सोमवार, 27 जून 2011

अब भगतसिंह के 'मैं नास्तिक क्यों हूँ' पर ही उठा दी गई अंगुली

जी हाँ। अब भगतसिंह के लिखे आलेख 'मैं नास्तिक क्यों हूँ' पर ही अंगुली उठाते हुए पिछली पोस्ट वाले स्मार्ट इंडियन अपने शक की सूई चुभोना चाह रहे हैं। इस आलेख में मैं अनवरत पर हुई चर्चा के उन अंशों को दे रहा हूँ जिनमें भगतसिंह के आलेख पर संदेह किया गया है।

मैं अक्सर अपनी टिप्पणियाँ दूसरे चिट्ठों पर करता हूँ और वह इस लायक हो जाते हैं कि उन्हें पूरे आलेख में आपके सामने रखा जा सकता है। मेरा मानना है कि इस तरह की टिप्पणियों वाले आलेखों में अच्छी बातें सामने आती हैं। अब अफसोस इस बात का है कि ऐसा करते समय किसी खास आदमी को केंद्र में रखना पड़ जाता है। और यह अच्छा नहीं लगने पर भी करना आवश्यक लगता है क्योंकि बहुत सारे सवाल-जवाब के क्रम में बहुत सी नई बातें और विचार सामने आते हैं। इसलिए आज पढ़िए यह आलेख।


पिछली पोस्ट को ध्यान में रखते हुए आप इसे पढ़ें। शायद मेरे सुझाव के चलते स्मार्ट इंडियन साहब अनवरत पर गए और वहाँ से भगतसिंह वाले आलेख तक। उसके बाद उन्होंने अपनी टिप्पणी अनवरत पर की। देखिए उनकी टिप्पणी और यहीं से शुरु हुआ भगतसिंह के आलेख पर बातों का सिलसिला।)



भगत सिंह के इस पत्र की मूल प्रति के बारे में कुछ जानकारी मिलेगी क्या?


भगतसिंह के पत्र की मूल प्रति के बारे में।


जी हाँआप भगतसिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज खरीद लेंउसमें 250वे पृष्ठ पर यह पत्र हैचमनलाल वाली किताब में। भगतसिंह के इस पत्र का हिन्दी अनुवाद किया था शिव वर्मा ने। और भगतसिंह की इस रचना को उनकी सबसे महत्वपूर्ण रचना माना जाता है। अपने भाई रणधीर सिंह से सिख धर्मकेश कटवाने और मिलने के सन्दर्भ में उन्होंने कुछ कहा थाजब भगतसिंह लाहौर जेल में थे।



यह रचना 5-6 अक्टूबर 1930 को हुई होगीऐसा कहा गया है।



मेरा आशय था कि भगत सिंह का मूल पत्र किस संग्रहालय में रखा है?


मैंने चमनलाल जी से पूछा है। अब देखिए कब तक जवाब देते हैं। फिर आपको बता दूंगा।

http://www.shahidbhagatsingh.org

http://www.shahidbhagatsingh.org/index.asp?link=atheist

http://drchaman.wordpress.com/page/17/

http://www.sikhcybermuseum.org.uk/People/randhirsingh.htm

http://chamanlal-jnu.blogspot.com/
इन लिंकों को देख सकते हैं।


श्री स्मार्ट इंडियन जी,


लीजिए जवाब भेज दिया है चमनलाल जी ने।


ये लेख मूलत अँग्रेजी मे लिखा गया और लाला लाजपत राय की अँग्रेजी पत्रिका the people के 27 सितंबर 1931 के अंक मे छपातीन मूर्ति दिल्ली मे उपलबद्ध है।

चमन लाल "


@चंदन कुमार मिश्र,

भगत सिंह के जिस पत्र की बात आप लोगकर रहे हैक्या (प्रोफेसर चमन लाल के अलावा) आप में से किसी ने कभी वह मूल पत्र या उसका पठनीय चित्र देखा हैक्या वह पत्र (टेक्स्ट या अनुवाद नहीं) इंटरनैट पर देखा जा सकता है? 



