पिछले दिनों महाशक्ति के चिट्ठे यानि ब्लॉग पर चला गया। वहाँ मुख्य पृष्ठ पर अंग्रेजी में नामित एक तरफ़ एक स्तम्भ जैसा है जिसमें गाँधी जी पर छ: आलेखों के लिंक हैं। इन आलेखों में मैंने पाँच आलेखों पर अपनी टिप्पणी की। वहाँ देखा कि महाशक्ति भाई और एक अन्य भाई दोनों बड़े परेशान हैं कि गाँधी जी को राष्ट्रपिता नहीं रहने देना है। यह लिखते वक्त मुझे एक एकांकी याद आ रही है जो कुछ साल पहले सुमन-सौरभ में छपी थी जिसमें गांधी जी कहते हैं कि वे साठ सालों से देश में राष्ट्रपिता का पद संभाल रहे हैं और अब उन्हें आराम चाहिए। किसी भी सेवा में कार्यरत आदमी को भारत में साठ-बासठ या पैंसठ साल की उम्र में सरकार सेवानिवृत्त कर देती है, तो उन्हें क्यों अभी तक सेवा से मुक्त नहीं किया गया।
"कैसा प्रदर्शन, क्या सिर्फ पुलिस की गालियाँ और मार खाने के लिए…हरगिज नहीं! इस तरह का कोई भी कदम मैं उस समय तक नहीं उठाऊंगा, जब तक मेरे पास एक अदद बंदूक न हो" - चे ग्वेरा
शुक्रवार, 1 जुलाई 2011
गुरुवार, 30 जून 2011
ज़िंदग़ी(कविता)
कल मुझे मिला
एक दवा का दुकानदार
उसने कहा मुझसे
साहब! नज़र नहीं आ रहे काफ़ी दिनों से
दवा नहीं ले जा रहे मेरी दुकान से
घर में सब ठीक तो हैं?
(यह कविता 2009 में लिखी गई थी। हो सकता है इसका शीर्षक उतना उचित नहीं जान पड़े।)
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बुधवार, 29 जून 2011
आर्य सचमुच कहीं बाहर से आए थे?
मुझे इतिहास का ज्यादा पता नहीं, भविष्य में इसपर कुछ अध्ययन और सम्भव हुआ तो शोध का विचार है लेकिन इस बार आपको एक बहुत बड़े विद्वान और आलोचक रामविलास शर्मा की कही बात पढ़वा रहा हूँ, जो निश्चित रुप से सोचने को मजबूर करती है। यह एक साक्षात्कार का अंश है जो आप यहाँ पढ़ सकते हैं। आप यह साक्षात्कार अवश्य पढ़ें क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण है।
महाभारत का सबसे मूर्ख पात्र कौन? कृष्ण या अर्जुन
महाभारत की घटना कभी हुई है, इसमें मुझे संदेह है। लेकिन जगह-जगह जीवन के अलग-अलग मौकों पर महाभारत की कहानी से कुछ उपमाएँ हमारे यहाँ दी जाती रही हैं। या फिर मौके-बेमौके पात्रों की तुलना हम लोगों से भी करते रहते हैं जैसे हमारे यहाँ चुप्पी से भीष्म का, कुटिलता से शकुनी मामा का, मोह से धृतराष्ट्र का, ताकत या ज्यादा खाने या विशाल शरीर से भीम का तो सीधा संबंध ही मान कर चला जाता है। इसी क्रम में मैं आज महाभारत और उस युद्ध में शामिल एक प्रमुख पात्र अर्जुन पर कुछ विचार रखना चाहता हूँ। यद्यपि यह मैं मानता हूँ कि यह कहानी वास्तविक नहीं है, फिर भी इस पर अपने ये विचार रख रहा हूँ।
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महाभारत का सबसे मूर्ख पात्र
मंगलवार, 28 जून 2011
भगतसिंह के नास्तिक होने की बात को ही झुठलाने की कोशिश
भगतसिंह और नास्तिकता का मुद्दा अभी भी जोरों पर है। कल वाली पोस्ट के बाद भी टिप्पणियों का शोर थमा नहीं है। मैं खुद चकित हूँ कि इस तरह टिप्पणियाँ होती रहीं, तो कुछ ही दिनों में किताब का रुप अख्तियार कर लेंगी। फिर मैं आपके सामने आगे की टिप्पणियाँ दे रहा हूँ। कुछ चीजें जो व्यक्तिगत हैं, उन्हें देने की कोई जरूरत तो नहीं है लेकिन उन्हें हटाने से कुछ बातें स्पष्ट नहीं हो पाएंगी और वैसे भी चिट्ठा यानि ब्लॉग है तो कुछ कुछ डायरी जैसा भी।
