रविवार, 26 जून 2011

लीजिए सुन लीजिए मेरे जवाब


(http://shrut-sugya.blogspot.com/2011/06/blog-post.html पर स्मार्ट इंडियन के सवालों और हंसराज यानि सुज्ञ की बातों के जवाब जो मैंने सुज्ञ के चिट्ठे पर दिया है, यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ। माफ़ी चाहता हूँ कि ऐसी चीज डालनी पड़ी लेकिन जवाब देना मेरे खयाल से आवश्यक था। यह जवाब इतना लम्बा हो गया कि इसमें 6000 शब्द लग गए।  इतने लम्बे आलेख या जवाब को पढ़ने के लिए समय तो ज्यादा लगेगा लेकिन उम्मीद करता हूं कि आप भी कुछ समझ पाएंगे इससे।)



यह जवाब मैंने जे सी जी कोविचार शून्य जी कोस्मार्ट इंडियन जी को(जो अपना नाम तक विदेशी रखते हैं लेकिन भारतीयता के पुरोधा हैं) और सुज्ञ जी को ईमेल से भेज रहा हूँ। अपने ब्लाग पर भी डाल रहा हूँ। और हंसराज जीअन्तिम बार दुस्साहस करते हुए आपके ब्लाग पर सम्भवत: आज तक की सबसे लम्बी टिप्पणी करके जा रहा हूँ।

मैंने अपने ब्लाग पर जो लिखा हैआपने उसे गलत समझा।  ये रही मेरी गलती कि अपने ब्लाग पे मजाक-मजाक में कुछ लिखा और आप उससे इतने परेशान हो गए। मुझे यह तो अधिकार है ही कि मैं अपने ब्लाग पर शीर्षक क्या दूँमहाशक्ति हो या आशा की परतें हर ब्लागर को इतना तो अधिकार है कि वह अपने ब्लाग का नाम क्या रखे। आप स्वयं का उदाहरण लें तो स्मार्ट इंडियन नाम रखने के लिए आपने किसी से नहीं पूछा।

अब सुनिए एक कहानी तब आगे बढ़ता हूँ।

सम्भवत: दादू की कहानी है यह। एक राजा था जिसे दादू से ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा हुई और वह दादू का शिष्य बनना चाहता था। घोड़े से गया दादू के इलाके में। उनकी कुटिया के पास एक बूढ़ा आदमी घास काट रहा था(घास काटना हमारी भाषा में घास गढ़ना कहा जाता है)। राजा ने उस आदमी से पूछा- दादू कहाँ हैंउस आदमी ने कोई जवाब नहीं दिया। राजा ने फिर पूछा और इस बार भी आदमी ने कोई जवाब नहीं दिया। अब राजा गुस्सा गया। उसने तीसरी बार पूछा- दादू कहाँ हैंइस बार भी जवाब नहीं देने पर राजा ने जोर से कहा- गूंगे हो क्याऔर दो कोड़े बरसा दिए। तमतमाया हुआ कुटिया के अन्दर गया। वहाँ उसने दादू के बारे में पूछा तो किसी ने बताया कि बाहर घास काट रहे हैं। राजा बहुत पछताया और जाकर दादू के पैरों पर गिर पड़ा। माफी मांगते हुए उसने एक सवाल पूछा- दादूआपने बताया क्यों नहीं कि आप ही दादू हैंदादू ने जवाब दिया- जिस तरह शिष्य की परीक्षा होती है उस तरह गुरु को भी परीक्षा देनी चाहिए कि वह इस काबिल है कि नहीं?

अब आपकी बात पर आते हैं। यह कहानी क्यों कहायह सोचने की चीज है।

anvarat.blogspot.com/2011/06/blog-post_19.html

http://zealzen.blogspot.com/2011/06/blog-post_22.html

इन दोनों लिंकों पर मैंने बहस में भाग लिया था और वहीं की एक बात लेकर सुज्ञ जी ने लिखा है।
सबसे पहले बात करेंगे सुज्ञ जी द्वारा मुझे कुछ बताए जाने की। उनका कहना है कि मैंने विचार शून्य और स्मार्ट इंडियन का अपमान किया है। नाम में आदर इसलिए क्योंकि दोनों के नाम ये नहीं हैं।

हंसराज(अब बार बार जी नहीं लगा सकता) जी को किसने यह अधिकार दिया है कि वे सदाचार को बाँटे और वे भी महान ग्रन्थकार बनते हुए- आस्तिक सदाचार और नास्तिक सदाचार। सदाचार पर बहस चल चुकी थी और उसमें दिनेशराय द्विवेदी जी से मैंने अपनी सहमति अपने तर्कों से जताई थी। वहाँ कोई व्यक्तिगत आलोचना नहीं हुई थी इस बात को लेकर।


सबसे पहले विचार शून्य ने लिखा
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23 June, 2011 20:24
 VICHAAR SHOONYA ने कहा
आस्तिक सदाचार और नास्तिक सदाचार के बीच का फर्क. कौन सा वाला बेहतर है यहाँ मैं उन लोगों का पक्ष भी जानना चाहूँगा जो नास्तिक सदाचार के पालनकर्ता हैं.
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मैं हर बात का गरम और नरम जवाब देने की कोशिश करूंगा।
यहाँ विचार शून्य के इस टिप्पणी का जिक्र इस लिया किया गया कि इस पूरे मुद्दे में आपमैंविचार शून्य और हंसराज सब शामिल हैं।

तो यहाँ उस टिप्पणी से बात शुरु होती है लेकिन मुझे इससे कोई मतलब नहीं था।

उसके बाद एक और टिप्पणी आई
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Er. Diwas Dinesh Gaur ने कहा
हंसराज भाई साधुवाद...कल की बहस के परिणामस्वरुप बहुत कुछ आपसे सीखाएक अम्न्थान हो गयाआस्तिक व नास्तिक के बीच के अंतर को आपने बखूबी समझाया हैआस्तिक की श्रेष्ठता निसंदेह नास्तिक से अधिक है|
आभार...
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अब अगर आप शिक्षक हैं और शिक्षक के उपर बहस चले तो आपको अधिकार है कि आप इस बहस का हिस्सा बनें। ठीक उसी प्रकार मैं इस बहस का हिस्सा बना क्योंकि दिवस से मेरी बहस पहले भी हो चुकी थी।
यह वाक्य इनका अहंकार दिखाता है कि आस्तिक की श्रेष्ठता निस्सन्देह नास्तिक से अधिक है। यह अहंकारी भाव है। यहाँ याद रहे कि राहुल सांकृत्यायन और भगतसिंह भी नास्तिक थे। मैंने जो बहस की है उसी तरह उन्होंने अपनी किताबों में की है। आप चाहें तो उपर वाले लिंक से भगतसिंह का प्रसिद्ध आलेख 'मैं नास्तिक क्यों हूँ?' पढ़ सकते हैं या आप पढ़ चुके होंगे।

