स्त्री और शब्द कविता का पहला भाग यहाँ है।
लुट जाती है इज्जत लड़ी जाती है लड़ाई
किसान करता है खेतीदिन रात मेहनत कर
दिन रात एक करती है मशीनें
रोटी और सब्जी
बड़ा होता है खाट
प्राचीन काल मेंसब तो थे पुल्लिंग।
रात दिन होती थी तपस्या
सब मूल शब्दखेती से खेत
सब के सब पुल्लिंग हैं।
क्योंकि उन्हें नहीं गढ़ा है किसी स्त्री ने
लुट जाती है इज्जत
होता है बलात्कार
होती है बीमारी
होता है इलाज
पर बनते हैं हथियार
तपती धूप और गर्मी में
लेकिन खेती के बाद
पैदा होता है अन्न
हँसता रहता है महल
बेचारी रोती है झोंपड़ी
पर पैदा होता है सामान
जलती है आग
बनता है खाना
बन जाते हैं भोजन
पर छोटा होते ही
बन जाता है खटिया
लड़ती है सेना
मरती है सेना
जीतते हैं राजा, प्रधानमंत्री आदि
हम कहते हैं
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमंते तत्र देवता:”
ग्रंथ, उपनिषद, वेद
सूक्त, पुराण, शास्त्र
ईश्वर, विधाता
भाग्य, वरदान
पर मिलता था वरदान।
क्यों होते हैं पुल्लिंग
ब्राह्मण से ब्राह्मणी
सुना है सब ने
लेकिन कभी सुना है
मास्टराइन से मास्टर?
संगीत में
गीत, नृत्य
गायन, वादन
सारी छोटी और कमजोर चीजें
स्त्रियों के लिए हैं
उसे गढ़ा है पुरुष ने
पुल्लिंग शब्द ने।
बहुत अच्छे बिंदु आपने उठाए हैं .काबिले गौर लम्बी विचार कविता है यह .होली मुबारक भाई साहब .
जवाब देंहटाएंमूंछें तो स्त्रीलिंग है (शायद काका हाथरसी की कोई कविता भी थी ऐसी.)
जवाब देंहटाएंसारी छोटी और कमजोर चीजें
जवाब देंहटाएंस्त्रियों के लिए हैं
क्योंकि उन्हें नहीं गढ़ा है किसी स्त्री ने
उसे गढ़ा है पुरुष ने
पुल्लिंग शब्द ने।
आपने सही पहचाना भाषा की यही सरचना है |
दोनों भाग पढ़ा।
जवाब देंहटाएंएक ही शब्द है -- अद्भुत!
एक दम नए और अलग सोच से आपने विषय को प्रस्तुत किया है।
सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंदिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
सुन्दर!
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