बिना पत्र देखे उसका प्रचार-प्रसार करना अपने आप में अन्ध-श्रद्धा या अन्ध आस्तिकता (blind faith) ही कहलायेगी। नास्तिकता की बात करने वालों को दूसरों से अपनी बात पर साक्ष्यहीन आस्था करने की आशा करने के बजाय बात कहने से पहले सबूत रखना अपेक्षित ही है।


पुनःलम्बी-लम्बी टैंजेंशियल बहस में मेरी कोई रुचि नहीं हैयदि किसी के पास मूल पत्र का पठनीय चित्र या उसका लिंक होतो कृपया बताने की कृपा करें। अगले दो-एक दिन तक मैं अधिक जानकारी की आशा में यहाँ फिर आउंगा।


स्मार्ट इंडियन जी,


भगतसिंह के जिस लेख को सारी दुनिया प्रामाणिक मानती है। आप उसे गलत सिद्ध करना चाहते हैं तो इस खोज में जुट जाइए। आप घर बैठे उसे गलत मानते हैं तो मानते रहिए। इस से किसी को क्या फर्क पड़ता हैजो सच है उसे झुठलाया नहीं जा सकता। फिर भी आप चाहते हैं कि उसे चुनौती दी जाए तो भारत की अदालतें इस मुकदमे को सुनने को तैयार हैं। भारत आइए और एक मुकदमा अदालत में मेरे और चंदन जी और उन तमाम लाखों लोगों के विरुद्ध पेश कीजिए जो इस आलेख को प्रामाणिक मानते हैं। अदालत दूध का दूध पानी का पानी कर देगी। बिना किसी सबूत के एक काल्पनिक ईश्वर पर विश्वास करने वाले से इस से अधिक क्या कहा जा सकता है।



स्मार्ट इंडियन जी,

हमारी भी इस मामले में आप से बहस करने में कोई रुचि नहीं है। हम यह बहस करने गए भी नहीं थे। आप ही यहाँ पहुँचे हुए थे।



श्रीमान स्मार्ट इंडियन जी,


अब तो हँसी आ रही है। क्योंकि चमनलाल जिंदा हैं और भगतसिंह पर सबसे ज्यादा अधिकृत लेखक हैं। आप कुलतार सिंह भगतसिंह के भाई हैंजीवित हैंउनसे मिल सकते हैं या वीरेन्द्र संधू उनकी भतीजी हैंअभी बूढ़ी भी नहीं हैंउनसे मिल सकते हैं और तो और छोड़िए मनोज कुमार की शहीद 1965 में आई थीउस समय भगतसिंह की माँ भी जिंदा थीं।



सब लोग गलत हैं और रामायण आदि सारे ग्रंथ जिनका समय भी पता नहीं तो लेखक की बात कौन करे कि जो माने जाते हैं वही हैं। लेकिन अब आपसे जवाब-सवाल मैं भी नहीं करना चाहताआप द्विवेदी के सुझाव से अदालत में मुकद्दमा ठोकिए। तुरन्त और कुछ लिख देता हूँ।



आदरणीय द्विवेदी जी,


पहले आपसे कुछ कहूंगा। आप बुरा मत मानिएगा कि किसी पर कुछ आरोप लगा रहा हूँ। सुज्ञ जी यानि हंसराज जी का जवाब आपने देख लिया है और फिर आपके जवाब पर उनका जवाब भी देख लीजिए। ये लोग कहते हैं कि ये नास्तिकों का सम्मान करते हैं लेकिन बार-बार अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष करते वही हैं जिससे ये इनकार करते हैं। सबूत के लिए आप सुज्ञ का नवीनतम जवाब देख लें।