लेकिन मैंने दिवस की बात पर ध्यान नहीं दिया।

तभी मैं इस ब्लाग पर आता हूँ। और टिप्पणी करता हूँ।
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चंदन कुमार मिश्र ने कहा
अच्छा तो आप फिर उसी मुद्दे पर हैं! अभी अभी पता चला। लेकिन मेरी बात का जवाब तो किसी ने दिया नहीं कि अपराधियों में से कितने नास्तिक हैं और कितने आस्तिक।

दूसरी बात किसी नास्तिक की तुलना में हमेशा आस्तिकों के शत्रु कम होते हैं। क्योंकि वह वर्तमान व्यवस्था को स्वीकारता है लेकिन नास्तिक विद्रोह करता है। स्वयं के विवेक से चलता है दूसरों के विवेक के पास अपने विवेक को गिरवी नहीं रखता। आप अच्छे से जानते हैं कि राहुल सांकृत्यायन के शत्रु ज्यादा थे या विवेकानन्द के। आपकी दोनों बातों का कोई आधार है ही नहींकम से कम मैं जहाँ तक समझता हूँ। मैं औरों की तरह हाँ में हाँ मिलाता रहूँ तो सब ठीक होगातो यह मुझे मंजूर नहीं है।

और यह भी जान लीजिए कि मैंने अपने चिट्ठे पर ईश्वर और धर्म को लेकर बहुत सारे आलेखों को लिखने की ठान ली है और आज शुरु कर चुका हूँ।

24 June, 2011 20:42
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यह मेरा अपना मत है। इससे किसी को सहमति या असहमति हो सकती है। निश्चित तौर पर कुछ हाथ की अंगुलियों पर गिने जाने लायक नास्तिक हैं जो हिंसा का बहुत क्रूर खेल खेल चुके जैसे स्टालिनमाओ(जैसा कि आपने कहा) लेकिन दुनिया में यातना शिविरों के लिए जाना जाने वाला हिटलर तो अपने को आर्य यानि श्रेष्ट कहता थाऔर ईश्वर की सत्ता में विश्वास भी करता था।
यहाँ हंसराज ने कहा कि आस्तिकों के दुश्मन ज्यादा होते हैं लेकिन यह बात कितनी सही हैआप भी जानते हैं। दुश्मन तो परम्परा को तोड़नेवालों के होते हैं अधिक संख्या में न कि परम्परा में जीने वालों के। भारत में ऐसे एक नहीं सैकड़ों उदाहरण हैं। जैसे तुलसीदास को ही देखें तो उन्होंने परम्परा से हटकर किताब क्या लिख दी सारे पंडित उनके शत्रु बन गए। वैसे भी नास्तिकों की संख्या आप अच्छी तरह जानते हैं कि कितनी हैमैं जब भी बोलता हूँ तब भारत के संदर्भ में। इसलिए किसी अन्य देश से मेरे कहे का अर्थ नहीं जोड़ा जाय। मैं भारत से बाहर की बात करते समय बता दूंगा कि भारत से बाहर किसी दूसरे देश की बात कर रहा हूँ।

अब वापस आते हैं अपनी बहस की कहानी पर।
उसके बाद आप आते हैं इस टिप्पणी के साथ।
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Smart Indian - स्मार्ट इंडियन ने कहा
@आस्तिक सदाचार और नास्तिक सदाचार के बीच का फर्क. कौन सा वाला बेहतर है?
ज़ाहिर है कि सदाचार सदाचार ही है आधार कुछ भी हो।

@अपराधियों में से कितने नास्तिक हैं और कितने आस्तिक।
मुझे नहीं लगता कि ऐसी फ़िज़ूल स्टडी में कभी कोई संसाधन लगाये गये होन्गे। कॉमन सैंस से कहूँ तो नास्तिकों का प्रतिशत अपराधियों में भी कमोबेश उतना ही होगा जितना सदाचारियों में

@भय से धार्मिक दुकानदारी खूब चमकाई जाती है।
भय से सांसारिक दुकानदारी भी खूब चमकाई जाती हैये अस्पतालबीमा आदि क्या हैं?

@निशांत,
तुम्हारी बात सबसे अच्छी लगी। तुम जैसे लोग धार्मिक आचरण वाले नास्तिक कहे जायेंगे। भारतीय परम्परा में आस्तिक-नास्तिक की कोई समस्या नहीं है। समस्या तब आती है जब दो क्रूर और अति-असहिष्णु वर्ग (धर्मान्ध और धर्महंता) सात्विक (आस्तिक और नास्तिक) वर्गों की आड में अपना उल्लू सीधा करते हैं। इन मौकापरस्तों को अपनी असलियत ज़ाहिर करने का साहस नहीं होता है इसलिये नास्तिक/आस्तिक की आड लिये रहते हैं मगर सच्चाई कब तक छिप सकती है?

25 June, 2011 05:55
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यह आपकी सोच है। मुझे इसमें कुछ मतभेद दिखाई पड़े तो टिप्पणी करना मैंने आवश्यक समझा। आपकी पहली बात का मुझसे कोई संबंध नहीं है।
दूसरी बात आपने मेरे सवाल को फालतू स्टडी करार दिया। और कामन सैंस से आपने जो कहा वह गलत है क्योंकि अपराधियों या कैदियों की गिनती कर लें तो पता चल जाएगा कि ज्यादा अपराधी कौन होता हैलेकिन आपको अपनी बात रखने का पूरा पूरा अधिकार था। यह भी ठीक था। मैं कहूँ तो आप बुरा मानेंगे जैसे मैंने किसी काम को मूर्खता करार् दिया उसी तरह आपने मेरे सवाल पर फालतू स्टडी का विचार रखा। किसी के विचारों के अपमान का(अगर इससे अपमान होता है तब) पहला काम आपने शुरु किया। लेकिन फिर भी सुज्ञ को आप सही लगे। उनके विचार से निश्चय ही मैं गलत रुख अपनाता हूँ जब किसी को मूर्खता वाली बात करने वाला कह देता हूँ(जिसे सीधे-सीधे मूर्ख भी कह सकते हैं लेकिन शब्दों की चालाकी से हँसने या मूर्खता की बात कह दिया जाता है) और इस हिसाब से आप मेरे प्रति बुरा शब्द इस्तेमाल करनेवाले पहले आदमी हुए(हम दोनों के बीच में)। आप कल्पना कीजिए कि कोई वैज्ञानिक जोंक पर शोध कर रहा है और उसे कहें कि आप फालतू स्टडी कर रहा हैबस समझ में आ जाएगा कि अच्छा लगेगा। अगर आप उसकी जगह हों और आपको यह अच्छा लगे तो आप महान हैं और मैं इतना महान नहीं। अगर मैं पूछूँ कि आप होते कौन हैं यह कहने वाले की मेरी बात या मेरे विचार या तर्क फालतू स्टडी से संबन्धित हैंतो कैसा लगेगा?

