बारह तारीख (12-10-11) को पटना आने के क्रम में सैकड़ों जगह बैनर दिखे। छपरा में एक दिन पहले ग्यारह तारीख को जयप्रकाश नारायण की जयंती पर खूब तमाशा हुआ था। छपरा से पटना लगभग 70 किलोमीटर है। लेकिन 70 किलोमीटर के रास्ते पर मुझे जयप्रकाश नारायण की तस्वीर सिर्फ़ 2-3 जगह ही दिखी। दिखे तो बस नीतीश, आडवाणी और छोटे-बड़े तथाकथित महान नेता। सुषमा स्वराज को बिहार की प्रशंसा करके बहुत सुकून मिलता है, बिहार मतलब नीतीश के बिहार की। कुछ बातें हैं बिहार के बारे में, उस दिन की यात्रा के बारे में, राजनीति के बारे में।
बैनरों पर जेपी नहीं दिखे, और जहाँ दिखे वहाँ भी उनकी तस्वीर से कई गुनी बड़ी तस्वीर औरों की दिखी। यह एक नजरिए से कोई बड़ी या बुरी बात नहीं भी हो सकती है। लेकिन इसमें आयोजक अपना विज्ञापन अधिक कर रहा है, ऐसा तो साफ नजर आता है। वैसे आडवाणी की यात्रा को शुरू जेपी के यहाँ से की जाय, इसके पीछे कारण क्या है? जहाँ तक मेरी समझ है, अभी बिहार के नीतीश और गुजरात के मोदी में राष्ट्रीय स्तर पर महान बनाई गई या बनवाई गई छवि को लेकर नीतीश कुछ आगे हैं। क्योंकि मोदी के साथ मुद्दा ही कुछ ऐसा जुड़ा है कि वे कुछ अलग मालूम पड़ते हैं। बिहार में धमाकेदार जीत और पहले ही केंद्रीय मंत्री रह चुकने से नीतीश और उनके गुरू-चेले कुछ मत्त-से हैं। सो एक बड़ा कारण तो यह रहा, नीतीश के बिहार को यात्रा शुरू की उपयुक्त जगह मानने का। दूसरा कारण यह रहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ाई या तमाशा जो भी हो रहा है, इसकी गम्भीर शुरूआत भी जेपी ने की थी, ऐसा माना जाता है। एक और कारण बिहार में भाजपा-जदयू की स्थिति का इतना मजबूत होना भी रहा होगा। आखिर भाजपा या आडवाणी को जेपी पहली बार कैसे याद आए? जेपी के गाँव में यात्रा को लेकर अचानक से बिजली का आ जाना, आखिर बिहार सरकार को नवम्बर 2005 से अक्तूबर 2011 तक यह गाँव या बिजली तनिक भी याद नहीं आए? क्योंकि अचानक जेपी के गाँव में बिजली आ गई थी। नीतीश ने सड़क बनवाने की भी बात सिताबदियारा(जेपी के यहाँ) प्रकरण को लेकर कही थी। यह सब पाखंड का साफ-साफ प्रदर्शन नहीं तो और क्या है?
सुनने में आया कि छपरा के इस तामझामी यात्रारंभ में ढाई करोड़ का खर्चा आया। और यह सब पैसा दिया एक अभियंता ई सच्चिदानंद राय ने। ये बनियापुर के बताए जाते हैं। इनको इस बार जदयू का टिकट नहीं मिल पाया था। इन्होंने बिहार राज्य पथ परिवहन निगम को सौ बसें भी दी हैं, ऐसा सुनने को मिला। ईडेन सिटी नाम से छपरा में महँगे घर बनाए रहे हैं, जो बिकेंगे भी महँगे ही। वैसे सवाल तो यह भी है कि एक आदमी जो एक अभियंता हो, उसके पास इतनी सम्पत्ति कि 100 बसें खरीद सके या ढाई करोड़ आयोजन पर खर्च कर सके? जाहिर है या तो यह लूट की कमाई है या बाप-दादाओं की सम्पत्ति के नाम पर दिखाई जा रही सम्पत्ति है। अब ऐसा तो लगने ही लगा है कि अगली बार नीतीश सरकार में सच्चिदानंद राय को मंत्री पद मिलना तय है।
आडवाणी, सुषमा, जेटली सहित कुछ नए युवा नेता भी खूब राग अलाप रहे थे ग्यारह को। सुषमा स्वराज तो नीतीश से भी ज्यादा नीतीश सरकार की प्रशंसा करती हैं अपने भाषणों में। संयोग या दुर्योग से इनके भाषणों से प्रभावित होने वाले लोग भी हैं। वैसे स्वराज अच्छा बोलती ही हैं। जब एक अच्छा वक्ता किसी के पक्ष में बोल रहा हो या झूठ बोल रहा हो तो पकड़ना और मुश्किल हो ही जाता है।
अगले दिन अखबार वाले जैसा कि आप जानते हैं, नीतीशायण में लगे रहे। प्रभात खबर तो जान की बाजी तक लगाने में जुटा है इस काम में। कुछ पन्ने रोज इसीलिए निकाले ही जाते हैं कि नीतीश की वंदना हो सके। यही हाल प्रभात खबर के संपादकीय का है। वैसे बता दें कि प्रभात खबर सच्चिदानंद राय के ईडेन सिटी का विज्ञापन कुछ ज्यादा ही करता है। यहाँ तक कि ईडेन बसों से अगर आप यात्रा करें तो पढ़ने को इसी की कुछ प्रतियाँ दिखती हैं। सत्ता और दौलत से तालमेल तो दिखता ही है।