इन स्मार्ट इंडियन को मैंने ही लिंक दिया था भगतसिंह के आलेख के लिए। लेकिन ये यहीं युद्ध नहीं ज्ञान-युद्ध शुरु कर देंगेमैं नहीं जानता था। फिर भी मैं वीरेन्द्र संधू का पता लगाकर और कुछ चीजें इन्हें अभी बताऊंगा ही।



इससे अब वाद-विवाद मैं भी नहीं करना चाहता लेकिन इनको वह सब तो बताना ही होगा। 



अब बता रहा हूँ।



स्मार्ट इंडियन जी,


पहले तो यह बताऊँ कि कांग्रेस सरकार ने भगतसिंह के दस्तावेजों को सामने आने नहीं दिया 1972-73 तक। यही कारण है कि शहीद(1965 में बनीइसे देख लीजिए या देखे होंगे) में भगतसिंह के इस वैचारिक पक्ष का अच्छा से दर्शन नहीं हो पाता वरना जरूर दिखाया जाता। लेकिन एक चीज तो आपको मालूम है कि 1928 से 1931 तक भगतसिंह-चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में 'हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ(हिसप्रस) नाम से आन्दोलन चला। लेकिन इस आन्दोलन के पहले नौजवान भारत सभा नाम से 1926 में भगतसिंह के नेतृत्त्व में पंजाब में आन्दोलन शुरु किया जा चुका था।


8-9 सितम्बर को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में बैठक हुई और भगतसिंह के पहले से चल रहे 'हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक संघका नाम मार्क्स और एंजेल्स से प्रभावित होने के कारण बदल कर समाजवादी शब्द जोड़ लिया गया। इसमें मार्क्सवादी चिंतन को मानने में सुखदेवभगवतीचरण वोहरा और भगतसिंह शामिल थे।1925 काकोरी बम कांड के बाद प्रजातांत्रिक संघ बिखरा हुआ था। 8-9 सितम्बर 1928 को चार प्रांतों के दस क्रान्तिकारी शामिल हुए। मेरे समझ से शहीद में इसी दृश्य के लिए गाना है 'कोई पंजाब से कोई यूपी से है कोई बंगाल से'। याद रखिए भगतसिंह पर मनोज कुमार की शहीद ही सबसे अच्छी फिल्म हैबाद की फिल्में तमाशा ज्यादा हैं। हाँ तो इस बैठक में चन्द्रशेखर आजाद शामिल नहीं हुए(सुरक्षा की दृष्टि से)। इसमें पंजाब और बिहार से दो-दो और एक राजस्थान के साथी शामिल हुए। अफसोस है कि बिहार के दोनों साथियों नेजिन्होंने समाजवाद शब्द का विरोध किया थाबाद में पुलिस के लिए लाहौर केस में गवाही दी।समाजवाद शब्द शामिल करने में भगतसिंह का साथ दिया विजयकुमार सिन्हाशिव वर्मा(जिन्होंने मैं नास्तिक क्यों हूँ का अनुवाद किया है)सुखदेवजयदेव कपूर और सुरेन्द्र पांडे ने किया।


यहाँ ध्यान देने लायक बात यह है कि शहीद में नौजवान भारत सभा लिखित रुप में दिखाया गया हैफिल्म की शुरुआत में ही। और सबसे जरूरी बात कि समाजवाद शब्द जुड़ा क्योंयह सोचिए। और यही नहीं शहीद के एक गाने में संगठन का नाम भी दिखाया गया हैएकदम साफ साफ लेकिन संक्षिप्त अंग्रेजी में।


यानि जब सरकार ने भगतसिंह के दस्तावेजों के साथ आना-कानी की तब भी शहीद-1965 तक समाजवाद जैसी बात सामने है।



भगतसिंह की जेल नोटबुक भी उपलब्ध है जो जेल में लिखी गई है। उसे देखकर जो बातें उसमें नोट की गई हैंकोई भी समझ सकता है कि यह आस्तिकों द्वारा नहीं की गई है। और समाजवाद या मार्क्सवाद हर जगह छाया हुआ है। 