अब आपकी दूसरी बात आती है कि भय से सांसारिक दुकानदारी भी खूब चमकाई जाती है। मै जानना चाहता हूँ( और यही मान कर चलता हूँ कि भारत के ही बारे में ही बात की जा रही है क्योंकि सभी ब्लागर भारत के हैं) कि बीमा और अस्पताल  में कितने नास्तिक लोग काम करते हैं। इन सबको या नास्तिक शब्द के मेरे लिए क्या अर्थ हैंयह जानने के लिए आप अनवरत ब्लाग को पढ़ लें(अगर चाहें तो)। भारत के कितने प्रतिशत अमीर लोगबीमा से सम्बन्धित लोग, अस्पताल से संबन्धित लोग ईश्वर पर यकीन नहीं करते हैं। बजाज से लेकर गाँ व के भारतीय जीवन बीमा निगम के अभिकर्ता तकसभी लगभग सभी आस्तिक हैं। आप याद रखें कि भारत में नास्तिक दर्शन से संबन्धित लोगों ने भी कोई गलत काम नहीं किया जैसे चार्वाकबहुत हद तक बुद्ध और महावीर या आधुनिक काल के राहुल जी या शहीद-ए-आजम भगतसिंह आदि। अब आप लेनिन का उदाहरण नहीं चिपकाएँ क्योंकि भारत के संबंध में बात हो रही है और अगर यह बात पहले नहीं समझ सके तो आपने पूछा नहीं और मैंने बताया नहीं।(आपकी भूल कि आपने अपने से अर्थ निकाला और मेरी भूल कि इस ओर मैंने ध्यान नहीं दिलाया) आपसे आग्रह है कि अगर आप मेरे लिए नास्तिकता आदि का अर्थ जानना चाहते हैं तो आपको अनवरत पढ़ना ही होगा।


अब अगली टिप्पणी जब आपने निशान्त के लिए की। तो मैं खुश हुआ आपके विचारों में मानव का उज्जवल पक्ष देखकर लेकिन आपकी भाषा और संकेत(जैसा कि मैं समझा) मुझे अच्छे नहीं लगे। धर्मान्ध और धर्महन्ता कहकर आपने अपने शब्दों का कैसा प्रयोग किया यह तो आप ही जानते हैं लेकिन मैं इसे आपकी सोच से समझ नहीं सकता था क्योंकि आप मेरी भावनाओं को नहीं समझ सकते थे।
भारतीय परम्परा में आस्तिक-नास्तिक की कोई समस्या नहीं है। यह वाक्य क्या हैआप इसे क्या कहेंगे। ग्रन्थों में जो लिखा है उससे हटकर आपने खुद ही विचारधारा स्थापित कर ली है। जबकि भारत वह पहला देश है जहाँ चार्वाक नास्तिकता का दर्शन उठाते हैं। वेदोंस्वर्गईश्वर और आत्मा आदि की निंदा करते हैं। भारतीय परंपरा पर अपने आपको या अपनी बात को ब्रह्मवाक्य मानना मुझे बुद्धिमानी नहीं लगी।
धर्महन्ताअति-असहिष्णुउल्लू सीधा करनामौकापरस्तआड़ लेना ये सारे शब्द आपकी सभ्य शब्दावली के नमूने थे। भगतसिंह का लिखा मैं नास्तिक क्यों हूँपढ़ें। मैं आपको भगतसिंह से ज्यादा महत्व नहीं दे सकता। उन्होंने जब लिखा तब वे किस मौके की तलाश में थेकहाँ से वे उल्लू सीधा कर रहे थेवे अति-असहिष्णु थे , मैंने तो आपके शब्दों का यही अर्थ लगाया। और यह कहीं से कोई अपराध नहीं है क्योंकि हरि का अर्थ एक जगह बन्दर और दूसरे स्थान पर साँप लगाना कहीं से गलत नहीं हैं

मैं शहीदों कासच्चे लोगों का अपमान नहीं सहते हुए आपके उपर कड़ी टिप्पणियाँ कर गया। अब इसकी वजह देखिए।
अपमान क्यों सहूँ जब आप भगतसिंह और राहुल सांकृत्यायन से न तो बुद्धिमान हैं और देश सेवी हैं। जाहिर है आप गदर पार्टी की स्थापना के लिए अमेरिका में नहीं रह रहे हैं कि आपकी तरफ़दारी करता।
न उनके इतनी आपकी हैसियत है। आप होंगे बड़े ब्लागर या चिन्तक देश को फर्क क्या पड़ता है इससे। यहाँ याद रखा जाय कि मेरे लिए भारत का अर्थ 90 करोड़ लोग हैं और बहुत बाद में किनारे पर 30 करोड़(ये सब घोर आस्तिक होते हैं और बेचारे 90 करोड़ लोग इन सबके जाल में फँसे हुए हैं)।
अब मैं इतनी कड़ी(मैं तो नहीं मानता कि इतनी कड़ी) टिप्पणियाँ कर गया तो इसके पीछे वजह एक नहीं है। आप देख रहे हैं आपने भारतीय परम्परा का उत्तराधिकारी समझना बिलकुल ठीक नहींचाहे आपके साथ पूरा संसार खड़ा हो जायहिन्दी ब्लाग-जगत तो बहुत छोटा है।

अब सोचते हैं कि कब कोई कड़ी टिप्पणी करता हैशायद आप समझ सकते हैं क्योंकि आप मुझसे बड़े हैं(उम्र में इसका मतलब ये तो नहीं कि मैं आँख मूँद कर आपके चरणस्पर्श करता रहूँ)। या लीजिए यह भी अपनी समझ से रख देता हूँ। अगर आपको कोई बार-बार आपका नाम पूछेतो कैसा महसूस करेंगेझल्लाना कही से जायज नहीं। यानि जब आपकी विचारधारा का कहीं टकराव होता है और वह भी पुनरावर्ती बातों से तो आपमें क्रोध पैदा होना चाहिए नहीं तो या तो आप गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञ हैं या स्वयं समझ लें। यही बात मेरे उपर भी लागू होती है। आपके विचारों में टकराव हो तो यह अच्छा भी है क्योंकि इससे मालूम होता है कि आप सोच रहे हैं और चेतन हैं वरना जड़ की स्थिति हो जाएगी।

या दूसरी स्थिति है कि आप थोड़े कड़े शब्द बोलने के आदी हैं। मैं किसी को कोई गाली कभी नहीं देता। यहाँ तक सर्वव्यापी साला शब्द भी मेरे मुँह से नहीं निकलता। इसलिए मैं कम से कम इतना तो कह ही सकता हूँ कि मैंने आपको गाली नहीं दी। लेकिन जैसा कि आपने इस्तेमाल किए हुए पाँच-छ: शब्द देखाआप समझते होंगे कड़ी टिप्पणी या कटु शब्द किसने शुरु किया। तो इससे इतना तो मुझे भी अधिकार मिलता है कि थोड़े से कटु शब्द मैं भी इस्तेमाल कर सकूँ(अगर लगे)। लेकिन हंसराज को इन शब्दों में कुछ कुटिलता नहीं दिखाई देती लेकिन मेरे शब्दों में दिखाई देती है तो मुझे नहीं लगता कि हंसराज की सोच पर मैं अपना माथा पीटूँ!

