मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011

गरीबी का हिसाब-किताब और मेरा अर्थशास्त्र



ध्यान दें: यह लेख कुछ लोगों के लिए नहीं है। वे कौन हैं, यह पढ़कर वे स्वयं जान लें।

लीजिए हम भी अर्थशास्त्री हो गए। हम बिलायत के पीएचडी नहीं हैं भाई। इसलिए जीडीपी-फीडीपी समझा नहीं पाएंगे। इसलिए कुछ सीधी-सीधी बात कहेंगे। एक दिन खयाल आया कि भारत का अर्थशास्त्र क्या है, तो कुछ चीजें दिमाग ने मुझसे कहीं। हम वह अर्थशास्त्र रखने जा रहे हैं, जो भिखारी से लेकर किसान तक को समझ में आ सके। समझने के लिए अक्षरज्ञान होना भी आवश्यक नहीं है। हाँ, यह मेरी कोई बपौती (होती तो यह भी अपनी नहीं है।) नहीं है कि इसे मैंने ही सोचा है और दूसरे किसी ने कभी नहीं सोचा होगा, इसका दावा कर दूँ।


गरीबी सापेक्ष है, निरपेक्ष नहीं। बिना अमीरी के गरीबी का कोई अर्थ नहीं। गरीबी और अमीरी की जड़ है सम्पत्ति के बँटवारे के असमान विभाजन की घोर अन्यायपूर्ण नीति। हमें पता है कि इस बँटवारे में बहुत-से लोगों को कोई अन्याय नहीं दिखता।

पहला ज्ञान:

भारत के 70 प्रतिशत लोगों के पास देश की 30 प्रतिशत सम्पत्ति है या 80 प्रतिशत के पास 20 प्रतिशत सम्पत्ति है। इसमें कौन सही है, इसमें भारी झगड़ा-लफड़ा है। इसलिए हम दोनों पर ध्यान दे लेते हैं।

अगर 70 प्रतिशत वाली बात सही है तब

देश की कुल सम्पत्ति 100 रू मान लेते हैं। और देश में कुल जनसंख्या भी 100 है, यह भी मान लेते हैं।
अब 70 प्रतिशत लोगों के पास 30 रू हैं और 30 प्रतिशत लोगों के पास 70 रू हैं।
इस प्रकार 70 प्रतिशत लोगों में 30 रू को बाँटते हैं तो 30/70 = 42 पैसे प्रति व्यक्ति।
और 30 प्रतिशत लोगों में 70 रू को बाँटते हैं तो 70/30= 233 पैसे प्रति व्यक्ति।
इस तरह असमानता= 233 / 42 = साढ़े पाँच गुनी।

अगर 80 प्रतिशत वाली बात सही है तब

देश की कुल सम्पत्ति 100 रू मान लेते हैं। और देश में कुल जनसंख्या भी 100 है, यह भी मान लेते हैं।
अब 80 प्रतिशत लोगों के पास 20 रू हैं और 20 प्रतिशत लोगों के पास 80 रू हैं।
इस प्रकार 80 प्रतिशत लोगों में 20 रू को बाँटते हैं तो 20/80 = 25 पैसे प्रति व्यक्ति।
और 20 प्रतिशत लोगों में 80 रू को बाँटते हैं तो 80/20= 400 पैसे प्रति व्यक्ति।
इस तरह असमानता= 400 / 25 = सोलह गुनी।

हालांकि असलियत यह है कि 90 प्रतिशत सम्पत्ति सिर्फ़ दस प्रतिशत लोगों के हाथ में है। सबूत है कि भारत सरकार का कुल कर्ज, भारत के मात्र बीस-तीस व्यवसायी चुका सकते हैं। उदाहरण के लिए, टाटा, बिड़ला, अम्बानी, अजीम प्रेमजी आदि।

इसलिए अब 90 प्रतिशत वाली बात पर विचार करते हैं।

देश की कुल सम्पत्ति 100 रू मान लेते हैं। और देश में कुल जनसंख्या भी 100 है, यह भी मान लेते हैं।
अब 90 प्रतिशत लोगों के पास 10 रू हैं और 10 प्रतिशत लोगों के पास 90 रू हैं।
इस प्रकार 90 प्रतिशत लोगों में 10 रू को बाँटते हैं तो 10/90 = 11 पैसे प्रति व्यक्ति।
और 10 प्रतिशत लोगों में 90 रू को बाँटते हैं तो 90/10= 900 पैसे प्रति व्यक्ति।
इस तरह असमानता = 900 / 11 = लगभग बयासी गुनी।

