शनिवार, 31 दिसंबर 2011

भाषा पर एक बातचीत ... 'भाषा एक प्राथमिक सवाल क्यों है'

एक मित्र से हुई बातचीत यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। 

'भाषा एक प्राथमिक सवाल क्यों है'

हम: एक उदाहरण देखिए। 

मित्र: हाँ। 

हम: पूँजीवादी कितने है ? कितने प्रतिशत ? 

मित्र: पाँच फीसदी के करीब। 

हम: अंग्रेजी वाले कितने हैं ? 121 करोड़ में से कितने ?

मित्र: लगभग इतने ही होंगे। 

हम: क्यों ? फिर इतने कम लोगों का सारा कानून 121 करोड़ लोगो पर चलता है। क्यों ?

मित्र: आप बताइये। 

हम: पहले एक सवाल। कितने लोग जो अच्छी अंग्रेजी जानते- बोलते- समझते हैं वे भूख से मरते हैं ? गरीब हैं ?

मित्र: एक भी नहीं। 

हम: और कितने लोग अच्छी मैथिली, मगही, ब्रज,  गढवाली, हिन्दी- भोजपुरी बोलने वाले नौकरी को तरसते हैं ? तो निष्कर्ष खुद बताइए। मैं खोलता हूँ भोजपुरी सिखाने के लिए संस्थान। कितने लोग आएंगे ? क्या मैं कार खरीद सकता हूँ उस कमाई से ?

मित्र: हरगिज नहीं। 

हम: अब मैं खोलता हूँ अंग्रेजी स्पोकेन कोर्स ? कार तो कार,  कार की फैक्ट्री खोल सकता हूँ थोड़ा दिमाग लगाकर, चापलूसी कर। 

मित्र: सही। 

हम: तो शोषित वर्ग किस भाषा का है ? हिन्दी या अन्य भारतीय भाषा वाला या अंग्रेजी वाला ? 

भाषा पहाड़ जैसा मुद्दा है। क्योंकि वह है। चप्पल खरीदो, चप्पल पर अंग्रेजी। कुदाल खरीदो, उस पर TATA अंग्रेजी। 

गंजी- धोती- लुंगी- टोपी- छाता- गमछा खरीदो हर जगह अंग्रेजी। कुदाल चलाने वाला समझता है अंग्रेजी ?

मित्र: नहीं। 

हम: आप बताइए ऐसा क्या है जिसे मजदूर किसान खरीदते हों और अंग्रेजी न लिखा गया हो। 

दवा- खाद- बीज तक पर अंग्रेजी। और लोग कहते हैं कि अंग्रेजी से दिक्कत नहीं ?

पाँचवी पास-आठवीं पास चपरासी का रेलवे-फार्म हो या कुछ भी। फार्म अंग्रेजी, प्रवेश- पत्र अंग्रेजी। परीक्षा परिणाम के लिए लगभग सब अंग्रेजी। 

अदालतों की तो बात ही छोड़ दो। आपकी जांघिया पर अंग्रेजी, पैंट पर अंग्रेजी। 
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आपको क्या लगता है ? इस विषय पर एक लेख के माध्यम से हम अपने विचार यथाशीघ्र ही रखने की कोशिश करेंगे। 

6 टिप्‍पणियां:

  1. यही आंतरिक उपनिवेशीकरण है, जो वै​देशिक उपनिवेशीकरण से कहीं अधिक खतरनाक है. इसलिए कि इसका सामना करने के लिए आपको कहीं न कहीं उन लोगों से टकराना पड़ सकता है, जो आपके अपने हैं. जिन्हें आप अपने ​अस्तित्व का हिस्सा मानते हैं. यह समाज, संस्कृति और संबंध सभी को अपने प्रभाव में ले लेता है. इसका जाल इतना महीन बुना होता है, उसको भेद पाना बहुत ही दुष्कर होता है.

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  2. ऐसा होना नहीं चाहिए, लेकिन होता क्‍यों है, विचारणीय.

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  3. अच्छा है! अच्छे विचार हैं। अब इस साल पढ़ते हैं भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी।

    नया साल मुबारक हो!

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  4. प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष की अशेष शुभकामनाएं । धन्यवाद ।

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  5. भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी यह सुन कर अच्छा लगा. 5 फीसदी लोग विश्व के 95 फीसदी संपत्ति के मालिक हैं क्योंकि वे रोचक और भयानक सपने दिखा कर दूसरों की जेब से धन निकालने की क्षमता रखते हैं. सब से बढ़ कर वे अपने धन की रक्षा करने में भी कुशल हैं, तरीका चाहे कोई हो.

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  6. मेरा विचार है कि बड़े लेख के माध्यम से बात कहना बेहतर होगा.

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