अब आगे बढ़ते हैं।

फिर मैंने टिप्पणी की
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 चंदन कुमार मिश्र ने कहा
श्रीमान स्मार्ट इंडियन,

असहिष्णुता का अर्थ मालूम हैवैसे भी विदेश में रहनेवालों को कोई महत्व नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि यहाँ से भागकर अपने देश को अंगूठा दिखाकर झूठ-मूठ काबिल बनने से क्या होता है जनाब?

कितने अस्पताल और बीमा में नास्तिक लोग हैंकामन सैंस लगाते हैं। आपने दूसरे देशों को छोड़िए भारत में ही कितने नास्तिकों को देखा हैभारत में एक करोड़ लोग भी नास्तिक नहीं है। यानि अपराधी अक्सर क्या होते हैंखुद समझ लीजिए।

आपको नास्तिकता और आस्तिकता की समझ नहीं हैऐसा मुझे लगता है,

आप मुझे ऐसे नास्तिकों की गिनती बताइए जिन्होंने संसार को खराब किया और ऐसे आस्तिकों की गिनती खुद कर लें जिन्होंने देश और संसार को क्या दिया?

25 June, 2011 06:49 
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मैं कह चुका हूँ कि 'इन मौकापरस्तों को अपनी असलियत ज़ाहिर करने का साहस नहीं होता है इसलिये नास्तिक/आस्तिक की आड लिये रहते हैं मगर सच्चाई कब तक छिप सकती है?' इस वाक्य ने मेरे जैसे विचार वाले को क्या माना हैआप खुद जानते हैं(भले ही आस्तिक शामिल हैं लेकिन अगर कोई कहे कि हर भारतीय चोर होता है तो आपको बुरा नहीं लगेगा क्या?, कम से कम जो चोर नहीं हैं उनका तो फर्ज बनता है कि वे बताएँ और जवाब दें)। यह कहाँ से गलत हो गयामेरी नजर में इसमें रत्ती भर गलती नहीं है।

अब विचार करते हैं आपकी बात पर बिंदुवार।


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श्रीमान चंदन कुमार मिश्र
आपने जो प्रश्न पूछेमैंने सदाशयता से उनका उत्तर देने का प्रयास यह सोचकर किया कि आप वाकई उत्तर जानने में उत्सुक हैं। मगर आपके जवाबों की तिलमिलाहट और व्यक्तिगत आक्षेप एक दूसरी ही कहानी कह रहे हैं। आपके ऐटिट्यूड ने काफ़ी निराश किया। मेरे पास फ़िज़ूल बातों के जवाब देते रहने का समय नहीं है फिर भी एक बार हर किसी को अवसर देने का प्रयास अवश्य करता हूँ इसलिये इस बार के सवालों के उत्तर अवश्य दे रहा हूँआगे की कोई गारंटी नहीं है।
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चलिए अपने को सदाशयी माना। मेरी बातें फिजूल हैं। आप किसी को अवसर भी दे सकते हैं यानि आप इस लायक अपने को मानते हैं कि आप लोगों से हटकर कोई महान व्यक्तित्व हैं।
आत्मप्रशंसा और दूसरे की बातें फिजूल! अच्छा विचार है। विद्वान होंगे आप। किताबेंकविताएँ सब लिखी होंगी आपने लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि गाँधी के निर्मल चरित्र वाले हैं। मैकाले भी कम विद्वान नहीं था। उसकी किताबें इंग्लैंड में इतिहास पर बहुत महत्व की मानी जाती हैं। लेकिन भारत उसके द्वारा किए घृणित कार्यों(शायद महान लोगों की नजर में प्रशंसनीय और महान कार्य) सेउसके द्वारा उठाए गए कदमों से जानता है कि मैकाले कितना दयावान और महान था। मेरे नजरिये ने नहीं ऐट्टिट्यूड ने आपको निराश ही नहीं कियाकाफी निराश किया और आपके द्वारा दिए गए पाँच विशेषणों ने मुझे काफी खुशी प्रदान की!

अब आगे

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@असहिष्णुता का अर्थ मालूम है?
नहीं जीक्षमा कीजिये। इस सभा में एक आप ही महापण्डित हैंविस्तार से समझाइयेजिन पर समय होगा वे सुन लेंगे। वैसे निष्पक्ष होकर देखने वालों को "असहिष्णुता" का अर्थ आपके उपरोक्त सवाल में ही मिल जायेगा।

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अब मैंने कहा कि असहिष्णु का अर्थ मालूम हैक्यों कहाक्या आप यह सोच भी नहीं सकते थेबस बौखलाहट में आप भी जवाब दे गए(कम से कम आप तो हंसराज और अन्य लोगों की नजरों में तो विद्वान और अग्रिम पंक्ति के ब्लागर हैंमैं तो मूर्ख और दुष्टात्मा हूँ)? क्या आपने यह कहकर समूचे अनीश्वरवादियों को कायरछिपने वाला और असहिष्णु नहीं कहाऔर अगर कहा तो मेरा प्रश्न किस हिसाब से गलत हैमुझे महापंडित करार देकर आपने यह तो बता ही दिया कि आप भी टेढ़ी बात करते हैं और जब ऐसा है तब अपने को किसी से महान और सदाशयी कैसे कह सकते हैंवैसे यह मामला निजी है। कितने लोग मैकाले को भी महान कहते हैं। यहीं नहीं आपने मुझे अप्रत्यक्षत: पक्षपाती भी कहा। (अब कह दीजिए कि मैं बाल की खाल निकाल रहा हूँ क्योंकि प्रथम पंक्ति के विद्वान ब्लागर हैं और सारे लोग या मैं निम्न पंक्ति का)। यानि आपने एक और विशेषण प्रदान किया।

कोई यह नहीं मानेगा कि व्यंग्यात्मक लहजे में कही गई बात आपको निष्कपट साबित करती है। मैं तो हूँ कपटी और अहंकारीआप सबों की दृष्टि में। जब आदमी टेढ़ी बात बोले तो वह निर्मल ह्रदय वाला हो ही नहीं सकताकम से कम उस वक्त जिस वक्त वो तीखी बात बोल रहा है।

अगर आपने असहिष्णु कहा और मैंने आपसे इतना ही पूछा कि इसका अर्थ मालूम हैवह भी प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ यानि सवाल पूछा जा रहा है। लेकिन यह बात आपको इतनी खली आपने अपने अहं की पुष्टि के लिए मुझे महापंडित कह दिया।

