एक सादा, बिलकुल साधारण-सी कविता जो 26 जनवरी को ही 2007 में लिखी गयी थी।
आज सुबह साढ़े आठ बजे
मंत्रीजी की गाड़ी से
कुचल गया एक ग़रीब दौड़ता बच्चा
चारों तरफ़ मची अफ़रा-तफ़री है
क्योंकि आज छब्बीस जनवरी है।
पाँच हजार की आबादी वाले गाँव में
एक हजार लोग नव बजे
दुनिया छोड़ चुके
इसका कारण भूखमरी है
क्योंकि आज छब्बीस जनवरी है।
सोने पर हीरे जड़े गए
मैले कपड़े पर कीचड़
मैं कवि हूं इसलिए दोस्तों
मुझे भी तो हड़बड़ी है
क्योंकि आज छब्बीस जनवरी है।
पीले सूखे पत्तों पर नहीं
गाय की आँखों पर प्लास्टिक चिपकाये गये
हरे रंग के
गाय ने समझा घास हरी है
क्योंकि आज छब्बीस जनवरी है।
मरने को आतुर बूढ़े की
दोनों आँखें दो छोरों पर
टिकी हैं ऐसे मानो
मूसलाधार बारिस में छिद्रोंवाली कोई छतरी है
क्योंकि आज छब्बीस जनवरी है।
वाह दोस्त!
जवाब देंहटाएंकमाल की अभिव्यक्ति है।
मेरे घर के ठीक पीछे ट्राफ़िक पुलिस और सीआईडी का मुख्यालय है। अभी थोड़ी देर पहले घर आ रहा था तो देखा एक गाड़ी गेट से धर्र से निकली और सामने से जा रहे मोटर सायकिल वाले को मार दिया। बेचारा खून से लथपथ तड़पता रहा और वह पुलिस की गाड़ी चलती बनी।
कल छब्बीस जनवरी है।
आपकी निम्न पंक्तियों के परिप्रेक्ष्य में लिख गया ...
आज सुबह साढ़े आठ बजे
मंत्रीजी की गाड़ी से
कुचल गया एक ग़रीब दौड़ता बच्चा
चारों तरफ़ मची अफ़रा-तफ़री है
क्योंकि आज छब्बीस जनवरी है।
बेहतर...
जवाब देंहटाएंविसंगतियां ऐसे अवसरों पर अधिक सालती हैं.
जवाब देंहटाएंगजब की संवेदना.... पढ़कर मुख से स्वतः 'वाह' निकल गया...
जवाब देंहटाएंचन्दन कुमार मिश्र ने
अपने लेखों के बीच में
कविता से
सुना दी खरी-खरी है
क्योंकि आज छब्बीस जनवरी है।
......... और मेरी आहुती .....
सत्ता के अर्थशास्त्रियों ने
गरीबी मिटाने को
२७ और ३२ की
रेखा निर्धारित करी है.
क्योंकि आज छब्बीस जनवरी है।
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