बुधवार, 29 जून 2011

आर्य सचमुच कहीं बाहर से आए थे?


मुझे इतिहास का ज्यादा पता नहीं, भविष्य में इसपर कुछ अध्ययन और सम्भव हुआ तो शोध का विचार है लेकिन इस बार आपको एक बहुत बड़े विद्वान और आलोचक रामविलास शर्मा की कही बात पढ़वा रहा हूँ, जो निश्चित रुप से सोचने को मजबूर करती है। यह एक साक्षात्कार का अंश है जो आप यहाँ पढ़ सकते हैं। आप यह साक्षात्कार अवश्य पढ़ें क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण है।


एक तो मैंने जब से होश सँभाला, यही सुनता आया हूँ कि एक थे आर्य, एक थे द्रविड़। आर्य अक्रांता थे, द्रविड़ों को खदेड़ा था। आज भी आर्य भारत अलग है, द्रविड़ भारत अलग। तो मैं सोचा करता था, क्या यह वाकई ऐसा है? क्या आर्य सचमुच बाहर से आए थे? दूसरे, यह कहा जाता था कि हिंदी में तो इतनी बोलियाँ हैं और सब एक-दूसरे से जुदा-जुदा तो हिंदी एक भाषा कैसे रही? देश एक कहाँ है…? मुझे लगा कि इन प्रश्‍नों को सुलझाया जाए। हिंदी बोलने वाले हम इतने सारे लोग हैं। भाषा-संबंधी देन भी हमारी कोई कम महत्वपूर्ण नहीं, लेकिन कुछ गलतफहमियों के सहारे उन्हें नकारा जाता था और हममें हीनता पैदा की जाती है। मैंने पहले तो यही देखा कि क्या आर्य वाकई बाहर से आए थेमैंने पायाऔर इसे सभी भाषाविज्ञानी मानते हैं, कोई विवाद नहीं इसमेंकि सघोष महाप्राण ध्वनियाँ (जैसे घ, भ इत्यादि) केवल हिंदी, संस्कृत में हैं। तो अगर ये आर्य कहीं बाहर से आए होते तो दूसरी भाषाओं में भी ये ध्वनियाँ होनी चाहिए, लेकिन नहीं मिलींसंसार की किसी भी और भाषा में नहीं। अब सवाल यह है कि हमारी भाषा में सुरक्षित कैसे रहीं, कहाँ से आईं? 
इस विषय पर इन दोनों जगहों पर भी कुछ लिखा है।



इस आलेख में अभी ज्यादा तो नहीं लिखूंगा लेकिन इतना कहूंगा कि शर्माजी की बात वाकई सोचने वाली है।

18 टिप्‍पणियां:

  1. भाषा विज्ञान के आधार पर रामविलास शर्मा जी का यह एक तर्क है. दूसरी और यह भी तथ्य है कि आर्य भाषाओं में ट, ठ, ड, ढ और ण जैसी ध्वनियाँ नहीं हैं जबकि द्रविड़यन भाषाओं में इनका अस्तित्व है. संस्कृत और हिंदी में इनका प्रवेश इन दोनों सभ्यताओं के सम्मिश्रण से हुआ ऐसा भाषा विज्ञान मानता है.

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  2. हिंदी विकिपीडिया को मैंने कई बार देखा है. इस आँख मूँद कर विश्वास नहीं किया जा सकता. हाँ कुछ लेखकों ने काफी इमानदारी बरती है. इसमें 'सिंधु घाटी सभ्यता' पर एक आलेख था जिसमें किसी संपादक ने यह भी लिख दिया कि इस सभ्यता के लोग गधे थे. बाद में उसे हटा दिया गया. इस सभ्यता के अचानक गायब हो जाने की बात को आर्यों के आक्रमण के साथ जोड़ कर देखा जाता है. एक प्रयास चल रहा है कि आर्य आक्रमण के सिद्धांत को किसी तरह नकारा जाए और स्थापित किया जाए कि आर्य भारत के मूल निवासी हैं और बाहर से नहीं आए हैं. पिछले दिनों भारत के उच्चतम न्यायालय ने एक फैसले में स्थापित किया कि भारत के आदिवासी लोग यहाँ के मूलनिवासी हैं.

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  3. महाप्राण ध्वनियाँ बहुत ज्यादा हैं। जहाँ तक बात है ण की तो यह तो संस्कृत में है ही। क्या संस्कृत आर्यभाषा नहीं है?