अब आगे

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वैसे भी विदेश में रहनेवालों को कोई महत्व नहीं दिया जाना चाहिए
आप वाकई गम्भीर हैंजब आप प्रधानमंत्री बन जायें तब सम्विधान में ऐसा लिखा दें। अगर अंग्रेज़ों की जगह आपका राज होता तो शायद गान्धीजी जैसों के बारे में यही प्रचारित कर रहे होते। BTW, Who are you to decide it? A self-proclaimed arrogant future PM? The world has already seen many dictators, can't tolerate anymore.
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अब दूसरी बात कि मैंने विदेश की बात की तो खुद गाँधीजी से तुलना(अप्रत्यक्ष ही सही) कर ली। अच्छा है तुलना घटिया लोगों से नहीं ही करनी चाहिए। जब आपने सवाल पूछा कि क्या मैं वाकई गम्भीर हूँ तो आपने जवाब का इन्तजार कियालेकिन यहाँ भी आपने द्वेषपूर्ण रवैया अपनाते हुए फिर सुझाव के साथ व्यंग्य कसा। एक बात कहूँ तो बुरा लगेगा और लगना ही चाहिए। जब हिन्दी प्रदेश में शराबी शराब पी लेता है तब वह अंग्रेजी झाड़ना शुरु कर देता है।

जब आप यह फैसला कर सकते हैं कि कौन असहिष्णु है और कौन दयालुकौन मौकापरस्त है और कौन नहींकौन क्रूर है और धर्महन्ता तो मुझे यह अधिकार कैसे नहीं है कि विदेशी भारतीय(मतलब विदेशों में रहनेवाले भारतीय- आप चाहें तो नाराज हो सकते हैं क्योंकि मैं कुटिलता से अपनी बात कहता हूँयह आपके शुभचिन्तक हंसराज ऐलान कर चुके हैं और इसलिए मैं कितनी भी टेढ़ी बात करूंइसमें कुछ बुरा नहीं क्योंकि बुरा आदमी तो बुरा ही कहेगा) के उपर अपने विचार रखूँहै कोई जवाबक्या आप तय करेंगे कि मैं क्या सोचूँ और क्या नहींजब आप इसके लिए स्वतंत्र हैं कि किसी को साहस नहीं करने वाला करार दें(चाहे वह जिस तरह कहा गया है। कहा तो किसी आदमी के लिए ही है) तो मैं क्यों नहीं?
यह तो वैसी ही बात हुई कि आप जो कहें वह सही और मै जो कहूँ वह गलत। यह एकांगी सोच कौन रखता है- मैं या आप?
यहीं नहीं रुके आप। अभी और कहते जा रहे हैं कि मैं तानाशाह हूँ(या बनना चाहता हूँ)। इतना ही नहीं आप मुझे मेरी इच्छाओं पर रोक लगाने जैसी बात सोच रहे हैं। एक स्वघोषित अहंकारी भावी प्रधानमंत्री - यही कहा है न आपने। जब आप व्यक्तिगत टिप्पणी कर सकते हैं तो और कोई क्यों नहीं। क्या आप अपने को बादशाह समझते हैं। यह भ्रम छोड़ दीजिए जनाब। आपको झेलने को कौन कहता हैआप इतने परेशान दिखते हैं सिर्फ़ मेरे ब्लाग के एक छोटे से शब्द-समूह से। आपमें कितना धैर्य हैइसका अन्दाजा है आपको(मैं अवगुणी हूँयह याद रखें इसलिए यह अपेक्षा आपसे और सिर्फ़ आपसे कर रहा हूँ)गाँधी वहाँ गए थे गुलामी के दौर में अपने पिता के भेजने के कारण और आप भूल रहे हैं कि वकालत के पढ़ाई की तत्कालीन राजधानी भारत न होकर इंग्लैंड थी। वह पैसे कमाकर इंग्लैंड को देने नहीं गए थे। यह बात भी मालूम होनी चाहिए। उस समय भारत की असली राजधानी यानि केंद्र दिल्ली नहीं इंग्लैंड हैक्या यह याद नहीं आपकोनिश्चित रुप से मैं नहीं जानता कि आप वहाँ क्या करते हैंलेकिन इतना मालूम है भारत को कोई लाभ नहीं पहुँचाते हैं। अगर मेरी बात झूठ साबित करनी हो तो बताइए कि देश को क्या क्या दिया है आपनेमुझसे यह सवाल पूछने के पहले बता दूँ कि अभी मैं छात्र हूँ और जीवन का छात्र हमेशा रहूंगाविद्वानों का कभी नहीं। जब लोग अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं कि भारत-अमेरिका परमाणु करार सही है या गलत तो आप कौन होते हैं मुझे इस बात पर सोचने से रोकने वाले कि विदेशों में जाना भारत के लिए फायदेमंद है या नहीं?

यह आपकी तानाशाही सोच को दर्शाता है मेरी नहीं।

इतना काफी होगा। आगे देखते हैं
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@क्योंकि यहाँ से भागकर अपने देश को अंगूठा दिखाकर झूठ-मूठ काबिल बनने से क्या होता है जनाब?
आप मुझे जाने बिना मेरे बारे में इतनी बडी बात कह रहे हैं कि यदि आप कभी अपनी बात के खोखलेपन को जानने लायक परिपक्व हुए तो अपनी उद्दंडता पर शर्म करेंगे। और अगर मुझे जाने बिना ही आपको यक़ीन है कि मैं किसे अंगूठा दिखाकर कैसे भागा हूँ तो फिर आप जैसे आदमी से बात करके मैं ही नहीं शायद बहुत से अन्य लोग अपना वक़्त बर्बाद कर रहे हैं क्योंकि वार्ता की भी एक मर्यादा होती है। "झूठ-मूठ काबिल बनने" और "सचमुच काबिल बनने" का परीक्षण कहाँ होता है और उसके प्रमाणपत्र कहाँ मिलते हैंयह भी बताते जाते तो शायद आगे से लोग आपकी बहस में प्रमाणपत्र लेकर ही घुसेंगे।
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इस सवाल का जवाब तो देना अभी भी आसान है लेकिन आपकी बात रह जाय इसलिए आप अपना विस्तृत परिचय बता दें। अब कहिएगा कि क्यों बताऊँतो मत बताइए। देश के सुधार के लिए आपने क्या किया हैअंगूठा दिखाकर भागने का मतलब यह था कि भारत में पढ़ लिखकर विदेशों में भागने का कोई आवश्यक कारण आपके लिए नहीं दिखा। आप ऐसे वैज्ञानिक भी नहीं कि अमेरिका में ही शोध कर सकें और उस शोध के लिए भारत में कोई व्यवस्था नहीं है।

जब भारत का एक आदमी विदेश भाग जाता है(जी हाँभाग जाता है) तब इस देश के पास एक दिमाग और दो हाथ कम हो जाते हैं। यह परम सत्य याद रखें जनाब।
अगर आपको इन जवाबों से फिर भी इस सवाल के जवाब से संतुष्टि नहीं मिले तो (जी हाँ सिर्फ़ इस सवाल के लिए) मैं आपसे माफ़ी मांगता हूँ। मैं माफ़ी चाहता हूँ कि मैं एक नहीं सौ भगतसिंह के बराबर एक आदमी से बात कर रहा हूँ और मैं खुद एक भगतसिंह के अरबवें हिस्से में नहीं आता।