पहले की टिप्पणियों के लिए पिछली पोस्ट देखें। इस बार दो नए लोग बहस में शामिल हुए हैं। पहले आते हैं अमर कुमार जो कुछ देर के लिए अपनी बात या कहिए आपत्ति रखते हैं और बाद में स्मार्ट साहब अपनी बात कह जाते हैं। थोड़े गुस्से में हैं। तभी आगमन होता है इस नाटक के एक नए पात्र ग्लोबल अग्रवाल का जो भगतसिंह के नास्तिक होने पर ही सवाल खड़ा करता आलेख थमा जाते हैं। मैंने उनकी हर बात का जवाब अपनी समझ से देने की कोशिश की है। यह बहस अभी चलती रहेगी या समाप्त भी होगी, यह नहीं कहा जा सकता।
सोमवार, 27 जून 2011
अब भगतसिंह के 'मैं नास्तिक क्यों हूँ' पर ही उठा दी गई अंगुली
जी हाँ। अब भगतसिंह के लिखे आलेख 'मैं नास्तिक क्यों हूँ' पर ही अंगुली उठाते हुए पिछली पोस्ट वाले स्मार्ट इंडियन अपने शक की सूई चुभोना चाह रहे हैं। इस आलेख में मैं अनवरत पर हुई चर्चा के उन अंशों को दे रहा हूँ जिनमें भगतसिंह के आलेख पर संदेह किया गया है।
मैं अक्सर अपनी टिप्पणियाँ दूसरे चिट्ठों पर करता हूँ और वह इस लायक हो जाते हैं कि उन्हें पूरे आलेख में आपके सामने रखा जा सकता है। मेरा मानना है कि इस तरह की टिप्पणियों वाले आलेखों में अच्छी बातें सामने आती हैं। अब अफसोस इस बात का है कि ऐसा करते समय किसी खास आदमी को केंद्र में रखना पड़ जाता है। और यह अच्छा नहीं लगने पर भी करना आवश्यक लगता है क्योंकि बहुत सारे सवाल-जवाब के क्रम में बहुत सी नई बातें और विचार सामने आते हैं। इसलिए आज पढ़िए यह आलेख।
रविवार, 26 जून 2011
लीजिए सुन लीजिए मेरे जवाब
(http://shrut-sugya.blogspot.com/2011/06/blog-post.html पर स्मार्ट इंडियन के सवालों और हंसराज यानि सुज्ञ की बातों के जवाब जो मैंने सुज्ञ के चिट्ठे पर दिया है, यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ। माफ़ी चाहता हूँ कि ऐसी चीज डालनी पड़ी लेकिन जवाब देना मेरे खयाल से आवश्यक था। यह जवाब इतना लम्बा हो गया कि इसमें 6000 शब्द लग गए। इतने लम्बे आलेख या जवाब को पढ़ने के लिए समय तो ज्यादा लगेगा लेकिन उम्मीद करता हूं कि आप भी कुछ समझ पाएंगे इससे।)
शनिवार, 25 जून 2011
ईश्वर है ?
(आज से लगभग डेढ़ साल पहले एक आलेख लिखा था, वही आपके सामने है। मेरे विचारों में थोड़ा अन्तर भी आया है और समय के साथ आते रहना चाहिए क्योंकि यही चेतन होने का प्रमाण है। जड़ चीजों में परिवर्तन नहीं होता।
कुछ बातें अगर किसी को दु:ख पहुँचायें तो माफी चाहूंगा।)
दुनिया के प्रायः सभी धर्म ईश्वर को ही इस संसार का रचयिता मानते हैं। ईश्वर को सर्वशक्तिमान, अत्यंत दयालु और न जाने क्या –क्या कहा जाता है। कोई भी पूरी तरह से सुखी नहीं है। गरीब के दुखों के बारे में पूछना तो बेकार ही है। अमीरों के दुखों की कहानी भी कम नहीं है। किसी को औलाद नहीं है, का दुख है। कोई बेरोजगार है, इसलिए दुखी है। जिसके पास नौकरी है, औलाद है, दौलत है सब कुछ है, उसे भय है चोरी का, औलाद के बुरे हो जाने का, नौकरी छिन जाने का और न जाने और कितने ही भय से वह आक्रांत है।
शुक्रवार, 24 जून 2011
कहीं यह इलेक्ट्रान ही भगवान तो नहीं है?
जिन लोगों ने थोड़ा सा भी विज्ञान पढ़ा है उन्होंने निश्चय ही परमाणु संरचना पढ़ी होगी। ईश्वर की सत्ता स्वीकार करनेवालों का कहना है कि ईश्वर कण-कण में विद्यमान है। हवा में भी, पानी में भी, जहर में भी, शराब में भी, दूध में भी, माटी में भी, आग में भी, कुर्सी में भी, आदमी में भी, लादेन में भी, जार्ज बुश में भी, मनमोहन सिंह में भी, कांग्रेस में भी, सोनिया गाँधी में भी, भगतसिंह में भी, सैंडर्स में भी, राबर्ट क्लाइव में भी, सिराजुद्दौला में भी, कमीने मीरजाफ़र में भी, आतंकवादी में भी, सेना में भी, भ्रष्टाचार में भी, भ्रष्टाचार के विरोध में लड़ने वाले में भी, चोर में भी कोतवाल में भी यानि हर जगह। क्या अद्भुत विचार है!
