शनिवार, 31 दिसंबर 2011

भाषा पर एक बातचीत ... 'भाषा एक प्राथमिक सवाल क्यों है'

एक मित्र से हुई बातचीत यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। 

'भाषा एक प्राथमिक सवाल क्यों है'

हम: एक उदाहरण देखिए। 

मित्र: हाँ। 

हम: पूँजीवादी कितने है ? कितने प्रतिशत ? 

मित्र: पाँच फीसदी के करीब। 

हम: अंग्रेजी वाले कितने हैं ? 121 करोड़ में से कितने ?

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

हिन्दी.blogspot.com या हिन्दी.tk लिखिए जनाब न कि hindi.blogspot.com या hindi.tk


हाल ही में अनिल.blogspot.com से गुजरा। अचंभित था कि ब्लॉग का नाम तो हिन्दी में दिखता है, लेकिन ब्लॉग का पता जिसे यू आर एल कहते है, वह हिन्दी में, अपनी लिपि नागरी में! फिर वहाँ अपनी प्रतिक्रिया में भी यह पूछ बैठा कि यह कैसे होगा? अगले दिन अपने फुरसतिया जी फेसबुक पर फुरसत में मिल गये। उनसे पूछा और बस धीरे-धीरे काम हो गया। अब आप भी देख लीजिए कि कैसे होता है ये सब! उम्मीद है कि बहुत कम लोग जानते होंगे। तो क्यों न हिन्दी ब्लॉगों के आधे पते, जिनपर हमारा बस चलता है (क्योंकि ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम तो रहेगा ही। मालिक हम नहीं, ब्लॉगर है, गूगल है), उनको अपनी भाषा हिन्दी के साथ-साथ अपनी लिपि नागरी में कर दिया जाय। लेकिन लफड़ा यह है कि ब्लॉग तो बन चुका है। फिर तरीका तो एक ही है कि नया ब्लॉग बनाया जाय। कौन-सा पैसा लगता है! और फिर उस ब्लॉग के साथ अपने वर्तमान ब्लॉग को ऐसे बाँध दिया जाय कि नये ब्लॉग पते पर जाते ही वर्तमान ब्लॉग खुल जाय। इसे तकनीकी भाषा में रिडायरेक्ट करना कहते हैं। चलिए, यही सब यहाँ देखते-करते हैं।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में हाथ से लिखते समय झ एक जैसे...

आज बस एक इतना ही...


बुधवार, 7 दिसंबर 2011

ग्यान और भाखा - राहुल सांकिर्ताएन


भाषा एक अत्यन्त महत्वपूर्ण मुद्दा है। इस चिट्ठे का नाम भी हिन्दीभोजपुरी है। तो जाहिर है कि भाषा सम्बन्धी लेख यहाँ अक्सर पढने को मिलेंगे ही। राहुल सांकृत्यायन की किताब ‘भागो नहीं दुनिया को बदलो’ या ‘भागो नहीं बदलो’ से एक अध्याय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। इस किताब पर एक विस्तृत लेख इसी महीने पढने को मिलेगा। फिलहाल यह अध्यायजो किताब का सत्रहवाँ अध्याय हैयहाँ प्रस्तुत है। इस किताब की भाषा बड़ी लचकदार है। शुद्धतावाद के पक्षधरों के लिए यह भाषा एक चुनौती है। राहुल जी ने इस किताब की भूमिका में ही लिखा है कि यह किताब छपराबलिया इलाके की भाषा के असर के साथ हिन्दी में लिखी जा रही है। इस किताब में ‘’ के लिए ‘’, ‘’ के लिए ‘’, ‘ज्ञ’ के लिए ‘ग्य’ जैसे कई प्रयोग थे। हमारे इलाके में ऐसी ही भाषा बोली जाती है। किताब में कुछ पात्र हैं और पूरी किताब संवादात्मक शैली में लिखी गयी है। ‘भैया’ कोई गप्पी नहीं बल्कि एक प्रबुद्ध चिन्तक और विद्वान है। ‘संतोखी’ और ‘दुखराम’ सामान्य किसान हैं और ‘सोहनलाल’ एक पढ़ा-लिखा और शहर में रहनेवाला युवक है। किताब की भूमिका से लगता है कि ‘संतोखी’ और ‘दुखराम’ नाम के दो व्यक्ति थेऔर एक साधारण पढा-लिखा व्यक्ति जो मात्र  6-7 तक पढ़ पाया होवह भी समझ सकेराहुल जी के लिए इस किताब की भाषा को इस लायक मानने के आधार भी थे।
यहाँ ध्यान देने की बात है कि यह किताब 1945-46 के आस-पास की हैतो जाहिर हैकिताब पर उस समय का असर कई जगह दिखता है। बँगला और उर्दू को लेकर बंग्लादेश में चले लफड़े का पूर्वानुमान भी राहुल जी ने लगाया थाइसका अन्दाजा इस अध्याय के आखिरी वाक्य से लगता हैजो इंदिरा गाँधी के समय सच भी साबित हो गया।
एक महत्वपूर्ण बात यह भी है इस अध्याय को पूरी तरह टंकित भी मैंने नहीं किया है। इसे ओसीआर साफ्टवेयर की सहायता से यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।
राहुल जी ने इस किताब में अपना नाम ‘राहुल सांकिर्ताएन’ लिखा है। इसे अलग-अलग टुकड़ो में देना उचित नहीं लगाइसलिए पूरे अध्याय को एक ही बार में यहाँ रखा जा रहा है। थोड़ा अधिक समय लगेगा पढने में। इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

इस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यों है

कुछ पन्ने पलटते समय कुछ नोट किए गए शेर-वेर मिल गए। उन्हें साझा कर रहा हूँ। पिछली बार सन्दर्भ की चर्चा हुई थी। गजल तो है ही एक फालतू किस्म की विधा। कोई भी बात दो पँक्तियों में कहकर मिला देते हैं इसमें। यहाँ फालतू का अर्थ सही परिप्रेक्ष्य में लिया जाना चाहिए। यहाँ गजलों से लिए गए शेर-अशआर (अशआर ठीक से पता नहीं कि क्या है) प्रस्तुत हैं। शुरूआत पद्मश्री गोपालदास नीरज से-

मुझको उस वैद्य की विद्या पे तरस आता है
भूखे लोगों को जो सेहत की दवा देता है।