इस तरह एक आदमी दूसरे आदमी से अस्सी गुना कम अमीर है या कहें कि गरीब है। तो यही है इस देश का अर्थशास्त्र। वह नकली अर्थशास्त्र है जो टीवी में, अखबारों में, कोट-टाई धारी लोगों के दिमाग में घुसा हुआ है।


यह सारा हिसाब उसी औसत के नियम से लगाया गया है जिससे हमारे महान अर्थशास्त्री लोग प्रति व्यक्ति आय को विकास का मानक मानते हैं। भले ही दो व्यक्तियों की आय क्रमश: दो रू और दो लाख रू हो और औसत आय 200000 + 2 = 200002 / 2 = 100001 यानी एक लाख एक रू बताई जाय। जिस हिसाब से देश विकास कर रहा है, यह माना जाता है, वही हिसाब मैंने यहाँ अपनाया है। अब इस हिसाब में मरेगा तो दो रू वाला। फिर भी देश विकास कर रहा है!

दूसरा ज्ञान यहाँ है लेकिन इसे भी किसान-मजदूर लोग थोड़ी कठिनाई से समझेंगे। लेकिन यहाँ जाइए जरूर।

अब बताइए कि कैसा लगा यह आसान हिसाब-किताब? घटिया, महाघटिया, कम घटिया, थोड़ा अधिक घटिया, थोड़ा कम घटिया, सौ प्रतिशत घटिया आदि ढेर सारे विकल्प हैं। उत्तर इन्हीं में चुन लीजिए।

11 टिप्‍पणियां:

  1. दो धन दो बराबर चार,
    नहीं नहीं,
    दो गुणा दो बराबर चार,
    या
    दो दूनी चार,
    या चार एकम चार
    वन टू का फोर, फोर टू का वन
    वन- एक, वही एक बात
    क्‍या समझे, नहीं समझे
    ,
    हम भी नहीं समझे,
    लेकिन समझदारों के लिए इशारा काफी.
    (इस प्रेरक पोस्‍ट को पढ़ कर अकवि की आशु कविता)

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  2. सहमत सौ प्रतिशत ||
    जबरदस्त --
    अनर्थ-शास्त्री ||

    सुन्दर प्रस्तुति ||
    बहुत-बहुत बधाई ||

    http://dcgpthravikar.blogspot.com/2011/10/blog-post_10.html

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  3. भाई चन्दन पहली बार आपकी पोस्ट पर आया हूँ आपके सरोकार को देख अभिभूत हूँ. कहीं मैंने कहा था कि मोंटेक साहब को एक दिन बिन सड़क बिजली वाले गाँव भेज दीजिये... अर्थशास्त्र समझ आ जायेगा कि देश कितनी तरक्की कर रहा है... मेरी कवितायेँ आपके कमिटमेंट को सपोर्ट करती हैं.. कभी आइये !

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  4. प्रासंगिक लेख।लोग(अर्थशास्त्री)अपना जमीन देखकर दूसरों का आसमान बता देते हैं।

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  5. कौन कहता है देश में महंगाई बढ़ गयी है? दस साल पहले एक समोसा 50 पैसे का और एक मोबाइल काल 8 रुपये का होता था। आज एक मोबाइल काल 50 पैसे का और एक समोसा 8 रुपये का है। महंगाई बढ़ी नहीं, बस थोड़ा ’इधर-उधर’ हो गयी है।.........

    keshav karn.......desil bayna se sabhar

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  6. रुपये वाले हिसाब में कमजोर हूँ

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  7. सरकार का काम गरीबी को परिभाषित करना है, और दूर करना दूर की बात है. हिसाब की क्या ज़रूरत थी? :))

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  8. काफी सटीक है और मामला बस यही है। अंबानी जिस गांव के हैं उस गांव की प्रति व्यक्ति आय कितनी होगी। जाहिर है यह सांख्यिकी महज भ्रम पैदा करने के लिए बनायी जाती है।

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