हाल की एक कविता जिसके कुछ भाव आजादी कविता से मिलते हैं...
दस रुपये में चार किताबें
बेच रहे थे बच्चे
उस दिन
रेलगाड़ी में
जिनकी उम्र दस साल भी नहीं थी।
"कैसा प्रदर्शन, क्या सिर्फ पुलिस की गालियाँ और मार खाने के लिए…हरगिज नहीं! इस तरह का कोई भी कदम मैं उस समय तक नहीं उठाऊंगा, जब तक मेरे पास एक अदद बंदूक न हो" - चे ग्वेरा