रविवार, 14 अगस्त 2011

आजादी (कविता)


कुछ लोग कहेंगे, बकवास कविता है। कुछ कहेंगे, जब देखो रोता रहता है। कुछ कहेंगे, क्या घिसी पिटी बात दुहराकर कविता बना रहे हो। कुछ कहेंगे, बहुत कविताएँ देखी हैं ऐसी, कुछ अलग लिखो। कुछ लोग कहेंगे, क्या आजादी के दिन खुशी मनाना छोड़कर यह विलाप शुरु कर दिया। कुछ कहेंगे, चोरी की कविता है। कुछ कहेंगे, रहा नहीं गया तो कुछ छापना आवश्यक था क्या। और कुछ और कुछ-कुछ कहेंगे। फिर भी यह एक कविता है और इसे आज नहीं पाँच साल पहले पंद्रह अगस्त 2006 को लिखा था एक रास्ते से गुजरते एक लड़के ने। पता नहीं क्यों लिखा था? उसे खोजकर पूछना है कि क्यों लिखा था इसे? कोई काम-धाम नहीं था क्या? अब आप बताइए कि क्या पूछें उससे? और क्यों पूछें उससे? क्या आपको या मुझे हक है कि संगणक (कम्प्यूटर) पर चलाती अंगुलियों से और घर में बैठकर खा-पीकर आराम से  उससे यह पूछें कि किसके लिए लिखा था उसने?



अब 15 अगस्त के बहाने कुछ कह ही देता हूँ जो कहीं-कहीं से दिमाग में आ गया। 2004 में अनुमंडलाधिकारी (अंग्रेजी में एस डी एम, क्योंकि हम हर पद को अंग्रेजी नाम से ही जानते हैं) को एक पत्र लिखा था कि कम से कम दो अक्तूबर (अक्टूबर) और 15 अगस्त को किसी भारतीय को अंग्रेजी नहीं बोलना-लिखना-पढ़ना चाहिए। यह पत्र दो अक्तूबर (अक्टूबर) के सन्दर्भ में ही लिखा था, इसलिए दो अक्तूबर(अक्टूबर) कहा। अब इससे गाँधी-विरोधी लोग शत्रुता न पालें। 

सबसे प्रार्थना है कि यहाँ आकर स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ मत बाँटा करें। यह स्वतंत्रता दिवस नहीं है, मेरी नजरों में। अब कितने जन सुझा जाएंगे कि मेरे मानने या न मानने से क्या होता है। यह कोई दिवस नहीं है, बस कैलेंडर में 365 दिन का 365वाँ हिस्सा है और अधिक से अधिक कुछ बच्चों को विद्यालय (स्कूल) में मुफ़्त में(लाखों विद्यार्थियों से सौ-दो सौ या इससे भी अधिक वसूले जाते हैं, यह पर्व मनाने के लिए जिसमें खूब जमकर रिमिक्स बजते हैं और फैशन-परेड होते हैं) मिठाइयाँ या कुछ भी मिल जाया करेंगी। एयरटेल-एयरसेल आदि कुछ कम्पनियाँ देशभक्ति रिंगटोन आदि बेच लेंगी और तय है कि मंच से महाप्रपंच वाले लोग खूब बोलेंगे और दावे के साथ कहता हूँ कि शाम होते-होते लाखों-करोड़ों झंडे रास्ते पर नालियों में, कचरे के ढेर में उड़ते मिलेंगे। अखबार अचानक तीन-रंगी हो जाएंगे। और सब कुछ वैसा ही चलता रहेगा। या अधिक से अधिक कुछ नया हुआ तो इस बार स्वतंत्रता दिवस समारोह के आयोजन के लिए आवंटित राशि में से सरकार को सर के बल सरकाने वाले सरदार जैसे लोग कुछ अधिक नहीं बस हजार-दो हजार करोड़ का छोटा-सा घोटाला करेंगे और 16-17 अगस्त को हम और आप अखबारी कागज में हाथ पोंछते नजर आएंगे। और हाँ, कुछ लोग अंग्रेजों के शासन को आज से बेहतर बताते भी नजर आएंगे ……और इस तरह हम आज ही क्या क्या नजर आएगा, इस पर नजर डाल रहे हैं। 

बहुत बकवास हुई। अब कविता पढ़वा देते हैं-



राजधानी की सड़कों पे
15 अगस्त को
7-8 बरस के
उन बच्चों के हाथों में
एक रूपये वाले
झंडों को देखकर
समझ जाता है पूरा देश
आजादी क्या होती है ?




जब नहीं खरीदता है कोई
उनके लाख कहने पर भी
भैया ले लीजिये
चाचा ले लीजिये
बाबा ले लीजिये झंडा
तब
उनके कातर नेत्रों में
छिपे हुए खून से आंसू
जो
दिखाई नहीं पड़ते प्रत्यक्ष
कह देते हैं
इस देश का नाम
बिना कहे
और आज का दिन
यानी 15 अगस्त ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपने कविता में जिन बच्चों की पीड़ा लिखी है वही बच्चे हैं जिन तक स्वतंत्रता और स्वराज अभी पहुँचा नहीं है. बहुत मार्मिक रचना.

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  2. पंद्रह अगस्त की छुट्टी का मज़ा लीजिये और यह बच्चे यूँ ही सड़क पर भीख मांगते रहेंगे हर साल , यही है हमारी तथाकथित आजादी.....:(

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  3. झंडे और आजादी पर कही गई बात के तेवर, आम तौर पर तीखे ही जान पड़ते हैं.

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  4. संवेदनशील पोस्ट! कविता बहुत मार्मिक है!

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