झूठ-मूठ काबिल बनने का अर्थ अब साफ हो गया होगा, जहाँ तक मैं समझता हूँ।

इस सवाल का जवाब ज्यादा नहीं।

अब अगले सवाल पर
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@आपको नास्तिकता और आस्तिकता की समझ नहीं हैऐसा मुझे लगता है
आपके लगने से इस ब्रह्माण्ड को कोई फर्क पडने वाला है क्याब्रह्माण्ड के अनंत काल में आपका यहाँ अस्तित्व है ही कितनी देर काआपकी सारी बहस कुछ एक दशकों में मिट्टी होने वाली है। याद रखिये एक शताब्दी के अन्दर न आप यहाँ होंगे न ऐसा एक भी व्यक्ति जिससे बहस करके आप अपने अहम को पोषित कर रहे हैं। आप नास्तिक हैं तो रहिये। Who cares! लेकिन अगर स्टालिनमाओ जैसे तथाकथित नास्तिक तानाशाहों की तरह सारी दुनिया को ज़बर्दस्ती धर्मविरोधी बनाना चाहेंगे तो याद रहे कि उनके सपने भी उन्हीं के साथ दफन हो गये।
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आप कैसे कह सकते हैं कि मैं सारी दुनिया को धर्मविरोधीवह भी जबरदस्ती बनाना चाहता हूँहर बार ऐसा लगता है कि आपके अहंकार को जबरदस्त ठेस पहुँचने से बौखलाए हुए हैं। इस बार के सवाल में आप प्रवचन करते नजर आ रहे हैं। आपको मेरे नास्तिक होने की चिन्ता करने की क्या जरूरत आन पड़ी कि हू केयर्स का अंग्रेजी वाक्य चिपका गए। आप अंग्रेजी का प्रकोप बार-बार झेलते हुए नजर आते हैं। मैं भी झेलते हुए नजर आता हूँ लेकिन अपनी जिंदगी में अंग्रेजी को घटाने पर लगा हुआ हूँ।
माओ के सपने को छोड़िए लेकिन चीन याद रहे और आप इतने महान हैं तो चीन से अपनी जमीन(गलती हो गईअपनी नहीं भारत देश की)छीन कर या मांगकर ला देते हैं?

माओ की बदौलत ही आज चीन आज का चीन है। स्टालिन मरा तो क्या हुआआपको कौन याद रखेगास्टालिन आपसे ज्यादा मायने रखता है। ब्रह्मांड में न तो मैं ज्यादा दिनों का मेहमान हूँ और न आप लेकिन आप मुझपर ही वाक्य झाड़ रहे हैंझाड़ लीजिएजितना मन हो क्योंकि मन का गुबार निकाल ही लेना चाहिए। क्यों?

और मेरे इस बात का कि मुझे लगता है कि आस्तिकता और नास्तिकता की समझ आपको नहीं हैयह जवाब भी नहीं है जो आपने दिया है। कहीं से नहीं एक प्रतिशत  भी नहीं।
जब मैंने अपनी क्षमता स्वीकार करते हुए कहा कि मुझे लगता है  और आपने कहीं अपने को ज्ञानी समझने से ऐतराज नहीं कियातो खुद सोच लें कि अहंकारी कौन है?

हाँ आपने कहा कि स्टालिनमाओ की तरह यानि आप फिर अपनी मशीन से मेरे वाक्य और मेरे दिमाग का हिसाब-किताब कर रहे हैं। यह आप कैसे सोच सकते हैं जबकि  मैंने स्टालिन और माओ का नाम तक नहीं लिया।

आपको नास्तिकता से और आस्तिकता से कोई झगड़ा तो है नहीं और अन्त में कह  क्यों डालते हैं आप नास्तिक हैं तो रहिये। Who cares!
यहीं आपकी पोल पट्टी और असलियत सामने आ जाती है कि आप सारे बहस करने वालों के प्रतिनिधि जैसे स्वर में अपना निर्णय सुना डालते हैं। जिस बहस में नास्तिक आस्तिक अपनी अपनी बात कह रहे थे(भले ही कुछ तीखे स्वर में वह भी हमेशा नहीं) उसका नेता बनकर अपना यह फैसला सुनाया क्यों आपने जब आपको कोई चिन्ता नहीं है?

और जहाँ तक लगने की बात है शायद आपके लगने से कुछ फर्क पड़ जाता है या कुछ भविष्य में हो जायेक्यों?

अब आगे बढ़ते हैं
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@ऐसे नास्तिकों की गिनती बताइए जिन्होंने संसार को खराब किया और ऐसे आस्तिकों की गिनती खुद कर लें जिन्होंने देश और संसार को क्या दिया?
अगर अभी तक आपने खुद ही इस सवाल का उत्तर नहीं ढूंढातो अभी बहसों में पडने से पहले थोडा होमवर्क कीजिये। फिर भी एक क्लू देता हूँ कि हिंसक कम्म्युनिस्ट तानाशाहविचारक और उनके रक्त-पिपासु चमचे अपने को नास्तिक ही कहते रहे हैं। गिनना शुरू कर दीजिये।
जय राम जी की! खुदा हाफिज़। गुड बाय (यह गुड भी गॉडली ही है)

25 June, 2011 08:55

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दुनिया के 50 से ज्यादा देशों पर राज करने वालेभारत के दस लाख से ज्यादा क्रांतिकारियों को जान से मारने वालेभारत से खरबों लूट ले जाने वाले आस्तिक थे और वे थे अंग्रेजभारत पत आज तक जितने आक्रमण हुए हैं उनमें 1962 के चीनी आक्रमण के अलावे कोई आक्रमण शायद ही ऐसा रहा है जब आक्रमणकारी आस्तिक न हो।

बलात्कार को मैं हत्या से बड़ा जुर्म मानता हूँ। और संसार के सारे बलात्कारी में से कितने नास्तिक हैंयह बताइए?

वैसे मैं साफ कहना चाहता हूँ कि नास्तिक का मतलब भले ही ईश्वर से है लेकिन मानवता नास्तिकों में ज्यादा है। इस बात का प्रमाण चाहिए तो बताऊँ कि आपने कितने लोगों के नाम लिए स्टालिनलेनिनमाओ जैसे कितने नाम हैं इतिहास में।
लेकिन ईसाई अंग्रेजआतंकवादी के लिए मशहूर(मेरा मतलब सिर्फ़ आतंकवादी से है) धर्मपरमाणु बम बनानेवाले और गिरानेवाले सब आस्तिक ही तो थे या हैं।
फिर भी एक क्लू देता हूँ कि हिंसक कम्म्युनिस्ट तानाशाहविचारक और उनके रक्त-पिपासु चमचे अपने को नास्तिक ही कहते रहे हैं। गिनना शुरू कर दीजिये।

यह वाक्य आपकी मानसिकता और निशान्त की मानसिकता को साफ करती है। निशान्त ने कहा था कि नास्तिक को पापी और दुष्ट ही माना जाता है और वहाँ तो भाषण दे रहे थे आप और यहाँ वही बात दुहरा बैठे। कब तक छलिए खुद को।
और हाँ विश्वविजेता बनने का ख्वाब देखने वाले - सिकन्दरहिटलरअंग्रेजचंगेज खाँनेपोलियन सब आस्तिक थे। इससे तो पता चलता ही है कि साम्राज्यवाद कौन चाहता हैपूँज़ीवादलूटशोषण कौन चाहता हैकम्युनिस्ट बेशक हिंसक रहे हैं (हालांकि 100 प्रतिशत सही नहीं कह सकते) लेकिन कितने नास्तिक को आप जानते हैं जिसने दुनिया में खुद को तानाशाह या साम्राज्य का सम्राट बनाने की कोशिश की। सबसे सफल और भारत से जुड़ा मामला अंग्रेजों का हैं। वे ईसाई धर्म को मानते हैं और आस्तिक हैं।

निस्संदेह हिंसा का निंदक हूँ मैं लेकिन उसी रुप में जैसे भगतसिंह ने हिंसा की निंदा की है।
यह भी बता दूँ शाकाहारी हूँ जिससे मालूम हो जाय कि हिंसा का मेरे जीवन में क्या स्थान है?

