बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दो अलग-अलग व्यवहारों को देखिए आज, हिन्दी दिवस पर। अब बताएँ वे सरकार के पक्षधर लोग कि हिन्दीभाषी राज्य बिहार के सुशासन बाबू का यह रवैया कैसा माना जाय।
सबसे पहले देखिए इस जगह जहाँ आप पाएंगे वही सदाबहार अपील, जो हर साल करोड़ों पन्नों को बरबाद करने के लिए छापी जाती है।
14 सितम्बर को हिन्दी के लिए अपील करते नीतीश |
फिर दैनिक जागरण की साइट पर यह खबर देखिए, जो ऐसे शुरू होती है।
सीएम ने लिखा ब्लॉग वादा पूरा किया, लेकिन जारी रहेगी मेरी जंग
पटना, जागरण ब्यूरो : लंबे अर्से के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने ब्लाग के माध्यम से एक बार फिर राज्यवासियों से मुखातिब हुए हैं। राज्य सरकार के प्रति विश्र्वास कायम रखने के लिए जनता को धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा है कि पिछले नवंबर में बिहार चुनाव के आये नतीजों के बाद पहली बार मैं अपने विचार आप सभी से बांट रहा हूं। विश्र्व के विभिन्न क्षेत्रों से बहुतों ने मुझसे पूछा, मैंने ब्लाग पर लिखना क्यों छोड़ दिया। सच यह है कि मैं आप सभी से जुड़ने के लिए किसी बेहतर मौका के इंतजार में था। अब, वह समय आ गया। पिछले सप्ताह हमारी सरकार ने वह कर दिखाया जिसके बारे में मैं अर्से से बेचैन था। हमने आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में लिप्त एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के घर में प्राथमिक विद्यालय खोल दिया। उनका घर पिछले साल बने विशेष न्यायालय कानून के तहत जब्त किया गया है। इस भवन में स्कूल का खुलना कोई साधारण ल्ल शेष पृष्ठ 21 पर
यह खबर आज पटना से प्रकाशित अन्य अखबारों में भी प्रकाशित है।
इस खबर के उल्लेख करने का अभिप्राय सिर्फ़ इतना ही है आप यह देख सकें कि मुख्यमंत्री ने अपना ब्लॉग कैसे लिखा है। यहाँ पढ़िए उनका लिखा।
13 सितम्बर को अंग्रेजी में लिखा लेख |
तो श्रीमान अंग्रेजी में लिखते हैं और अपील हिन्दी के लिए। वह भी कल और आज, अलग-अलग भाषा में। यही नहीं इनके ब्लॉग पर लेखों के हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद एक साथ रहते हैं। कुल बारह लेखों में से सात अंग्रेजी में हैं। साफ समझना है कि ये लेख वे अमेरिका-इंग्लैंड-न्यूजीलैंड-आयरलैंड-कनाडा आदि देशों में पढ़े जाने के ही लिख रहे हैं। यहाँ यह बता दें कि कुछ दिन पहले इन्होंने एक किताब लिखी थी, वह भी अंग्रेजी में।
इसे नीतीश का कौन-सा व्यवहार कहें? क्या यह नहीं हो सकता था कि आज बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् और बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी को बन्द करने का ऐलान कर दिया जाता?
भाषा को लेकर शुरू से ही हमारी दोगली नीति रही है. बढ़िया और सामयिक आलेख.
जवाब देंहटाएंउनके ब्लॉग पर लिख आया हूँ -'वाह महोदय! हिन्दी दिवस पर अपील आज और कल लिखते हैं अंग्रेजी में। कैसे समझेंगे इसे बिहार के दस करोड़ लोग। यही सम्मान है हिन्दी का।'----अब स्वीकृति के बाद वे क्या लिखते हैं, वही जानें।
जवाब देंहटाएंराज-काज की बातें.
जवाब देंहटाएंएक ऐसे बेहद लोकप्रिय और सफल मुख्यमंत्री के बारे में मैंने सुना है, जो अंगरेजी ही बोलते हैं अपने राज्य की भाषा नहीं.
जवाब देंहटाएंहिंदी तो दो पाटों को जोड़ता पुल है। इसी कारण से इसे उस भाषा की अनुगामिनी बनने की नियति प्रदान की गई जिसके खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में हिंदी तन कर खड़ी हुई थी।
जवाब देंहटाएंदेखी रचना ताज़ी ताज़ी --
जवाब देंहटाएंभूल गया मैं कविताबाजी |
चर्चा मंच बढाए हिम्मत-- -
और जिता दे हारी बाजी |
लेखक-कवि पाठक आलोचक
आ जाओ अब राजी-राजी |
क्षमा करें टिपियायें आकर
छोड़-छाड़ अपनी नाराजी ||
http://charchamanch.blogspot.com/
आंख बंद करके किसी को भी चुन लीजिए...
जवाब देंहटाएंयही हाल है...
बस कम-अधिक नौटंकी...
आपने तो एक व्यक्ति के चेहरे से नक़ाब हटाया है। सरकार और सत्ता में सभी दोहरे मानदंड वाले दिखते हैं। मैंने अपने ब्लॉग पर अनेक बार कथनी और करनी के भेद के बारे में लिखा है परंतु लिखने के सिवाय और क्या कर सकता हूं। खुद तो दोहरे चेहरे से बचता ही हूं।
जवाब देंहटाएंकथनी मीठी खांड़ सी करनी विष की लोय।
जवाब देंहटाएंशुक्रवार
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
किसी भी हिन्दी बेल्ट के मुख्यमंत्री को जन संबोधन तो हिन्दी में करना चाहिए --काश मैं मुख्यमंत्री होता !
जवाब देंहटाएंसच, पूरी तरह सहमत
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