भगतसिंह पर मन्मथनाथ गुप्त और विष्णु प्रभाकर जैसे लोगों ने भी लिखा है। और ये दोनों आपके तुलसी से ज्यादा विश्वसनीय हैंइतना तय है क्योंकि प्रभाकर ने 14 साल लगाकर आवारा मसीहा लिखी थीजितनी मेहनत शायद ही कोई कर सकता है। हाँ प्रभाकर गाँधीवादी थे और उनके मित्रों ने उनकी आलोचना भी की जब भगतसिंह की जीवनी उन्होंने लिखी। राजपाल एंड सन्स से छपी है। अब पूछिएगा यह श्रद्धा क्योंमन्मथनाथ गुप्तप्रभाकरशिव वर्मा सब क्रान्तिकारी रहे हैं। और मन्मथ जी दो दिन जेल जाकर पेंशन लेनेवाले क्रान्तिकारी नहीं हैंयह ध्यान रखिएइन्होंने विदेशी सुख नहीं भोगे हैं।



मन्मथनाथ गुप्त को काकोरी ट्रेन डकैती यानि 1925 से लेकर 1947 तक जेल में रहना पड़ा।
http://en.wikipedia.org/wiki/Hindustan_Socialist_Republican_Associationजितनी खोज आप इस सच्चाई की कर रहे हैं उतनी खोज तो रामायण और गीता की कभी नहीं की होगी।यहाँ समाजवादी शब्द आपको नास्तिकता के लिए काफी नहीं लगता। एक सिख होने पर भी पगड़ी नहीं रखना(बाद में भी नहीं रखा) जिस वजह से रणधीर सिंह ने एक बार मिलने से ही इनकार कर दिया था। अच्छा होता आप एकबार सम्पूर्ण दस्तावेज को पढ़ लेते
http://www.shahidbhagatsingh.org/dastavez/hindibook.pdf
और http://samajvad.wordpress.com/2009/09/ देखिए। लेकिन जो भगतसिंह की किताब है वह अच्छी नहीं है इस साइट पर। हो सकता है कि आप डाउनलोड कर भी लें तो पढ़ नहीं पाएँ। ढंग से नहीं है। अब बाकी बाद में। वैसे आपको अगर इतना शोध करना है तो आइएहम भी साथ देंगे।लेकिन इस जाँच का मकसद और मतलब आखिर है क्या? मैं नास्तिक क्यों हूँ कि एक भी बात ऐसी नहीं थी जो मैं नास्तिक होने के पहले जानता न था। मैंने वह आलेख ही नास्तिक होने के बाद पढ़ी। और उसका उदाहरण इसलिए देना पड़ता है कि लोग कुछ समझें वरना हमारे जैसे आदमी की बात को गम्भीरता से लेने में उन्हें शर्म और पता नहीं क्या क्या हो जाती है?


यह एक छोटा सा पत्र है कोई चंद्रमा को दो टुकड़े करने की बात तो नहीं थी कि इसपर इतना शक हो गया। हम भला चमत्कार की बात करते तो कुछ सही भी था लेकिन यह क्या?


http://en.wikipedia.org/wiki/Talk%3ABhagat_Singh और हाँ 2009 के दस्तावेज में कुलतार सिंह के हस्ताक्षर भी हैं और प्राक्कथन भी उन्हीं का हैये सब भी जाँच कर सकते हैं । http://www.scribd.com/doc/9728510/Jail-Note-Book-of-Shahid-Bhagat-Singh भी देख सकते हैं।