अब आगे और तमाशा देखिए।
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VICHAAR SHOONYA ने कहा
सुज्ञ जीचन्दन कुमार मिश्र जी किस बहस की बात कर रहे हैं , क्या कुछ लिंक मिलेगा.

@चन्दन जी अपने नाम के विपरीत आप गरम दल के मालूम होते हैं. आपको मुफ्त में एक सलाह दूंगा (वैसे मुफ्त में भी दो की चाह रखेंगे तो दो सलाहें भी दे दूंगा). किसी भी विषय में वाद विवाद करते वक्त किसी पर भी व्यक्तिगत आक्षेप करने से पहले कम से कम दस दुसरे ब्लोग्स पर जाकर टिप्पणियां कर लिया करें. आपका क्रोध शांत हो जाया करेगा.
25 June, 2011 10:18

 चंदन कुमार मिश्र ने कहा
नाटक में एक और पात्र! विचार शून्य जी। अहा!
25 June, 2011 10:24 
 चंदन कुमार मिश्र ने कहा
anvarat.blogspot.com/2011/06/blog-post_19.html

http://zealzen.blogspot.com/2011/06/blog-post_22.html

वैसे नाम बड़ा अच्छा रखा है विचार शून्य जी। लीजिए लिंक और तमाशा देखिए।
25 June, 2011 10:33
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विचार शून्य का नाम और तस्वीर बहुत अच्छी लगी। इसलिए बोला कि नाम बड़ा अच्छा रखा है लेकिन इस हंसराज महाराज को इसमें अपनी नजर के चलते अपमान दिख गया।
विचार शून्य को मैंने कहीं से एक भी बुरी बात नहीं कही न ही किसी किस्म का अपमान किया है। मैंने यह कहा कि नाटक में एक और पात्र तो उसके पीछे मेरा कोई गुप मतलब नहीं था। लेकिन हंसराज जी हंस हैं नीर क्षीर विवेक तो है हीपहचान लेंगे।
विचार शून्य को मैंने लिंक दे दियाउन्होंने कहा था कि किस बात की बहस हो रही हैबस इस बात से भी हंसराज जी पर पहाड़ टूट पड़ा।

मैंने कभी किसी एक आदमी के लिए इतना लम्बा जवाब नहीं लिखा।
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सुज्ञ ने कहा
चंदन कुमार मिश्र जी,
आप विद्वानों की सभा में अभिव्यक्ति के योग्य ही नहीं है।
आपको यह भी नहीं पता चर्चा कैसे की जाती है।
श्रीमान अनुराग शर्मा जी(स्मार्ट इन्डियन)प्रथम पंक्ति के विद्वान ब्लॉगर है। वे विदेश में होकर भी भारतीय संस्कृति के पुरोधा है। पहले उनके ब्लॉग पर जाकर उनके व्यक्तिव को देखोंउनके सामनें खुद बौने नजर आओगे। आपका दुस्साहस कैसे होता है वैचारिक चर्चा में व्यक्तिगत मिथ्या प्रलाप करने का।
और दीप पाण्डेय जी (विचार शून्य) भी एक विशिष्ठ चिंतक है। उनके मौलिक विचारों को जानिए फिर किसी के बारे में कहनें की हिम्मत करिए।
मेरा ब्लॉग विद्वानों के अपमान के लिए नहीं है। वे विद्वान भी जो मेरे विचारों से विपरित विचार ही क्यों न रखते हो।
मैं नास्तिकों का पूरा सम्मान करता हूँ। बस उनकी विचारधारा पर चिंतन करना ही इस तरह के लेखों का उद्देश्य होता है। किन्तु आप जैसी तुच्छ सोच अगर सभी नास्तिकों की होती हो तो नास्तिकों से घृणा होना स्वभाविक है। आप इस ब्लॉग पर चर्चा के लिये गैर-लायक है। यहाँ दोबारा न रूख न करें।
मैनें आज तक किसी ब्लॉगर का अपमान नहीं किया। आप बिना शर्त अनुराग जी से माफ़ी मांगे। और यहां दोबारा न पधारें।
25 June, 2011 11:24
 सुज्ञ ने कहा
आदरणीय अनुराग शर्मा जी एवं मान्यवर दीप पाण्डेय जी,
मेरी नेट पर अनुपस्थिति में द्वेषी मानसिकता नें मेरे ब्लॉग मंच का उपयोग करके आपके बारे में जो अनर्गल प्रलाप किया उसके लिए मैं हृदय से क्षमाप्रार्थी हूँ।
25 June, 2011 11:33
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हंसराज जी ने धार्मिक धारावाहिकों के अन्दाज में कहा कि दुस्साहस कैसे किया मैंनेऔर एक शाश्वत झूठ जो आस्तिक अक्सर बोलते हैं(कम से कम ब्लाग पर तो जरूर-100 नहीं तो 99 प्रतिशत) कि वे आस्तिक का सम्मान करते हैंयह सरासर झूठ है। इसका सबूत है और आप देख रहे हैं उनके कुछ कुछ चापलूसी भरे वाक्य कि कहीं आका नाराज न हो जायें। मुझे आकाओं से क्यों डर होऔर माफ़ी तो सिर्फ़ एक बात के लिए मांग सकता हूँ क्योंकि और कोई बात गलत ही नहीं है।

सुज्ञ की अन्तिम टिप्पणी मेरे बारे में

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सुज्ञ ने कहा
@"मुझे लगता है कि न केवल ब्लौग जगत में बल्कि सम्पूर्ण समाज में नास्तिकों या अज्ञेयवादियों को पापी और दुष्टात्माओं के रूप में ही जाना जाता है."
माननीय निशांत जी,
वस्तुतः विद्वज्ञ नास्तिकों को सम्मान ही मिलता हैऔर उनकी वैचारिकता पर मनन भी होता है। किन्तु कईं नव-नास्तिकनास्तिकता में द्वेष युक्त अतिक्रमण करते हैचन्दन कुमार मिश्र जी का उदाहरण आपके सामनें है। इस प्रकार के नास्तिक लॉजिक से चर्चा करनें की जगह ईश्वर का अपमानआस्तिकों को मूर्ख आदि कुटिलता का प्रयोग करने लगते है। इनकी यहीं कुत्सित मानसिकता 'दुष्टात्माकहलवाने का सबब बनती है। अन्यथा नास्तिकता और वह भी विभिन्न रूपों में समाज में स्वीकृत है।
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अब एक बात विदेशी भारतीय लोगों के लिए। आपको ऐतराज हो तो जताते रहिए।

