सोमवार, 18 जुलाई 2011

21वीं सदी का समय(कविता)

सात महीने पहले की एक कविता पोस्ट कर रहा हूँ। कुछ लोग सोच सकते हैं कि मैं पुराना माल ठेल रहा हूँ। लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि मेरे पास इन दिनों विचारों की कमी नहीं है। बस थोड़ी शान्ति और समय मिले तो प्रस्तुत करूंगा। तो लीजिए पढ़िए 2011 में 21वीं सदी की कविता।

बिल्ली ने कहा ।
दूध नहीं पिउंगी,
दूध में मिलावट है,
पानी मिलाया गया है उसमें
और वो भी, वो पानी
जिसमें पहले से मिलावट है ।

कल रात
काफी देर तक
गुनगुनाता रहा एक मच्छर
मैंने पूछा काटते क्यों नहीं ?
मच्छर ने जवाब दिया
अब नहीं काटूंगा कभी
खून में मिलावट है,
आदमी का खून
आदमी का नहीं लगता ।

चूहा भी बैठा रहता है
शांत
सिर्फ़ पतले प्लास्टिक से काम चलाता ।
किताबों को नहीं काटता, कुतरता
दाँतों से ।
उसकी शिकायत है
किताबों में लेखक नहीं,
सिर्फ़ कागज और स्याही दिखते हैं ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. ये क्या है ||
    कहाँ से मारा ||
    चोरी दिखती है ||

    बहुत खूब ||
    मजेदार ||
    सही चित्रण ||
    बधाई चन्दन जी ||
    आदरणीय --
    हा हा हा हा --

    जवाब देंहटाएं
  2. रविकर जी,
    चोरी कहने के पहले सबूत दीजिए। अपनी एक भी लिखी हुई बात की चोरी नहीं करता कभी। अगर कुछ लिया तो संदर्भ जरूर देता हूँ। खासकर कविता, कहानी और किसी भी रचना में चोरी का सवाल ही नहीं पैदा होता।

    वैसे आपके कहे का बुरा नहीं मानता।

    चोरी तो हर आदमी करता ही है, परीक्षा में भी। कहिए तो इस पर भी एक पूरी पोस्ट लिख दी जाय।

    जवाब देंहटाएं
  3. मैंने देखा है कि पहले देशी साबुन को चूहे शौक से खाते थे. अब चूहे इन्हें सूँघते तक नहीं. मिलावट काफी हो गई है. अच्छा व्यंग लिखा है.

    जवाब देंहटाएं
  4. साहित्‍य प्रमी चूहे को स्‍तरीय सामग्री उपलब्‍ध कराई जाय.

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय राहुल जी,

    अवश्य। कोशिश तो हो रही है और आप लोग भी करें वरना यही हाल 22वीं सदी में भी देखने को मिलेगा या इससे भी बुरा हो सकता है।

    जवाब देंहटाएं
  6. आपके लेखन ने इसे जानदार बना दिया है....

    जवाब देंहटाएं