है तो उसकी कीमत या तो उपभोक्ता से ली जानी चाहिए या उसे किराये पर लगाया जाना चाहिए। इस तरह कुछ महीनों के बाद मीटर का दाम बिजली बोर्ड वसूल ले सकता है। लेकिन यहाँ मीटर खरीदने पर भी हर महीने मीटर रेंट के नाम पर लोगों से पैसे लिए जा रहे हैं। बिजली आफिस के दो-चार ऐसे एजेंट भी हैं जिनका काम लोगों और बिजली आफिस के बीच में आकर पैसे ऐंठना है। किसी भी काम के लिए पैसे की बात अक्सर इन्हीं के माध्यम से लोगों के बीच आती-जाती है। अब सवाल यह है कि जब सरकार को लोग बिजली बिल भी दे रहे हैं, उसके उचित-अनुचित सभी बातों को मान ही रहे हैं तो लोगों के साथ यह खेल क्यों खेला जा रहा है?

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