शनिवार, 26 नवंबर 2011

आईने में नेता (कविता)


आईने में चेहरा देखते ही
डर जाता है आईना।

आखिर कौन है यह
जिसके सामने जाने से डरता है
आईना भी,
जो बेजान है
जिसकी शक्ल आईने में
बदल जाती है
और दिखता है कोई
पुराणों में वर्णित
राक्षस जैसा, डरावना
शायद नेता है!

आईने में जब यह व्यक्ति देखता है खुद को
नजर आता है चौरासी लाख पेटों वाला
भूत
लेकिन चेहरा तो नहीं दिखता ऐसा
फिर आईना झूठ बोल रहा है?
कहते हैं आईना सच ही बोलता है
इस हिसाब से
यह नेता ही है…

4 टिप्‍पणियां:

  1. आइने बेचारे की क्‍या औकात जो झूठ-सच कर ले... शब्‍द हैं, जो सच-झूठ गढ़ लेते हैं, कभी सही तो कभी गलत साबित होते हैं.

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  2. चंदन जी कविता के बिम्ब प्रयोग मुझे मुक्तिबोध की याद दिलाते हैं।
    समीक्षा अलग से लिखूंगा।

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  3. बहुत सशक्त अभिव्यक्ति वाली कविता चंदन जी.

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