लेकिन वही सवाल कि आखिर इस बात की जाँच क्यों हो रही हैइसका उद्देश्य तो हम भी खूब समझते हैं।वैसे खोजबीन बुरी बात नहीं। लेकिन विवेकानद के हस्ताक्षर और उनके हाथ की छाप भी मैंने युगनायक विवेकानन्द में देखी है जो उनकी सबसे बड़ी जीवनी है। अब मैं भी उसकी सत्यता पर संदेह करके जाँच शुरु कर दूँ?और सब छोड़िएइतना तो लग ही रहा है कि भगतसिंह की बात से चोट पहुंच रही है। एक मिनट के लिए मान लेते हैं कि वह आलेख उन्होंने नहीं लिखा तब भी क्या फर्क पड़ जाता हैउसमें ऐसा क्या लिखा हैउसके सवालों के जवाब हैं?

सारा खेल समझ में तो आ ही रहा है। अन्त में आप मुकद्दमा ठोंकिएहम मुफ़्त में मशहूर हो जाएंगे। क्यों?



चंदन जी,
किसी भी सत्य को सामने लाना एक फर्ज है। उसे करने पर न कभी पाबंदी लगी है और न लगेगी। मेरा मानना है कि फिजूल की बहस के बजाए हमें जो भी जानकारी मिलती है उसे लोगों के सामने रखना चाहिए। हम रखते हैं और रखते रहेंगे। भौतिकवादियों का संघर्ष चार्वाकों के पहले से ले कर कपिल (सांख्य)से गुजरते हुए आज तक जारी है। सांख्य की मूल अवधारणा को विज्ञान ने साबित किया है। हमारी अपनी एक परंपरा है हमे उस का निर्वाह करते रहना चाहिए। भाववादियों के पास बहस करने के लिए कल्पना के सिवा कुछ नहीं है। वे पाँचों इंद्रियों से जाने जा सकने वाले जगत को मिथ्या और स्वप्न समझते हैंजब कि काल्पनिक ब्रह्म को सत्य। वे तो उस अर्थ में भी ब्रह्म को नहीं जान पाते जिस अर्थ में शंकर समझते हैं। सोते हुए को आप जगा सकते हैं लेकिन जो जाग कर भी सोने का अभिनय करे उस का क्या? हम अपना काम कर रहे हैंहमें यह काम संयम के साथ करते रहना चाहिए। हम वैसा करते भी हैं। पर कुतर्क का तो कोई उत्तर नहीं हो सकता न?


आदरणीय द्विवेदी जी,
आपसे सहमत लेकिन कुछ कुछ जोश या आदत से मजबूर हूँ। आपने सही कहा है। वैसे मैंने चमनलाल जी को इनकी बात भेज दी है। फिर भी कोई भगतसिंह या किसी आदर्श व्यक्ति पर उंगली उठाए तो हमें जवाब तो देना ही होगा।


लीजिए मेरा मेल और चमनलाल जी का जवाब देखिए जो पहले आया।
ये लेख मूलत अँग्रेजी मे लिखा गया और लाला लाजपत राय की अँग्रेजी पत्रिका the people के 27 सितंबर 1931 के अंक मे छपातीन मूर्ति दिल्ली मे उपलबद्ध है।
चमन लाल 

Visiting Professor on Hindi Chair
The University of the West Indies,St Augustine campus,Trinidad
Professor Chaman Lal, Former Chairperson
Centre of Indian Languages
Former President,JNU Teachers Association(JNUTA)
Jawaharlal Nehru University
New Delhi-110067, India
Former President,JNUTA(2006-07
http://www.bhagatsinghstudy.blogspot.com
www.chamanlal-jnu.blogspot.com
www.drchaman.wordpress.com
www.twitter.com/DrChaman
www.facebook.com/Dr.Chaman.JNU
http://in.linkedin.com/in/chamanlaljnu

From: 
चंदन कुमार मिश्र
To: chamanlal1947@yahoo.co.in
Sent: Sunday, 26 June 2011 2:18 AM
Subject: Bhagat singh
आदरणीय प्रोफ़ेसर साहब,
फिलहाल एक सवाल है कि भगतसिंह ने मैं नास्तिक क्यों हूँ मूलत: किस भाषा में लिखा थायह कहाँ रखी हुई है। अभी हम इसकी प्रति देख सकते हैं या नहीं। यानि भगतसिंह का यह दस्तावेज या पत्र किसी संग्रहालय में रखा है या नहीं?