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इलेक्ट्रान,
ईश्वर,
भगवान
गुरुवार, 23 जून 2011
आधुनिक भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन है 23 जून
23 जून 2011 यानि भारत के महापतन का 244 साल पूरे हो गए। जी हाँ, 23 जून 1757 के दिन ही भारत में अंग्रेजी राज्य का संस्थापक राबर्ट क्लाइव भारत में विजेता बना था। सिराजुद्दौला की हार का कारण बना था मीरजाफर। अलग अलग जगहों पर भारतीय सेना और ब्रिटिश सेना की संख्या अलग-अलग दी गई है लेकिन हर जगह एक बात साफ है यह युद्ध लालच और पदलोपुपता के चलते हारकर भारत ने अपने इतिहास में सबसे काला दिन लिख दिया। इस वजह से अंग्रेजी सरकारों और गद्दार हिन्दुस्तानियों के चलते हमारे देश के लाखों लोग मारे गए। अगर देखा जाए तो सबकी मौत का कारण है- अकेला मीरजाफर। यह दुष्ट सिराजुद्दौला की सेना का सेनापति था। सिराजुद्दौला जिसने सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ने की ठानी लेकिन बेचारा देश को बेचने वालों की वजह से मारा गया।
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| उसी पलासी के मैदान का रेखाचित्र जहाँ 23 जून 1757 को सिराजुद्दौला के सैनिकों ने देश के लिए अपनी जान गँवाई। |
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23 जून 1757,
काला दिन,
भारत
एक अधूरा लेख
पिछले दो-तीन दिनों से ईश्वर पर बहस अभी ढंग से खत्म नहीं हुई कि आज पुनर्जन्म को लेकर फिर बहस छिड़ गई। सवाल पर सवाल और बस सवाल पर सवाल। वही पुराना झगड़ा ईश्वर है कि नहीं। वैसे एक बात ध्यान देने लायक है कि जब भी बहस होती है तो ईश्वर शब्द ही क्यों आ जाता है, भगवान या खुदा क्यों नहीं। इसमें कुछ बात हो सकती है। फिलहाल मैं कुछ बातें आपसे कहना चाहता हूँ। कुछ सवाल मुझसे पूछे गए थे और कुछ मैंने भी पूछे। मुझे अपने सवालों के सही जवाब की आशा नहीं है क्योंकि लालबुझक्कड़ लोग सवालों का जवाब क्या देंगे, वे और उनकी समझ खुद ही एक सवाल बन जाते हैं।
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ईश्वर
शनिवार, 18 जून 2011
देशभक्ति और ग्लोबल सिटिजनशीप
पहले एक व्यक्ति से आपका परिचय कराते हैं। एक परिचित हैं मेरे। नाम नहीं लूंगा। नेपाल के रहनेवाले हैं। मेरे साथ दो-तीन साल तक पढ़ते रहे हैं। उनका एक बार-बार दुहराया जानेवाल कथन था(शायद अब भी हो)- आई हेट हिन्दी। अंग्रेजी को खूब पसन्द करते हैं। वे हमारे देश के वासी नहीं हैं। इसलिए मुझे उनसे हिन्दी को लेकर ज्यादा बहस नहीं करनी होती है।
मैंने उन्हें बताया है कि मैं अंग्रेजी के खिलाफ़ एक किताब लिख रहा हूँ। ये बात वे जानते हैं। यहाँ सबसे बड़ा मुद्दा है देशभक्ति और ग्लोबल सिटिजन होने का।
उनका एक मेल आया है मेरे पास। उसके कुछ अंश पढ़िए।
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ग्लोबल सिटिजनशीप,
ग्लोबलाइजेशन,
देशभक्ति
शुक्रवार, 17 जून 2011
मजेदार पत्र-व्यवहार एक ज्योतिषी से
एक दिन पहले एक ज्योतिषी की जाँच करने की इच्छा हुई। मैंने अपना नाम, जन्म तिथि और जन्म स्थान लिखकर भेज दिया। जवाब आया। मैंने फिर अपना जवाब भेज दिया। उन्हीं संदेशों को यहाँ रख रहा हूँ कि मेरी समझ में थोड़ा मजा आएगा ही।
मैं उन ज्योतिषी महोदय का नाम यहाँ नहीं दे रहा हूँ क्योंकि वे भी चिट्ठेकार(ब्लागर) हैं। वैसे उनको वत्स शब्द से संबोधित करने की इच्छा हो रही थी।
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