सोमवार, 5 मार्च 2012

स्त्री और शब्द-2 (कविता)

स्त्री और शब्द कविता का पहला भाग यहाँ है। 


लुट जाती है इज्जत
होता है बलात्कार
होती है बीमारी
होता है इलाज
लड़ी जाती है लड़ाई
पर बनते हैं हथियार

किसान करता है खेती
तपती धूप और गर्मी में
दिन रात मेहनत कर
लेकिन खेती के बाद
पैदा होता है अन्न

हँसता रहता है महल
बेचारी रोती है झोंपड़ी

दिन रात एक करती है मशीनें
पर पैदा होता है सामान

जलती है आग
बनता है खाना
रोटी और सब्जी
बन जाते हैं भोजन

बड़ा होता है खाट
पर छोटा होते ही
बन जाता है खटिया

लड़ती है सेना
मरती है सेना
जीतते हैं राजा, प्रधानमंत्री आदि

हम कहते हैं
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमंते तत्र देवता:
प्राचीन काल में
ग्रंथ, उपनिषद, वेद
सूक्त, पुराण, शास्त्र
ईश्वर, विधाता
भाग्य, वरदान
सब तो थे पुल्लिंग।

रात दिन होती थी तपस्या
पर मिलता था वरदान।

सब मूल शब्द
क्यों होते हैं पुल्लिंग
ब्राह्मण से ब्राह्मणी
सुना है सब ने
लेकिन कभी सुना है
खेती से खेत
मास्टराइन से मास्टर?

संगीत में
गीत, नृत्य
गायन, वादन
सब के सब पुल्लिंग हैं।

सारी छोटी और कमजोर चीजें
स्त्रियों के लिए हैं
क्योंकि उन्हें नहीं गढ़ा है किसी स्त्री ने
उसे गढ़ा है पुरुष ने
पुल्लिंग शब्द ने।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छे बिंदु आपने उठाए हैं .काबिले गौर लम्बी विचार कविता है यह .होली मुबारक भाई साहब .

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  2. मूंछें तो स्‍त्रीलिंग है (शायद काका हाथरसी की कोई कविता भी थी ऐसी.)

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  3. सारी छोटी और कमजोर चीजें
    स्त्रियों के लिए हैं
    क्योंकि उन्हें नहीं गढ़ा है किसी स्त्री ने
    उसे गढ़ा है पुरुष ने
    पुल्लिंग शब्द ने।

    आपने सही पहचाना भाषा की यही सरचना है |

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  4. दोनों भाग पढ़ा।
    एक ही शब्द है -- अद्भुत!
    एक दम नए और अलग सोच से आपने विषय को प्रस्तुत किया है।

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  5. सुन्दर प्रस्तुति ||

    दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
    dineshkidillagi.blogspot.com
    होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
    कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।

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