अभी इतना ही।


जवाब के इन्तजार में
,


चंदन कुमार मिश्र

"
(इस मेल को यहाँ दिखाने का उद्देश्य यह बताना था कि चमनलाल जी कौन हैं ताकि उन्हें आप कोई झोला छाप लेखक मत समझ लें)


चंदन जी,बहुत बहुत धन्यवाद!


स्मार्ट इंडियन और द्विवेदी जी,
एक और प्रमाण देता हूँ। भारत सरकार के प्रकाशन विभाग जिसने नेताजी और गाँधी जी दोनों के सम्पूर्ण वांगमय छापे हैंउसकी एक किताब है 'शहीदों के खत'। 1990 में जब पद्मश्री डॉ श्याम सिंह शशि प्रकाशन विभाग के निदेशक थे तब यह किताब विनोद मिश्र ने संकलित करके छपाई। कीमत बहुत कम हैसिर्फ़ पांच रू। उसमें पृष्ठ 11 -12-13 देखिए। उससे भी वही साबित होता है कि भगतसिंह समाजवाद को मानने वाले हैं। और इसका सीधा सा मतलब है कि वे आस्तिक नहीं हैं।

कहिए तो इसकी फोटो लेकर अपने ब्लाग पर अपने पूरे जवाब के साथ लगा दूँ। 
स्मार्ट इंडियन जीआप कम से कम भारत सरकार के प्रकाशन विभाग की वेबसाइट पर जाकर इस किताब की जाँच कर सकते हैं कि मैंने जिस किताब की बात कही हैवह वाकई है भी या नहीं।
http://publicationsdivision.nic.in/
लीजिए सबूत भी 

http://publicationsdivision.nic.in/b_lang_index.asp#83
इस वेबपृष्ठ पर एस अक्षर से 19वें स्थान पर लिखा है।


http://publicationsdivision.nic.in/b_show.asp?id=426
उस किताब का पूरा पता भी ले लीजिए।

Shahidon Ke Khat
Author Binod Mishra
Subject Art, Culture and History
Language Hindi
Paper Binding (Rs.) 5 
Description
The booklet contains some heartstirring letters from the great martyrs Bhagat Singh, Sukhdev and others, who sacrificed their lives in our national struggle for independence. These letters were written to kith and kin and also to the British authorities. The reader will have an inspiring feeling of the patriotism, courage and conviction of these great martyrs by going through these letters. The compiler, Binod Mishra is a noted journalist.


http://publicationsdivision.nic.in/Hindi/380HindiBooks.pdf
पर हिन्दी विवरण भी देख लीजिए।

(यहाँ सवाल यह है कि अगर आपको मैं भगतसिंह का लिखा दिखा भी देता हूँ तो कल फिर लोग कहेंगे कि हम कैसे मानें इसे कि यह भगतसिंह का लिखा है? यानि अब हर घर में भगतसिंह का लिखा वह भी असली प्रति मोबाइल के एसएमएस की तरह भेजना होगा। कहिए आपका क्या खयाल है?)


2 टिप्‍पणियां:

  1. टिप्पणियों के माध्यम से दस्तावेजों के खुलासे अच्छे लगे मान गए आपको !!

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  2. आश्चर्य सा हुआ कि भगतसिंह के पत्र की प्रामाणिकता पर बह्स हुयी। तथ्य जानकर अच्छा लगा। क्रांतिकारी लोगों पर शाहजहांपुर के साहित्यकार सुधीर विद्यार्थी जी ने भी बहुत लिखा है।

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