राहुल सांकृत्यायन भारत ही नहीं संसार के लेखन-जगत में एक अलग और महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। एक साथ बहुत से क्षेत्रों में असाधारण विद्वत्ता के स्वामी लेखकों और चिंतकों में उनका नाम पहली पँक्ति के लेखकों-चिंतकों में भी शायद सबसे पहले ही लिया जा सकता है। रामकृष्ण परमहंस को सब धर्मों की उपासना के लिए जाना जाता है लेकिन एक चेतन यात्रा का जो दर्शन राहुल जी में होता है, वह परमहंस में नहीं। राहुल जी की यात्रा एक सगुणोपासक संन्यासी से निर्गुणोपासक तक और फिर बौद्ध से मार्क्स तक आती है। ऐसी यात्रा का दूसरा उदाहरण और वह भी इस अन्दाज में कि मनुष्य और समाज की समझ विकसित होती जाये, शायद ही है।
आज से यहाँ उनके उपर उर्मिलेश की किताब को प्रकाशित किया जा रहा है। अन्त में उसे पीडीएफ़ में उपलब्ध करा दिया जाएगा। आज किताब में शुरु में दिए गए वक्तव्य और भूमिका से शुरु करते हैं।योद्धा महापंडित:
राहुल सांकृत्यायन
लेखक- उर्मिलेश
बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना
प्रकाशन वर्ष- 1994
वक्तव्य
महामंडित राहुल सांकृत्यायन इस शताब्दी के अनुपमेय साहित्यकार, चिंतक और भारत के अतीत-प्रसंगों के समय-सापेक्ष व्याख्याता थे। उनका बहुआयामी व्यक्तित्व प्रगतिशील चेतना के सतत विकास का साक्षी है। उनके विकासमान व्यक्तित्व के विश्लेषण से कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आते हैं। रूढ़ियों, अंधविश्वासों से जर्जर एक पिछड़े हुए गाँव के सनातनी ब्राह्मण-परिवार में जन्म लेकर अपनी जीवन-यात्रा के अनुभवों से सीखते हुए वह मार्क्सवाद तक पहुँचते हैं। संपूर्ण भारतीय रचनाकर्म और संघर्ष की सहयात्रा में वे उत्तुंग शिखर पर आसीन एक अद्वितीय व्यक्तित्व हैं।
उनके साहित्य में स्वतंत्रतापूर्व और स्वातंत्र्योत्तर भारत के कसकते-कराहते अनुभवों का ऐसा हाहाकार है, जो हमें सोचने को विवश करता है कि विवशता के भीतर से ही शक्ति उत्पन्न होती है। राहुलजी ने रचनात्मक साहित्य, अनुवाद, कोश, जीवनियाँ, संस्कृति, राजनीति, इतिहास, दर्शन और यात्रा-साहित्य आदि अनेक विषयों पर प्रामाणिक रचनाएँ लिखकर हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। उनकी मूल चिंता अपने समय और समाज को समझने तथा भविष्य की दिशा निर्धारित करने की थी। समय और समाज के इसी द्वन्द्व ने उनके चिंतन और संघर्ष को अर्थदीप्ति प्रदान की है। आर्थिक गुलामी को वह सभी प्रकार की स्वतंत्रता का अवरोधक मानते थे और पूँजीवादी व्यवस्था के पोषक तत्वों को जोंक कहते थे। प्रत्यक्ष-जगत से परे मनुष्य के भाग्य का निर्णायक और नियामक कोई और ‘सर्वशक्तिमान’ नहीं है- ऐसा उनका मानना था। बौद्ध धर्म और दर्शन से उनका लगाव इसी सोच के कारण हुआ।
राहुलजी का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ था लेकिन बिहार ही उनका कार्यक्षेत्र रहा। यहीं सारण के परसामठ में वह सनातनी साधु के रूप में रहे फिर बौद्ध और मार्क्सवादी बने। इसी क्षेत्र में उन्होंने किसान-संघर्षों का नेतृत्व किया। महान् इतिहासविद् काशी प्रसाद जायसवाल से उनका स्नेहपूर्ण सम्बन्ध रहा। