भगत सिंह के क्रांतिकारी रूप से तो सभी परिचित हैं लेकिन वह एक कुशल अभिनेता भी थे। भगत सिंह के अभिनेता रूप से परिचित करा रहे हैं- राजशेखर व्यास।
भगत सिंह और अभिनय-! निश्चय ही यह बात सारे लोगों को चौंका सकती है क्योंकि उनसे बड़ा यथार्थवादी क्रांतिकारी तो भारत में दूसरा नहीं हुआ फिर भला वह ‘अभिनय’ कैसे कर सकते थे? लेकिन जीवन को रंगशाला समझनेवाले महानायक जीवन को भी एक अभिनय से ज्यादा नहीं समझते थे।
भगत सिंह बेहद सुंदर, गोरे-चिट्टे और खूबसूरत नवजवान थे। कहते हैं कि जब वह जेल में थे तो अंग्रेज अधिकारियों की पत्नियां सिर्फ उन्हें देखने आती थीं मगर सिर्फ खूबसूरती ही किसी अभिनेता की काबिलियत का मापदंड नहीं है। भगत सिंह बहुत हाजिरजवाब और कुशल वक्ता भी थे। 23 वर्ष की आयुवाले जीवन में क्या उन्होंने सचमुच कभी अभिनय भी किया था? 1922 में जब भगत सिंह कालेज में पढ़ रहे थे उन्हीं दिनों प्रोफेसर जयचंद्र विद्यालंकार ने उन्हें प्रख्यात क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल से मिलवाया था।
नुक्कड़ नाटक का सूत्रपात किया
इस एक परिचय के बाद भगत सिंह क्रांतिकारी दल के सदस्य बाकायदा बन गये। आज जो ‘नुक्कड़ नाटक’ खेले जाते हैं उनका सूत्रपात भगत सिंह ने 1922 में ही कर दिया था। नेशनल कालेज में उन्होंने एक ‘नेशनल नाटक क्लब’ की स्थापना की थी। ‘राणा प्रताप’, ‘भारत दुर्दशा’ तथा ‘चंद्रगुप्त’ नाटकों का मंचन इस क्लब के द्वारा हुआ और इन सबमें नायक की भूमिका भगत सिंह ने निभाई थी। क्लब के नाटकों की सफलता से अंग्रेज सरकार ने बौखलाकर इस संस्था पर ही प्रतिबंध लगा दिया था।
अंतिम संवाद
बाद के दिनों में हालांकि भगत सिंह का अभिनय छूट गया था लेकिन कभी-कभी वह इस अभिनय कला की सहायता से कई दिलचस्प काम कर लिया करते थे- मसलन दल के कमांडर चंद्रशेखर आजाद के सामने अक्सर रोने का अभिनय करके, फिल्म जाने की अनुमति साथियों को दिलवा देना या कभी भगवती चरण वोहरा और दुर्गा भाभी के बेटे शची को तरह-तरह के चेहरे बनाकर उसके लंबू चाचा बनकर उसे हंसाना। उन्होंने कभी अपनी इस शैली का प्रयोग जेल और अदालत में भी भरपूर किया। उनकी इस विलक्षण शैली का एक और प्रमाण है अदालत में दिया गया उनका विलक्षण बयान।
एक रोज न्यायाधीश ने उनसे पूछा कि तुम सारा बयान तो हिंदी में देते हो, सिर्फ गालियां अंग्रेजी में क्यों? भगत सिंह ने कहा ताकि आपको समझ में आये कि गाली आपको दी जा रही हैं। इस क्रांतिकारी अभिनेता ने अपने जीवन का अंतिम संवाद उस फांसी देनेवाले न्यायाधीश को सुनाया था, “मजिस्ट्रेट महोदय, आप भाग्यशाली हैं कि आज आप अपनी आंखों से यह देखने का अवसर पा रहे हैं कि भारत के क्रांतिकारी किस प्रकार प्रसन्नता से अपने सर्वोच्च आदर्श के लिए मृत्यु का आलिंगन कर सकते हैं।”
“किसी भी देश का युवक कितना सच्चा, चरित्रवान, वीर, संतोषी, आदर्शवादी, उत्सुक और निखरा हुआ तप्तस्वर्ण हो सकता है, वह भगत सिंह है। मुझे विश्वास है कि भगत सिंह यदि लार्ड इरविन या कर्जन का पुत्र होता तो वे भी उसे प्यार करते। वह था ही ऐसा प्यारा, भोला-भाला, सभ्य-सुसंस्कृत, पगला-सा नौजवान। वह हमारी वत्सलता, स्नेह-प्रेम और आदर का मूर्त रूप था।” यही कहा था पं. बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ ने उनकी मृत्यु के यथार्थ अभिनय पर।
( इस लेख के साथ जो तस्वीरें दी गई थीं, वैसी ही तस्वीर यहाँ देने की कोशिश कर रहा हूँ। एक तो एकदम वही चित्र है, जो दिया गया था। वैसे मुझे लेख पर कुछ संदेह होता है, फिर भी पढ़वा रहा हूँ। मनोज कुमार की फिल्म शहीद में लम्बा चाचा की बात आई है। कादम्बिनी के अगस्त, 2006 अंक से साभार, पृ0 105 से 108)
नायको के बारे में ऐसा बहुत सा साहित्य आ जाता है जिस पर विश्वास करना कठिन हो सकता है. इसमें लेखक की कल्पना भी शामिल हो जाती है. कुछ भी कहें लेख प्रभावशाली है.
जवाब देंहटाएंAap Se Sahamat hu Mai, bhagat Singh Ki Har Bat dil Ko Chhu Leti Hai
हटाएंAap Se Sahamat hu Mai, bhagat Singh Ki Har Bat dil Ko Chhu Leti Hai
हटाएंसंदेह है, फिर भी पढ़वा रहे हैं?
जवाब देंहटाएंek nayi jaankari mili .aabhar..........abhi tak is pahlu se anjan tha mai
जवाब देंहटाएंshukriya
Shahid-E-Ajam Ki Nai Bate Pata chali
जवाब देंहटाएंThanks