भारत में कोई हिन्दी की सौ किताबें लिखे तो कुछ नहीं लेकिन अमेरिका और दूसरे देशों में जाकर एक घटिया किताब भी लिख दे तो सरकार और समाज की नजरों में बड़ा हिन्दी और देश का प्रेमी हो जाता है। ठीक वैसे ही जैसे आप हिन्दी या संस्कृत के महान आचार्य हों तब भी आपकी कोई पूछ नहीं लेकिन दस शब्द जानने वाले अंग्रेजी स्पोकेन कोचिंग चलाने वाले के पास पचास साइकिल तो दिख
ही जाती है।

जैसे भारत में आप की पूछ कोई हो चाहे मत हो लेकिन आप अमेरिका में भोजपुरी सम्मेलन कर लीजिए या पचास लोगों के साथ छठ मना लीजिए तो आप भारत प्रेमी और भारतीय संस्कृति के पुरोधा हो जाते हैं।
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अब निष्कर्षत: सुनिए। मुझे इन सबने मिलकर अज्ञानी(क्योंकि मैं दिद्वानों की सभा के लायक नहीं यानि हंसराज उर्फ़ सुज्ञ सहित यहाँ आने वाले तमाम लोग खुद को विद्वान घोषित करते हैं)दुष्टदुष्टात्माअहंकारीद्वेष युक्ततानाशाही सोच काधर्मविरोधीधर्महन्ताअति-असहिष्णुउल्लू सीधा करनामौकापरस्तआड़ लेनामेरी बातों को फालतूकायर और कुछ कुछ कहा। और खुद को कहीं दोषी नहीं पाते।

अन्त में इतनी बातें बहुत थीं और समय भी लगा लिखने में। और इसको फिर से देखने की फुरसत मेरे पास नहीं है। इसलिए कुछ गलतियाँ टंकण के दौरान हुई होंगी। उस पर ध्यान न दें।


चलते चलते एक श्लोक:

दुर्जन: परिहर्तव्य: विद्ययालंकृतोSपि सन्।
मणिनाविभूषित: सर्प: किमसौ न भयंकर:॥

घबड़ाइए नहीं। अब नहीं आऊंगा।

6 टिप्‍पणियां:

  1. चन्दन मिश्र,

    तुम्हारा ईमेल मिला। मैने तो तुमसे कोई प्रश्न पूछा ही नहीं, फिर भी लम्बे जवाब देने और मेरे ऊपर एक पूरी पोस्ट लिखने और इतना समय देने का शुक्रिया!

    बाकी, पोस्ट के सारे अनुमान तुम्हारे अपने हैं, यदि कभी सिद्ध हो जायें तो एक ईमेल और कर देना, तब फुर्सत में पढ लूंगा।

    शुभकामनायें,
    अनुराग.

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  2. आपको अपने विषय की गहन जानकारी है |
    नमन ||

    भावों का बहुत ही जबरदस्त प्रगटीकरण ||


    सोखे सागर चोंच से, छोट टिटहरी नायँ |
    इक-अन्ने से बन रहे, रुपया हमें दिखाय ||

    * * * * *
    सौदागर भगते भये, डेरा घुसते ऊँट |
    जो लेना वो ले चले, जी-भर के तू लूट ||
    * * * * *
    कछुआ-टाटा कर रहे , पूरे सारोकार |
    खरगोशों की फौज में, भरे पड़े मक्कार ||
    * * * * *
    कोशिश अपने राम की, बचा रहे यह देश |
    सदियों से लुटता रहा, माया गई विदेश ||
    * * * * *
    कोयल कागा के घरे, करती कहाँ बवाल |
    चाल-बाज चल न सका, कोयल चल दी चाल ||
    * * * * *
    रिश्तों की पूंजी जमा, मनुआ धीरे खर्च |
    एक-एक को ध्यान से, ख़ुशी-ख़ुशी संवर्त ||
    * * * * *
    प्रगति पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी बाज |
    लेना-देना क्यूँ करे , सारा सभ्य समाज ||
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    कुर्सी के खटमल करें, चमड़ी में कुछ छेद |
    मर जाते अफ़सोस कर, निकले खून सफ़ेद ||

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  3. बड़े अच्छे सुझाव,

    कुछ दोहे ब्लोगों पर की गई टिप्पणी से हैं |

    सुधार एक सतत प्रक्रिया है, लगा हूँ |
    आभार

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  4. ईश्‍वर, आस्तिकता का मामला, आस्‍था, विश्‍वास और निजी मान्‍यताओं का होता है, हम में से ज्‍यादातर इस पर बहस नहीं करना चाहते या (कर नहीं सकते, करना चाहिए भी नहीं) करने पर स्‍वाभाविक ही उत्‍तेजित होने लगते हैं, क्‍योंकि मामला तर्क-प्रमाण का नहीं, भरोसे का होता है. ऐसी बहसों से जो अपना मन साफ रख सके या कर सके वही इसका सुपात्र, अन्‍यथा चर्चा-बहस (शास्‍त्रार्थ) के लिए पात्र ही नहीं. इस सघन बैद्धिक चर्चा में उपस्थित हो कर ही काफी अच्‍छी खुराक मिली.

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  5. तथाकथित आस्तिकता की गंदी कार्यप्रणाली से आम जनता वाकिफ़ होती जा रही है. आशा है कि इस तरह की आस्तिकता का स्थान धीरे-धीरे मानवीयता लेगी. आपकी जानकारी के लिए दो लिंक भेज रहा हूँ जो आपके लिए रुचिकर हो सकते हैं

    1. http://hinessight.blogs.com/church_of_the_churchless/

    2.http://nirmukta.com/2010/08/01/charvakas-sweet-tongued-rebels/

    दुनिया में प्रत्येक तर्क का वितर्क होता है. जहाँ वितर्क नहीं होता वहाँ कुतर्क भी प्रयोग में लाया जाता है. मेरे एक मित्र कहा करते थे कि जब किसी तर्क को काटना हो तो सामने वाले के शब्दों में थोड़ा परिवर्तन करके प्रश्न के रूप में उछाल दो तो तर्क-वितर्क में हारोगे नहीं. मैं आपको ऐसा करने की सलाह नहीं दे रहा अपितु ब्लॉगी बहस का स्वरूप समझने में यह बात आपकी मदद करेगी. कहने का तात्पर्य यह कि ब्लॉगी बहस को अति गंभीरता से न लें. 'निर्मुक्त' ब्लॉग से जुड़े लोग अपनी क्रियात्मक ऊर्जा का अधिकतर उपयोग ब्लॉग की दुनिया से बाहर करते हैं.

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