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् से शुरु से ही उनका लगाव रहा। ‘परिषद्’ को उनके द्वारा लिखित या संपादित चार प्रमुख पुस्तकों के प्रकाशन का गौरव प्राप्त है। ‘मध्य एशिया का इतिहास’ जैसी युगांतरकारी कृति ‘परिषद्’ ने ही प्रकाशित की, जिस पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस वर्ष पूरे देश में ‘राहुल जन्म-शती’ के अवसर पर समारोह हुए हैं। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् ने भी 10 अगस्त, 1993 को पटना में एक भव्य समारोह आयोजित किया था। प्रस्तुत विनिबंध ‘योद्धा महापंडित: राहुल सांकृत्यायन’ जन्मशती वर्ष पर उर्मिलेश द्वारा पठित आलेख का विस्तारित पुस्तकाकार रूप है।
श्री उर्मिलेश ख्यातिप्राप्त पत्रकार और सजग लेखक हैं। अभी हाल में ‘द टाइम्स फेलोशिप कौंसिल’ ने उन्हें वर्ष 1993 की ‘टाइम्स फेलोशिप’ देकर सम्मानित किया। इसके पूर्व बिहार कृषि-संकट और भूमि-सुधार सम्बन्धी समस्या पर उनकी पुस्तक ‘बिहार का सच’ (प्रकाशन वर्ष 1991) आई थी और वह समाजशास्त्रियों और शोध-छात्रों के बीच चर्चित और प्रशंसित हुई। जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने वर्ष 1981 में उन्हें ‘राहुल सांकृत्यायन के साहित्य की आलोचनात्मक अनुक्रमणिका’ विषय पर एम0 फिल0 उपाधि प्रदान की। ‘पहल’, ‘समकालीन सृजन’, ‘हिन्दी कलम’ और ‘नवभारत टाइम्स’ में प्रकाशित राहुल विषयक उनके आलेख चर्चित रहे।
‘योद्धा महापंडित : राहुल सांकृत्यायन’ शीर्षक इस विनिबंध में राहुलजी के जीवन और कृतित्व की संक्षिप्त किन्तु मौलिक व्याख्या की गई है। राहुलजी की वैचारिक पूँजी को सहेज-संभालकर रखना आज इसलिए भी आवश्यक है कि आने वाले समाज को एक दिशा बोध मिल सके। यह विनिबंध सामान्यजन के लिए लिखा जाने वाला श्रेष्ठ-रोचक साहित्य है; जिसमें स्वाधीनता और मानवीय मर्यादा की प्रतिष्ठा के लिए आजीवन संघर्षरत महायोद्धा के जीवन-संघर्षों का चल-विवरण प्रस्तुत हुआ है। …
महेन्द्र प्रसाद यादव
निदेशक
बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्
पटना
भूमिका
महापंडित राहुल सांकृत्यायन भारतीय साहित्य-जगत में विलक्षण व्यक्तित्व हैं। ज्ञान-विज्ञान की अनेक विधाओं के प्रखर विद्वान होते हुए उन्होंने आम जनता के संघर्षों में सक्रिय हिस्सेदारी निभाई। कभी स्वाधीनता सेनानी तो कभी किसान योद्धा के रूप में वे सक्रिय रहे। आजादी के बाद भी उन्हें कई बार जेल यात्रा करनी पड़ी। लेकिन हर तरह की कठिनाइयों में उनकी लेखनी निरंतर चलती रही।
सहज और सादगी भरे लेखन में उनकी वैचारिक तेजस्विता और बौद्धिक स्पष्टता की चमक है, जो उन्हें समकालीन बुद्धिजीवियों के बीच एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती है। सन् 1921 से सन् 1960 तक एक लेखक, विचारक और जनयोद्धा के रूप में निरंतर सक्रिय रहे। हिन्दी भाषा और साहित्य को राष्ट्रीय चेतना, प्रगतिशील मूल्यों एवं प्रौढ़ वैचारिकता से लैस करने में वह सबसे आगे रहे।
यह दुर्भाग्यजनक ही कहा जाएगा कि हिन्दी के हमारे विश्वविद्यालयीय मठाधीशों और सत्ता प्रतिष्ठानों ने नवजागरण की इस महान मनीषा का सम्यक मूल्यांकन करने की कोई चेष्टा नहीं की। उनकी उपेक्षा का क्रम अब तक जारी रहा है। यह वर्ष पूरे देश में ‘राहुल जन्मशती वर्ष’ के रूप मनाया जा रहा है। पहली बार हिन्दी के ‘विश्वविद्यालयीय मठाधीशों’ ने जनता और सुधी साहित्य-प्रेमियों की सक्रिय पहलकदमी देखकर राहुलजी को याद किया। राहुल साहित्य के एक अदना विद्यार्थी होने के नाते मेरे लिए यह सुखद घटना है कि आज पूरे देश में राहुलजी पर लिखा-पढ़ा जा रहा है।
