सोमवार, 23 जनवरी 2012

170 देशों में नोटों पर अंग्रेजी का हाल


इस साल का पहला लेख हाजिर है। व्यस्तताओं और स्वास्थ्य कारणों से इस महीने सक्रियता लगभग शून्य रही है। 

हाल ही में सोचा कि दुनिया के देशों में नोटों पर अंग्रेजी का कितना कब्जा है ? इसलिए लगभग 170 देशों के नोटों पर एक अध्ययन किया। निष्कर्ष वही सामने आया जो आता लेकिन अँखमुँदे विद्वानों से कुछ भी कहना बेकार सा लगता है। अंग्रेजी वाले देश जैसे कनाडा, अमेरिका, इंग्लैंड, जमैका, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रिका आदि की बात तो करनी ही नहीं क्योंकि इन देशों मे तो अंग्रेजी ही चलती है। आइए एक नजर डाल लेते हैं इस अध्ययन पर। लगभग 170 देशों के नोटों को देखने के लिए अन्तर्जाल और कुछ वेबसाइटों का सहयोग मिला, यह एक बड़ी बात थी। नोटों के नंबर तक कई देशों में अरबी आदि भाषाओं में देखने को मिले। उदाहरण के लिए यमन, इराक आदि देखे जा सकते हैं। कुछ देशों में मात्र बैंक के नाम अंग्रेजी में मिले तो कुछ में सिर्फ मुद्रा या राशि अंग्रेजी में लिखी मिली और सब कुछ गैर- अंग्रेजी में। वहीं सबसे ज्याद देश ऐसे थे, जहाँ अंग्रेजी की आवश्यकता नोट पर बिलकुल महसूस नहीं की गई और जैसा सोचता था, वैसा ही हुआ और ऐसे देश सबसे ज्यादा रहे। इनमें से 101 देश ऐसे हैं, जिनके नोटों पर अंग्रेजी बिलकुल ही इस्तेमाल नहीं की गयी थी यानी एक वाक्य तक अंग्रेजी का नहीं था। इनमें दुनिया के विकसित माने जाने वाले देशों में सबसे अधिक देश थे। उदाहरण के लिए जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्वीडेन, स्विटजरलैंड आदि।


मारीशस- 1000 रु० - 2001

      वर्तमान जानकारी के अनुसार 42 विकसित देशभी हैं, जिनमें गैर-अंग्रेजी वाले देशों की संख्या 30 से अधिक है और उनमें से 20 से अधिक देश अपने नोटों पर अंग्रेजी का इस्तेमाल किसी भी रूप में नहीं करते।
रूस- 5000 रूबल- 2010- नोट का अगला भाग