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  4. आर्य भारत के मूल निवासी हैं और बाहर से नहीं आए हैं ||

    सिद्ध करने के पीछे का उद्देश्य गलत तो नहीं |

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  5. समझा नहीं मैं? रविकर जी क्या कहना चाहते हैं? साफ-साफ कहूँ तो निजी तौर पर मुझे इससे कोई लेना देना नहीं है कि आर्य बाहर से आए या नहीं आए।

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  6. भूषण जी,

    अब यह तो भारी शोध और विवाद का विषय है कि आर्य कहाँ से आए? या यहीं रहे। इससे ज्यादा फर्क तो नहीं पड़ता, कम से कम मेरे जैसे आदमी पर क्योंकि ऐसा होता है तब भी यह बात कई हजार साल पहले की है। हिन्दी विकीपीडिया का लिंक मैंने रामविलास शर्माजी पर थोड़ा सा देखने के लिए था। आपकी यह बात सही है कि इन सब पर ज्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए।

    आप rajivdixit.in पर जाकर एक व्याख्यान है 'भारत में गुलामी की निशानियाँ' उसे सुनें। उसमें इस पर कुछ कहा गया है।

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  7. @ चंदन pr
    'क्या संस्कृत आर्यभाषा नहीं है?'
    बिलकुल है परंतु इसकी 'ट' वर्ग की ध्वनियाँ द्रविडियन भाषाओं के संपर्क से आई हैं.

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  8. आदरणीय भूषण जी,

    मुझे भाषाविज्ञान का अधिक ज्ञान तो नहीं है लेकिन कुछ कहना और पूछना चाहता हूँ। ट वर्ग की पाँच ही ध्वनियाँ हैं जबकि महाप्राण ध्वनियों की संख्या पाँच से ज्यादा हैं। और ट वर्ग के ट और ड तो यूरोप में भी हैं जैसे टायर, ट्विस्ट, ट्विंकल, गॉड, डॉग आदि। तो इससे ये कैसे कह सकते हैं कि यूरोप में भी द्रविड़ रहते थे। द्रविड़ों का रंग भी यूरोप के लोगों के रंग के सर्वथा विपरीत है। ये दोनों बातें बताती हैं कि द्रविड़ों का यूरोप से कोई संबंध नहीं है। जब ऐसा है तब ये पता कैसे चले कि ट वर्ग कैसे आया। और पाणिनी के सूत्रों में 'अ इ उ ण्, 'ह य व र ट' में तो ट और ण दोनों आते हैं। संस्कृत दुनिया की सबसे प्राचीन समृद्ध भाषा है और उसके सभी किताबों में ण और ट तो हैं ही। यानि संस्कृत जानने वाले पहले से ट और ण जानते हैं। साथ ही पाणिनी के सूत्रों में सभी अक्षर जैसे झ, ठ, ड आदि तो हैं ही। पाणिनी को 500 ईसा पूर्व का माना गया है। फिर 'ठ' और 'ढ' या 'ढ़'भी तो महाप्राण वर्ण हैं, ये भी संभवत: तमिल आदि द्रविड़ भाषाओं में नहीं हैं।

    तमिल का सबसे प्राचीन साहित्य 300 ईसा पूर्व का है, जैसा कि अभी तक ज्ञात है। वेदों के संग्रह का समय पुरातत्ववेत्ता कम से कम 1500 ईसा पूर्व से लेकर 600 ईसा पूर्व तक बता रहे हैं। कन्नड़ भी संस्कृत के बाद की भाषा है। मलयालम भी संस्कृत से नई है। जब ये सारी भाषाएँ संस्कृत से नई हैं तब तो सवाल रह ही नहीं जाता कि ट वर्ग की ध्वनियाँ संस्कृत की अपनी नहीं हैं और द्रविड़ भाषाओं से आई हैं। मैंने तो सुना है कि तमिल वर्णों के दूसरे और चौथे वर्ण होते ही नहीं हैं। जैसे गांधी को कांधी कहना पड़ता है।

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  9. भाषाओं के परिवार में आर्य भाषाएँ भी एक परिवार है. यह मध्य एशिया के क्षेत्र से है. मैंने पढ़ा है कि आर्य वहीं से आए और भारत में आकर इनकी भाषा में इसमें 'ट' वर्ग की ध्वनियाँ शामिल हो गईं. संस्कृत और हिंदी का विकास भारत में हुआ है.
    सिंधु घाटी सभ्यता के समय प्रयुक्त लिपि मिल चुकी है और उसे डिकोड किया जा रहा है. इसमें प्रयुक्त भाषाई संकेतों और उनकी ध्वनियों संबंधी निष्कर्षों की प्रतीक्षा है. तमिल भाषा के विकास के सूत्र भी इससे मिल सकते हैं.
    तमिल की ध्वनियों के बारे में इतना ही कहूँगा कि भौगोलिक स्थितियों के कारण उच्चारण बदलता है. ठंडे मुल्कों के लोग बोलते समय मुँह बहुत नहीं खोलते. तमिल की प्रवृत्ति है कि महाप्राण ध्वनियों को अल्पप्राण की भाँति उच्चारित किया जाता है. 'खाना नहीं खाना है' - 'काना नहीं काना है' बन जाता है. और 'है' का उच्चारण कई बार 'गै' की भाँति सुनाई देता है.
    हाँ अभी तक आर्यन इन्वेज़न गलत प्रमाणित नहीं हुआ है. कल क्या होगा पता नहीं.