वर्षों तक उनके सहयात्री रहे, हिन्दी के यशस्वी कवि नागार्जुन ने उन्हें याद करते हुए अपने एक संस्मरण में लिखा है: “वे रूढ़िभंजक थे, प्रोग्रेसिव थे, नास्तिक थे…।” पर राहुलजी को जिन लोगों ने ‘महापंडित’ की उपाधि दी, उन्हें उनके व्यक्तित्व के यह गुण पसंद नहीं थे। वे तो संस्कृत, वेदान्त, साहित्य, संस्कृति और पुरातत्व के क्षेत्र में उनकी विद्वता पर लट्टू थे। निस्संदेह राहुलजी उच्चकोटि के विद्वान और बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न महापंडित थे। लेकिन उनमें साधारण और रूढ़ अर्थों वाला पांडित्य नहीं था। वे सही मायने में एक योद्धा थे- वैचारिक युद्ध के तेजस्वी और विद्रोही योद्धा! इसलिए पुस्तक का नामकरण अटपटा नहीं लगना चाहिए।
बिहार राहुलजी का कर्मक्षेत्र रहा। ‘बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्’ ने गत 10 अगस्त, 93 को राहुल सांकृत्यायन की स्मृति में एक संगोष्ठी का आयोजन किया। परिषद् के निदेशक प्रो0 महेन्द्र प्रसाद यादव की पहल पर आयोजित इस संगोष्ठी में मुझे मुख्य वक्ता के रूप में आलेख-पाठ के लिए आमंत्रित किया गया। उसी दौरान परिषद् ने राहुलजी पर एक पुस्तक प्रकाशित करने की योजना बनायी और यह दायित्व मुझे सौंपा। यह पुस्तक इसी योजना के तहत प्रकाशित हो रही है।
आदरणीय राजेंद्र यादव, डॉ0 मैनेजर पाण्डेय, आनंद स्वरूप वर्मा, अनवर जमाल, भाई महेन्द्र जी, पी एन विद्यार्थी, अरुण कमल, डॉ खगेन्द्र ठाकुर, अंबिका चौधरी, सत्येन्द्र सिन्हा, प्रेम कुमार मणि और मदन कश्यप ने समय-समय पर मेरा उत्साहवर्द्धन किया। इनका मैं आभारी हूँ।
उर्मिलेश
22 फरवरी, 1994
पटना
आगे आप योद्धा संन्यासी का जीवन, इतिहास की तह में रचनाशीलता की तलाश, महान् स्वप्नदर्शी का यात्रा-दर्शन, हिन्दी क्षेत्रों में नई सामाजिक चेतना और राहुल, तिब्बत में ग्रन्थों की खोज, और स्वाधीनता आंदोलन, समाजवाद और राहुल अध्याय पढ़ेंगे। परिशिष्ट में राहुलजी के जीवन की प्रमुख की घटनाएँ, राहुलजी की पुस्तकों की सूची आदि पढ़ेंगे।
इंतजार रहेगा, पूरी पोस्टों का।
जवाब देंहटाएंइस पुस्तक का आगे क्या हुआ?
जवाब देंहटाएंसैर कर दुनिया की गाफिल कि ये जिंदगानी फिर कहाँ
जवाब देंहटाएंजिंदगानी गर हैं भी तो ये नौजवानी फिर कहाँ ?
यायावर परिब्राजक राहुल पर इस अलेखमाला का स्वागत है
पर यह 'भारत का भावी प्रधानमंत्री' कौन है?
जवाब देंहटाएंRahul ji ki voh kon sa upnyas hai jisme unhone pracheen iranke rajdarbar aur jarthrusht ka jikr kiya hi. Maine kio 25 saal pahle jab vo kitab padi thi tab main 10 saalka tha. Ab main us kitab ka naam bhool gayaa hun. Kripya sahat karein.
जवाब देंहटाएंRahul ji ki voh kon sa upnyas hai jisme unhone pracheen iranke rajdarbar aur jarthrusht ka jikr kiya hi. Maine kio 25 saal pahle jab vo kitab padi thi tab main 10 saalka tha. Ab main us kitab ka naam bhool gayaa hun. Kripya sahat karein.
जवाब देंहटाएं