रूस- 5000 रूबल- 2010- नोट का पिछला भाग

      फिलीपिन्स और डेनमार्क अपने नोटों पर सिर्फ बैंक का नाम अंग्रेजी में लिखते हैं और सब बातें गैर- अंग्रेजी में। इसी तरह नेपाल और जार्जिया राशि अंग्रेजी मे भी लिखते हैं और शेष बातें क्रमशः  नेपाली और जार्जियाई में। इस तरह इन चार देशों को भी गैर-अंग्रेजी का इस्तेमाल करनेवाला माना जा सकता है। फिर 105 देश ऐसे हो जायेंगे जो अंग्रेजी से मुक्त नजर आ सकते हैं।
      दुनिया के 170 में से भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान को लेकर 32 देश ऐसे थे जिनके नोटों पर अंग्रेजी मे बैंक के नाम और राशि लिखी मिली। कुछ देश बहुत छोटे भी थे। जिन 101 देशों के नोटों पर किसी भी रूप मे अंग्रेजी नहीं थी, उनकी कुल जनसंख्या 224 करोड़ से अधिक है। चीन को लेकर स्पष्टता कुछ कम ही हुई। वरना देशों की संख्या 102 और कुल जनसंख्या 359 करोड़ होती।
फिर भी यदि देशों की संख्या को आधार बनायें तब दुनिया के लगभग आधे देश अंग्रेजी के दास कम से कम नोटों पर नजर नहीं आये। कुछ लोग ज्यादा काबिल बनते हुए अपना फैसला अंग्रेजी के पक्ष में सुनाएँ, इससे बेहतर होगा कि 100 से अधिक देशों का खयाल जरूर कर लें। वरना ऐसे लोगों से भी पाला पड़ा है जो संसार के 4-5 देशों के, जिनमें अंग्रेजी चलती है, लोगों से बात करके अंग्रेजी को सारे संसार की भाषा घोषित किए देते हैं।
अगर भारत, चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़कर बात करें तो 288 करोड़ लोगों के ये चार देश बाहर निकल जाते है। फिर अंग्रेजी में राशि और बैंक के नाम लिखने वाले देशों की संख्या 32 से घटकर 28 और ऐसा करने वाले देशों की कुल जनसंख्या सिर्फ 73 करोड़ रह जाती है जो दुनिया की कुल जनसंख्या का लगभग 10 प्रतिशत है। इस तरह दुनिया में देशों की संख्या के हिसाब से 20 प्रतिशत भी नहीं और जनसंख्या के हिसाब से 15 प्रतिशत भी नहीं हैं अंग्रेजी के भक्तजन! (जिन 170 देशों पर मैंने काम किया उनमें से 140 देशों की कुल जनसंख्या ही लगभग 600 करोड़ है और 600 करोड़ संसार की कुल जनसंख्या का 86 प्रतिशत है।) अब आप स्वयं तय करें कि आपके देश के रूपये पर क्या होना चाहिए ? वैसे तो अपने यहाँ व्यक्तिवाचक संज्ञाओं का अनुवाद भी होता है। सदाबहार उदाहरण भारत का इंडिया के रूप में मौजूद है! (वे लोग यहाँ लिखने से बचें जो आकर कहना चाहते हों कि हमारे सोचने- लिखने- कहने से क्या होगा ?) 

10 टिप्‍पणियां:

  1. इन सभी नोटो मे एक समानता है, राशी हमेशा आपको भारतीय अंको या भारतीय अंको के अंतराष्ट्रीय स्वरूप मे मीलेगी!

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  2. इनमें से 101 देश ऐसे हैं, जिनके नोटों पर अंग्रेजी बिलकुल ही इस्तेमाल नहीं की गयी थी यानी एक वाक्य तक अंग्रेजी का नहीं था। इनमें दुनिया के विकसित माने जाने वाले देशों में सबसे अधिक देश थे। उदाहरण के लिए जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्वीडेन, स्विटजरलैंड आदि।
    achchi jankari di.

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  3. बढ़िया शोध, यकीनन नोटों के अलावा और भी चीजें हैं जिन पर अंग्रेजी का प्रभाव नहीं है।

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  4. आपने अच्छा-खासा शोध कर दिया है. स्थिति बहुत साफ़ है. जिन देशों को गुलामी की आदत नहीं है वे अपनी भाषा में कार्य करते हैं. उपयोगी जानकारी देने वाला आलेख.

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  5. जानना रोचक है, लेकिन इस सर्वे में लगे संभावित समय की सोच कर अजीब लग रहा है.

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  6. अच्छी जानकारी आपने मुहैया करवाई तभी तो कहा गया -निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मूल ,बिन निज भाषा ज्ञान के ,मिटात न हिय को सूल .

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  7. बहुत अच्छी जानकारी। बहुत अच्छी रचना।

    मैंने हमेशा आपको मुद्दों पर सार्थक प्रश्न उठाते हुए पाया है। और कई बार असहमति होते हुए भी आपसे सहमत होने का मन करता रहता है।

    इस बार तो न सिर्फ़ जानकारी रोचक है, बल्कि मुद्दा भी विचारणीय और चिंताजनक है।

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