एक कविता जो मैंने 29 नवंबर 2010 को लिखी थी, आपके सामने है। 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इसी अवसर पर सोचा कि यह कविता आपके सामने रखूं। इसमें हो सकता है कि शब्द ठीक से न पिरोया गया हो। अर्थ छितराये हुए हों। लेकिन मेरी पुरानी आदत है कि मैं अपने पहले की लिखी चीजों में कोई बदलाव नहीं करता क्योंकि वो मुझे याद दिलाती है कि मैंने उसे कैसे लिखा था। तो पढिए और बताइए लिखने वाला किस हद तक सिरफिरा मालूम पड़ता है।
स्त्री और शब्द
क्यों?
आखिर क्यों?
होता है वह हरेक शब्द
स्त्रीलिंग
जो आदमी को परेशान करता है
जिंदगी, समस्या, दिक्कत
जरूरत, दौलत, कीमत
जमीन-जायदाद, वसीयत
सरकार, पुलिस
पढ़ाई, गरीबी
बीमारी, तबीयत
प्यास, आस
हड़बड़ी, गड़बड़ी
समय की घड़ी
परीक्षा, नौकरी
ताकत, हैसियत।
लिखने वाले के लिए
भाषा, कलम, किताब, कॉपी।
चिंता, निराशा, अभिलाषा
कामना, भावना
हर वो चीज
जो लाचार है
क्यों बन जाती है औरत।
क्यों बन जाते हैं छलने वाले शब्द
जो पुल्लिंग नहीं हैं -
हँसी, मुस्कान, आँख
जो बिकती है वो भी
जिसमें बेची जाती है वो भी
चीज, वस्तु
दुकान।
जो तोड़ती है दिलों को
दुश्मनी, मुहब्बत, हवस।
जब होती है चहल-पहल
समय बन जाता है दिन
जब हो जाता है शांत, सहमा हुआ समय
बन जाता है रात, सुबह, शाम।
सीना ताने खड़ा रहता है शोर
पर चुप रहती है शांति।
पहले होता है देश
फिर बन जाता है राज्य
तय करते हुए सफ़र
फिर बन जाता है - पंचायत
बनते हैं कानून
चुप रहती है संसद
लोकसभा, राज्यसभा, विधान सभा
सब कुछ बन जाता है स्त्रीलिंग।
सब कुछ छिन लेती है
मौत
फिर स्त्री बनकर।
जिसके पास बल है
वही रहता पुल्लिंग।
समस्या का समाधान
दौलत से अमीर
चीज से मालिक या खरीदार
हड्डियों से शरीर
प्यास बुझाता है पानी
भाषा से व्याकरण
लिखने से साहित्यकार
जनता से नेता।
कुछ लोग कह सकते हैं मेरे विरुद्ध
अन्य शब्द, शब्दकोष से लेकर।
क्योंकि अक्षर और वर्ण से लेकर
शब्द और वाक्य तक
पुल्लिंग कोश में पाये जाते हैं पुल्लिंग।
छोटी होती है, - कथा, कविता, गजल
लेकिन कथा-संग्रह, कविता संग्रह
सारे संग्रह
बन जाते हैं पुल्लिंग।
उपन्यास रहता है पुल्लिंग
छोटी उपन्यासिका बन जाती
स्त्रीलिंग।
किसने गढ़े हैं
सारे शब्द
किसी आदमी ने नहीं
किसी पुल्लिंग शब्द ने गढ़ा होगा
क्योंकि
हम सब शब्द हैं केवल
जब निकल जाती है जान
मर जाती है मानवता
छुप जाती है संवेदना
तब हम बन जाते हैं
शरीर से
लाश
एक स्त्रीलिंग शब्द।
अरे क्या बात है। कुछ इसी तरह की बात हम भी सोचे एक दिन।
जवाब देंहटाएंक्या पता शायद वर्णमाला का निर्धारण किसी मर्दानी सोच वाले ने लिया और स्त्रीलिंग ध्वनियों को अनारकली की तरह इतिहास में दफ़न हो कर दिया हो।
http://hindini.com/fursatiya/archives/1333