मंगलवार, 31 जनवरी 2012

सिर्फ सॉरी शब्द कहना सही है ? ( फेसबुक से, भाग- 1)


बहुत सारे विचार दिमाग में लिखने को उकसाते हैं, लेकिन इधर नहीं लिखा कुछ। सोचा कि फेसबुक पर कई बार कुछ अच्छे विचार तो उतर जाते हैं ही या कई बार कुछ काम का भी लिख दिया जाता है, तो उसे सँजोकर यहाँ प्रस्तुत करने का खयाल आया। पहला भाग प्रस्तुत हैः


31 जनवरी 2012

2012 को रामानुजन की याद में भारत में राष्ट्रीय गणित वर्ष घोषित किया गया है।

इस अत्यंत प्रतिभाशाली और महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन, जिन्हें दुनिया के महानतम गणितज्ञों में शुमार किया जाता है, पर एक किताब आई, नाम था- ' मैन हू नेव(या न्यू) इनफिनिटी' किताब के लेखक थे राबर्ट कैनिगेल। कैनिगेल ने इस बहुप्रशंसित ग्रंथ को लिखने के लिए कुछ सप्ताह रामानुजन के जन्मस्थान में भी बिताये थे। यह किताब 1991 में अंग्रेजी में प्रकाशित हुई थी। 

सोमवार, 30 जनवरी 2012

क्या कहूँ उस देश को ( कविता)

यह संभवतः 30 जनवरी 2008 को लिखी कविता है। समय का जिक्र करना आदत-सी है। इसका यह अर्थ न लगाया जाये कि कोई ऐतिहासिक सामग्री प्रस्तुत कर रहा हूँ। इसके यह अंश मुझे भाषा की दृष्टि से बहुत पसंद हैं- 

बन रहे हैं शस्त्र ऐसे
नाश का भी नाश कर दें
आदमी की शक्तियों से
जहाँ भय, भयभीत!

अब पूरी कविता:

शनिवार, 28 जनवरी 2012

वसंत क्या है / गिरनेवाले पत्ते / तुम बताओ और ऋतुराज वसंत आया देखो (कविता)


किसी के आग्रह पर कविता लिखना उचित नहीं मालूम पड़ता। लेकिन यह गलती एक-दो बार कर ही गया हूँ। जून, 2005 में लिखी यह कविता उसी तरह की एक गलती का परिणाम है। वसंत ऋतु का आना-जाना पता नहीं कैसा होता है! बाद के दिनों में सनकी या लिखते जाने की आदत घटी तब एक हाइकु कविता वसंत ऋतु पर लिखी थी, पहले वह पढिए फिर 'ऋतुराज वसंत आया देखो' शीर्षक कविता पढिए। 

वह हाइकु कविता:

वसंत क्या है
गिरनेवाले पत्ते
तुम बताओ। 

अब 'ऋतुराज वसंत आया देखो' कविता:

ऋतुराज वसंत आया देखो।
सब के दुखों का अंत आया देखो।

बुधवार, 25 जनवरी 2012

आज छब्बीस जनवरी है (कविता)


एक सादा, बिलकुल साधारण-सी कविता जो 26 जनवरी को ही 2007 में लिखी गयी थी। 

आज सुबह साढ़े आठ बजे
मंत्रीजी की गाड़ी से
कुचल गया एक ग़रीब दौड़ता बच्चा
चारों तरफ़ मची अफ़रा-तफ़री है
क्योंकि आज छब्बीस जनवरी है। 

सोमवार, 23 जनवरी 2012

170 देशों में नोटों पर अंग्रेजी का हाल


इस साल का पहला लेख हाजिर है। व्यस्तताओं और स्वास्थ्य कारणों से इस महीने सक्रियता लगभग शून्य रही है। 

हाल ही में सोचा कि दुनिया के देशों में नोटों पर अंग्रेजी का कितना कब्जा है ? इसलिए लगभग 170 देशों के नोटों पर एक अध्ययन किया। निष्कर्ष वही सामने आया जो आता लेकिन अँखमुँदे विद्वानों से कुछ भी कहना बेकार सा लगता है। अंग्रेजी वाले देश जैसे कनाडा, अमेरिका, इंग्लैंड, जमैका, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रिका आदि की बात तो करनी ही नहीं क्योंकि इन देशों मे तो अंग्रेजी ही चलती है। आइए एक नजर डाल लेते हैं इस अध्ययन पर। लगभग 170 देशों के नोटों को देखने के लिए अन्तर्जाल और कुछ वेबसाइटों का सहयोग मिला, यह एक बड़ी बात थी। नोटों के नंबर तक कई देशों में अरबी आदि भाषाओं में देखने को मिले। उदाहरण के लिए यमन, इराक आदि देखे जा सकते हैं। कुछ देशों में मात्र बैंक के नाम अंग्रेजी में मिले तो कुछ में सिर्फ मुद्रा या राशि अंग्रेजी में लिखी मिली और सब कुछ गैर- अंग्रेजी में। वहीं सबसे ज्याद देश ऐसे थे, जहाँ अंग्रेजी की आवश्यकता नोट पर बिलकुल महसूस नहीं की गई और जैसा सोचता था, वैसा ही हुआ और ऐसे देश सबसे ज्यादा रहे। इनमें से 101 देश ऐसे हैं, जिनके नोटों पर अंग्रेजी बिलकुल ही इस्तेमाल नहीं की गयी थी यानी एक वाक्य तक अंग्रेजी का नहीं था। इनमें दुनिया के विकसित माने जाने वाले देशों में सबसे अधिक देश थे। उदाहरण के लिए जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्वीडेन, स्विटजरलैंड आदि।