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  10. भूषण जी,

    इस किताब को देखें। http://www.hindusthangaurav.com/books/itihaskavikrutikaran.pdf

    http://www.hindusthangaurav.com/books.asp को भी देखने के लिए समय निकालें।

    कुल मिलाकर यही लगता है कि अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता।

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  11. आप सही कह रहे हैं. यह भी सच है कि एक नष्ट इतिहास को वैज्ञानिक तरीके से री-कंस्ट्रक्ट करना आसान कार्य भी नहीं है.

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  12. मेरे पिता ने मकान बनाने को ज़मीन का एक बड़ा टुकडा लिया और दो कमरे बनाकर रहना शुरू किया. हम सभी भाई पूरे घर में आते-जाते ... उछल-कूद करते थे .... पूरा घर हमारा था. आँगन में उगाये पेड़-पौधे, सब्जियों की बेलें.. सबकी सब हमारी थीं. समय बीता. भाइयों की शादी हुई मकान का ढांचा बदला .... मकान अपार्टमेन्ट के रूप में कन्वर्ट हो गया. घर के मुखिया हमारे पिता एक कक्ष तक सिमटकर रह गये. हम भी अब मनमाने ढंग से आ-जा नहीं सकते हैं. मकान में भाइयो के अलावा किरायेदारों के परिवार भी आकर बस गये हैं. .......... अब वो वर्षों पुराना मकान एकाधिक मुखियाओं से पटा पड़ा है.

    आर्यों का देश केवल वर्तमान भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं रहा....

    सोचिये... एक समय में अखंड भारत (एटमाबाद) में रहने वाले 'सरदार पूर्ण सिंह' जी भारतीय थे.. जिनके विषय में कतई ये नहीं कहा जा सकता कि उनका परिवार बाहर से आकर भारत में बसा.
    एक समय में तो हरिवर्ष (ब्रिटेन) में रहने वाले व्यक्ति भी देव और आर्य कहलाते थे... अब उनके विषय में तो ये नहीं कहा जा सकता कि वे सभी अंग्रेज थे.

    विस्तार फिर कभी...

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  13. प्रतुल जी,
    आर्य तो अपने को हिटलर भी कहता था क्योंकि जर्मनीवासी आज भी अपने को आर्य या श्रेष्ठ कहते हैं।

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  14. आर्य तो अपने को हिटलर भी कहता था क्योंकि जर्मनीवासी आज भी अपने को आर्य या श्रेष्ठ कहते हैं।
    @ हाँ, इस बात की संभावना है. इसमें ग़लत क्या है... कोई अपने को श्रेष्ठ कहे... हमें इस बात से कोई एतराज नहीं होना चाहिए.. बस उसका आचरण भी श्रेष्ठ होना चाहिए.
    पृथ्वी कभी केवल भारत तक सिमट तक नहीं रही... विश्व में ऐसे कई क्षेत्र प्रारम्भ से ही रहे हैं जहाँ सभ्यता का उत्कर्ष रहा..
    जर्मनवासी 'आर्यों' की संतान हो सकते हैं... केवल तब वे जर्मन न होकर 'आर्यव्रत के वासी' कहलाते होंगे. मतलब 'आर्य'
    आर्य का सीधा अर्थ है 'आर्याव्रत का निवासी या नागरिक' जैसे वर्तमान में भारत का नागरिक भारतीय कहलाता है.

    चन्दन जी,
    बस उसी सन्दर्भ में वे 'आर्य' हो सकते हैं. इस बात से प्रतीत होता है कि एक समय में ... भारत अपने आर्याव्रत नाम से जर्मन तक की सीमाएँ छूता रहा होगा.

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  15. फिर से, संशोधन के साथ :

    पृथ्वी कभी भी भारत तक सिमटकर नहीं रही...

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  16. रामविलास जी ब्राह्मणवादी विचारक थे. उन्होंने ब्राह्मणवादी विचारधारा पर मार्क्सवाद की कोटिंग चढ़ाने का का काम बखूबी किया है.

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  17. बहुत सुंदर ! महर्षि दयानन्द जी ने अपने ग्रन्थ में आर्य भारत के मूल निवासी थे इसे सिद्ध किया है और हमारे पूर्वजों का जन्म तिब्बत में हुआ था ऐसा भी बतलाया है तो हम विदेशी कैसे हो गये ? हम इस देश के आदि वासी है | आदि का अर्थ होता है शुरूआत और वासी का अर्थ हुआ रहने वाला | आदिवासी का मतलब हुआ शुरुआत से रहने वाला | आदिवासी का मतलब ये नहीं कि जो नंगा रहे, पत्ते लगा कर घुमे आदि | हम आर्य थे और हैं |

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