इस साल का पहला लेख हाजिर है। व्यस्तताओं और स्वास्थ्य कारणों से इस महीने सक्रियता लगभग शून्य रही है।
हाल ही में सोचा कि दुनिया के देशों में नोटों पर अंग्रेजी का कितना कब्जा है ? इसलिए लगभग 170 देशों के नोटों पर एक अध्ययन किया। निष्कर्ष वही सामने आया जो आता लेकिन अँखमुँदे विद्वानों से कुछ भी कहना बेकार सा लगता है। अंग्रेजी वाले देश जैसे कनाडा, अमेरिका, इंग्लैंड, जमैका, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रिका आदि की बात तो करनी ही नहीं क्योंकि इन देशों मे तो अंग्रेजी ही चलती है। आइए एक नजर डाल लेते हैं इस अध्ययन पर। लगभग 170 देशों के नोटों को देखने के लिए अन्तर्जाल और कुछ वेबसाइटों का सहयोग मिला, यह एक बड़ी बात थी। नोटों के नंबर तक कई देशों में अरबी आदि भाषाओं में देखने को मिले। उदाहरण के लिए यमन, इराक आदि देखे जा सकते हैं। कुछ देशों में मात्र बैंक के नाम अंग्रेजी में मिले तो कुछ में सिर्फ मुद्रा या राशि अंग्रेजी में लिखी मिली और सब कुछ गैर- अंग्रेजी में। वहीं सबसे ज्याद ा देश ऐसे थे, जहाँ अंग्रेजी की आवश्यकता नोट पर बिलकुल महसूस नहीं की गई और जैसा सोचता था, वैसा ही हुआ और ऐसे देश सबसे ज्यादा रहे। इनमें से 101 देश ऐसे हैं, जिनके नोटों पर अंग्रेजी बिलकुल ही इस्तेमाल नहीं की गयी थी यानी एक वाक्य तक अंग्रेजी का नहीं था। इनमें दुनिया के विकसित माने जाने वाले देशों में सबसे अधिक देश थे। उदाहरण के लिए जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्वीडेन, स्विटजरलैंड आदि।
मारीशस- 1000 रु० - 2001 |
वर्तमान जानकारी के अनुसार 42 विकसित देश अभी हैं, जिनमें गैर-अंग्रेजी वाले देशों की संख्या 30 से अधिक है और उनमें से 20 से अधिक देश अपने नोटों पर अंग्रेजी का इस्तेमाल किसी भी रूप में नहीं करते।
रूस- 5000 रूबल- 2010- नोट का अगला भाग |
रूस- 5000 रूबल- 2010- नोट का पिछला भाग |
फिलीपिन्स और डेनमार्क अपने नोटों पर सिर्फ बैंक का नाम अंग्रेजी में लिखते हैं और सब बातें गैर- अंग्रेजी में। इसी तरह नेपाल और जार्जिया राशि अंग्रेजी मे भी लिखते हैं और शेष बातें क्रमशः नेपाली और जार्जियाई में। इस तरह इन चार देशों को भी गैर-अंग्रेजी का इस्तेमाल करनेवाला माना जा सकता है। फिर 105 देश ऐसे हो जायेंगे जो अंग्रेजी से मुक्त नजर आ सकते हैं।
दुनिया के 170 में से भारत, बांग्लादेश , पाकिस्तान को लेकर 32 देश ऐसे थे जिनके नोटों पर अंग्रेजी मे बैंक के नाम और राशि लिखी मिली। कुछ देश बहुत छोटे भी थे। जिन 101 देशों के नोटों पर किसी भी रूप मे अंग्रेजी नहीं थी, उनकी कुल जनसंख्या 224 करोड़ से अधिक है। चीन को लेकर स्पष्टता कुछ कम ही हुई। वरना देशों की संख्या 102 और कुल जनसंख्या 359 करोड़ होती।
इन सभी नोटो मे एक समानता है, राशी हमेशा आपको भारतीय अंको या भारतीय अंको के अंतराष्ट्रीय स्वरूप मे मीलेगी!
जवाब देंहटाएंइनमें से 101 देश ऐसे हैं, जिनके नोटों पर अंग्रेजी बिलकुल ही इस्तेमाल नहीं की गयी थी यानी एक वाक्य तक अंग्रेजी का नहीं था। इनमें दुनिया के विकसित माने जाने वाले देशों में सबसे अधिक देश थे। उदाहरण के लिए जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्वीडेन, स्विटजरलैंड आदि।
जवाब देंहटाएंachchi jankari di.
बढ़िया शोध, यकीनन नोटों के अलावा और भी चीजें हैं जिन पर अंग्रेजी का प्रभाव नहीं है।
जवाब देंहटाएंआपने अच्छा-खासा शोध कर दिया है. स्थिति बहुत साफ़ है. जिन देशों को गुलामी की आदत नहीं है वे अपनी भाषा में कार्य करते हैं. उपयोगी जानकारी देने वाला आलेख.
जवाब देंहटाएंबेहतर जानकारी...
जवाब देंहटाएंजानना रोचक है, लेकिन इस सर्वे में लगे संभावित समय की सोच कर अजीब लग रहा है.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी आपने मुहैया करवाई तभी तो कहा गया -निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मूल ,बिन निज भाषा ज्ञान के ,मिटात न हिय को सूल .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी। बहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंमैंने हमेशा आपको मुद्दों पर सार्थक प्रश्न उठाते हुए पाया है। और कई बार असहमति होते हुए भी आपसे सहमत होने का मन करता रहता है।
इस बार तो न सिर्फ़ जानकारी रोचक है, बल्कि मुद्दा भी विचारणीय और चिंताजनक है।
अच्छी जानकारी मिली
जवाब देंहटाएंNice.....
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