शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

जय हे गांधी ! हे करमचंद !! (कविता)

गाँधी जी …मैंने 5-6 कविताएँ-गीत उनके ऊपर लिखे हैं। अन्तिम बार आज से पाँच-छह साल पहले। अब कविता लिखना कम हो गया है। पुरानी कविताएँ यहाँ पढ़वाता रहा हूँ। फिर एक पुरानी कविता लेकर हाजिर हूँ। सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता 'वीरों का कैसा हो वसन्त' हमारी पाठ्यपुस्तक में पढ़ने को मिली थी। उसी तर्ज पर गाँधी जी पर कविता लिखने का खयाल हुआ था। दसवीं कक्षा में था, तब इसका एक-दो अंश लिखा था। बाद में सारी कड़ियाँ पूरी हुई थीं। हालांकि छूटी हुई रचनाएँ शायद ही पूरी हो पाती हैं। गाँधी जी पर लिखी अन्य कविताओं को भी यहाँ रखूंगा। दो अक्तूबर को अपनी प्रिय रचना जो मूलत: गीत है, गाँधी जी के ऊपर लिखी गयी है, वह भी रखूंगा। आइये, देखिए क्या बकवास किया था कभी। प्रवाह कहीं कहीं टूटा भी है। 


कर रहे नमन हम बार-बार
युग करता फिर तेरी पुकार
बापू तेरी महिमा अपार
युग के विकास की गति मंद ।
जय हे गांधी ! हे करमचंद !!


भारत का अधनंगा फ़क़ीर
था कर्मवीर औ महावीर
परवशता की तोड़ी जंजीर
अब परवशता का द्वार बंद ।
जय हे गांधी ! हे करमचंद !!

अब देख देश होता विषाद
आते तुम बापू सदा याद
बढ़ता जाता पाश्चात्यवाद
हैं सब-के-सब पूरे स्वच्छंद ।
जय हे गांधी ! हे करमचंद !!

रोती सब जनता दिग्दिगन्त
समस्याओं का नहीं अन्त
दुर्दशा देश की है अत्यन्त
सद्धर्मी अब हुए चंद ।
जय हे गांधी ! हे करमचंद !!

संस्कृति पर आया संकट
लगती जाती पश्चिम की रट
क्या भरा नहीं अब पापघट
कहीं दिखता क्या अब पाबंद ?
जय हे गांधी ! हे करमचंद !!

है आख़िर वह गोपाल कहां
है पापीजन का काल कहां
अपराधारि नंदलाल कहां
आंखें क्या उसकी हुईं बंद !
जय हे गांधी ! हे करमचंद !!
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(आज 23 सितम्बर है। रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्मदिन। 'दिनकर' ने भी 'बापू' लिखी थी। जब मैंने नया-नया लिखना शुरू किया था, तब एक कविता दिनकर पर भी लिख डाली। उल्लेखनीय तो नहीं ही है, लेकिन पढ़वा दे रहा हूँ। इससे कुछ उम्मीद न की जाय। आखिर नवीं-दसवीं का छात्र लिखेगा क्या? 'कलम आज उनकी जय बोल' के इस रचनाकार पर यह भी याद आता है कि 'जब नाश मनुज पर छाता है। पहले विवेक मर जाता है' और 'कुरुक्षेत्र' की बहुत सी पँक्तियाँ लोगों की जबान पर सूक्तियों की तरह बैठ चुकी हैं।)



दिनकर
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माता भारती ने भारत को,
                      साहित्य का वह नवरत्न दिया ।
जिसने भारतीयों की सुप्त,
                      चेतना को जगाने का प्रयत्न किया ।
कविता के माध्यम से जिसने,
                      इस प्रयत्न को सफल बनाया ।
वही इस कविता के क्षेत्र में,
                      वीररस का कवि दिनकर कहलाया ।
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8 टिप्‍पणियां:

  1. चंदन भाई!
    अभिभूत हूं, आपकी दोनों रचनाओं को पढकर। गांधी जी पर लिखी आपकी रचना तो अद्वितीय है। इतने सारे गूढ़ और गहन अर्थ को सामने रखती है कि उसका सानी नहीं है। जो छन्दों की और लय की छोटी-मोटी गड़बड़ी है उसको ठीक कीजिए।
    दिनकर जी को नमन!
    आभार आपको।

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  2. रियाज का अपना मिठास है, पके का अलग स्‍वाद. नवीं-दसवीं के छात्र के लेखन की ताजगी और तरलता महसूस हो रही है.

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  3. भाई चंदन जी ,

    दूसरी कविता के लिए आपको साधुवाद है !
    यही पढ़ी अभी …

    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. गूढ़ शब्दों द्वारा सजी सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  5. जय हे गांधी! हे करमचंद!!
    दसवीं...बेहतर...

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  6. बेहद भाव पूर्ण काब्यांजलि....जय हे गाँधी !!

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