तो बात शुरू हुई थी आडवाणी और जेपी से। एक बात हमेशा ध्यान आती है कि जिस देश में 1947 तक की लड़ाई में लाखों नवजवान शामिल थे, उसमें आडवाणी या वाजपेयी का नाम स्वतंत्रता संग्राम में शामिल क्यों नहीं है? जबकि उनकी उम्र इतनी तो थी ही कि वे लड़ सकें। 1947 के पहले आडवाणी जैसे लोग या नेता अगर नहीं लड़ रहे थे या उस समय इनका आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं था, तो इन्हें हम तो राष्ट्र का भला चाहने वाला नहीं मानेंगे। या फिर यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि जेपी के आन्दोलन का लाभ मिलने पर जो लोग सत्ता में आए, उनमें आडवाणी भी शामिल थे और वह भी केंद्रीय मंत्री की हैसियत से। तो जिस जेपी के चलते इन्हें यह मिला उसी जेपी को आज तक भाजपा ने या आडवाणी ने क्यों याद नहीं किया? और आज याद करने का मतलब क्या है? हमारी समझ से इसे अवसरवादिता कहने में हर्ज नहीं है।
(कुछ बेतरतीबी से लिखा यह लेख कुछ सुगठित नहीं भी हो सकता है)
आदरणीय चन्दन कुमार मिश्र जी
जवाब देंहटाएंआपने इस लेख के माध्यम से एक महत्वपूर्ण रो विचारणीय सवाल उठाया है "तो बात शुरू हुई थी
आडवाणी और जेपी से। एक बात हमेशा ध्यान आती है कि जिस देश में 1947 तक की लड़ाई में लाखों नवजवान शामिल थे, उसमें आडवाणी या वाजपेयी का नाम स्वतंत्रता संग्राम में शामिल क्यों नहीं है? जबकि उनकी उम्र इतनी तो थी ही कि वे लड़ सकें। 1947 के पहले आडवाणी जैसे लोग या नेता अगर नहीं लड़ रहे थे या उस समय इनका आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं था, तो इन्हें हम तो राष्ट्र का भला चाहने वाला नहीं मानेंगे।"
इस प्रश्न का हल हमारे अवसरवादी नेता कहाँ खोजने वाले सबके अपने अपने ढोल हैं यहाँ और सब अपना अपना राग अलापते हैं ....लेकिन आपने बहुत पैनी नजर रखते हुए जो विचार अभिव्यक्त किये हैं वह प्रसंशनीय हैं ..!
कहते हैं कि वाजपेयी जी ने किन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों के हक़ में ब्यान न देकर कुछ कुछ उलटा किया था. जावेद अख़्तर ने इसके बारे में एक टीवी इंटरव्यू में सवाल पूछा तो वाजपेयी आगबबूला हो उठे थे. आडवाणी की वाणी घृणात्मक प्रचार का दूसरा नाम है. अच्छा आलेख.
जवाब देंहटाएंप्राथमिक और तात्कालिक प्रतिक्रिया किस्म की बातें..., अधिक गहराई की अपेक्षा थी यहां.
जवाब देंहटाएंदीपावली की शुभकामनाएं ||
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति की बहुत बहुत बधाई ||
Aapne achha sawal uthaya hai. aapko aur aapke pariwar ko dipawali ki hardik subhkamna.
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक आलेख।
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
बेतरतीबी से लिखा गया...एक सुगठित आलेख...
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ,मुझे लगता है कि आप जे पी को बहुत अच्छा मानते हैं ..
जवाब देंहटाएंउनको किनारे कर दिया गया है ऐसा भी प्रोजेक्ट हो रहा है.जे पी ने कभी कोई जिम्मेदारी नहीं ली .राहों के अन्वेषी भर रहे ...
आदरणीय ब्रजकिशोर जी,
जवाब देंहटाएंजेपी को अच्छा नहीं मानने -मानने का सवाल नहीं है। आडवाणी से तो बेहतर होंगे ही वे। लेकिन भाजपा अचानक यह राजनीति करे तो अच्छा नहीं लगा। वैसे जेपी भी बचे और यह ठीक तो नहीं था…
badhiya.....kai baten sateek pakre hain.....
जवाब देंहटाएंsadar.
अब बड़े नाम बस इस्तेमाल की चीज़ रह गए हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छे मुद्दे और अच्छा प्रश्न उठाया है आप ने विचारणीय तो है ही अब इस पर आडवाणी जी ही अच्छी तरह से बता या जान सकते हैं ...स्वतंत्रता संग्राम ....
जवाब देंहटाएंअच्छाई को याद किया ही जाना चाहिए ..जिसने रुख मोड़ा ..पासा पलटा
भ्रमर ५