(यह कहानी मूलतः तब लिखी गई थी जब इसे लिखने वाला पंद्रह साल का था। और अब आंशिक संशोधन के साथ पोस्ट की जा रही है।)
“ अब भी तुम किताबें ही लिखते रहोगे या हमारे लिए कुछ करोगे भी? हम भूख से मर रहे हैं और तुम हो कि बस, जब देखो कुछ-न-कुछ लिखते रहते हो। आखिर कब तक लिखोगे तुम? लिखने से क्या तुम्हारी ग़रीबी दूर हो जायेगी? तुम अपना समय लिखने में लगा रहे हो पर कोई लाभ तो हो नहीं रहा है। मेरी मानो तो तुम लिखना छोड़ दो।” ग़रीबी की मार असह्य होने पर लक्ष्मी ने कहा।