गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

इसपर 'नेता' शब्द इतना नाराज हुआ कि भाग गया शब्दकोश से (कविता)


शीर्षकहीन कविताः 

नेता... 

इतनी बार गाली दी गयी इसे
कि शब्दकोश ने भी गालियाँ देते देते
एक परिशिष्ट जोड़ डाला शब्दकोश में। 

इसपर 'नेता' शब्द
इतना नाराज हुआ
कि भाग गया शब्दकोश से
और
जेट विमान की रफ्तार से
सीधे समुद्र में
जाकर डूब मरा... 

और अब 'नेता' शब्द ही नहीं है जीवित। 

इतिहास की किताबों में
कहीं कहीं मिल जाता है यह 'शब्द'... 

तुरत फुरत की कविता, जो कल किसी बात पर प्रतिक्रिया स्वरूप बन गयी... 

5 टिप्‍पणियां:

  1. चन्दन जी,
    मुझे इस तरह की प्रतिक्रियात्मक कवितायें बहुत भाती हैं... इसमें एक प्रवाह होता है... जो बहाए लिए चलता है और अपनी वैचारिक उर्मियों में दोलित करवाकर आनंद देता है.

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  2. प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  3. आशुकविता अच्छी लगी. आपका लौटना और भी अच्छा लगा. आभार.

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