सोमवार, 14 मई 2012

मनोहर पोथी बेचते बच्चे (कविता)


हाल की एक कविता जिसके कुछ भाव आजादी कविता से मिलते हैं... 

दस रुपये में चार किताबें
बेच रहे थे बच्चे
उस दिन
रेलगाड़ी में
जिनकी उम्र दस साल भी नहीं थी।

मनोहर पोथी भी थी उसमें
जिसमें
गाँधी की जीवनी
अनिवार्य होती है।

मुझे याद है
मनोहर पोथी का पहला रंगीन आवरण
जिसमें बच्चे खेलते-कूदते-हँसते-गाते
उछलते हुए दिखते थे।

संसद की अलमारी में
किसी मोटी-सी फ़ाइल में
पड़ा है निः शुल्क शिक्षा का अधिकार
और यहाँ गली में
हर रोज दिखते हैं
मनोहर पोथी बेचते बच्चे।

जिन्हें मालूम नहीं
कि
मनोहर पोथी का ज़माना
अब लद चुका है
अब स्टीकरों वाली
100-100 रुपये की किताबें
नर्सरी के बच्चों को दी जाती हैं
जो दुकानों पर नहीं
विद्यालयों में ही मिल जाती हैं,
जो विद्यालय कम
दुकान ज़्यादा है
क्योंकि वहाँ
किताबें, कॉपियाँ
जूते-मोजे
टाई-बेल्ट
बैच-बैग
सब कुछ मिलते हैं अब।

उन बेवकूफ़ों को
यह पता नहीं
कि
हर वह चीज़ जो
बीते ज़माने की हो चुकी है
उन्हें ही मिलती है।

मनोहर पोथी के
का भी अता-पता नहीं है उन्हें
हाँ, वे दस रुपये का नोट
ज़रूर पहचानते हैं।

मैं यही देखता रहा
कि
नहीं खरीद सकता मैं
दस रुपये देकर
मनोहर पोथी की किताब
मैं बड़ा हो गया हूँ अब।

... और वे रेल के डिब्बे बदलकर
फिर चिल्लाते हैं
दस रुपये में चार किताबें
मनोहर पोथी... मनोहर पोथी।

कभी-कभी दिखता है मुझे
कि
कल के हिंदुस्तान हैं यही
मनोहर पोथी बेचते बच्चे

6 टिप्‍पणियां:

  1. बच्‍चे बड़ी आसानी से कविता में तब्‍दील हो जाते हैं.
    ‘मनोहर पोथी बेचते बच्चे’- पेक्ति प्रभावी है.

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  2. शिक्षा के अधिकार से शिक्षा के व्यापार और अशिक्षा की मार तक की कहानी आपकी कविता कह गई है. बहुत खूब.

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  3. वो जो बीज है पनप रहा,खाद के बिना
    बन भी गया खजूर तो करेगा देश क्या!

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  4. बदलते भारत की दास्तान सुनाने हेतु आभार ...

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  5. जिस भाव के साथ कविता को प्रस्तुत किया ,वह समय सोचने का अनमोल था ,,आज भी गरीब,,,यतीम बच्चे शिक्षा के लिए तरस रहे है ,,,और शिक्षा का अधिकार लालफीताशाही में पड़ी जंग खा रही है ,,हर वर्ष करोडो रूपये की किताबे सर्व शिक्षा अभियान में छपी जाती है ,फिर भी उन जरुरतमंदों तक किताबे नही पहुच प रही है ,,मात्र स्कूल में नाम दर्ज कर लेने से शिक्षा का अधिकार पूरा नही हो जाता ,,की जब तक उनके घर के लोगो को कोई रोजगार नही मिल जाता ,,यही बच्चे स्कूल छोड़ देते है ,,फिर उन्हें शाला त्यागी बच्चो के रूप में कई संस्थाओ में दर्ज कर लिया जाता है ,,और किताबो को कबाड़ में ,,,छात्रवृति में भी बंदरबांट हो जाती है ,,स्कूल कागजो में बड़े ही बखूबी ढंग से चलता है

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