नन्दी की पीठ का कूबड़
दामोदर धर्मानंद कोसाम्बी
(प्रोफेसर कोसम्बी द्वारा रचित बच्चों के लिए शायद यह एक मात्र कहानी है। यह कहानी उन्होंने अपने सहयोगी दिव्यभानुसिंह चावडा को, 1966 में , अपनी असामयिक मृत्यु से कुछ दिन पहले ही भेजी थी। यह कहानी किसी भी भाषा में पहली बार प्रकाशित हो रही है।)
(गाँव के वार्षिक मेले का अवसर है। उसमें जानवरों की खरीद-फरोख्त का अच्छा कारोबार होगा। गाँव के मुखिया का बेटा राम, सुबह-सुबह अपने नन्दी बैल को चराने ले जाता है। शाम को नन्दी जानवरों की जलूस की अगुवाई करेगा। जंगल के एक छोर पर तालाब है। धीरे-धीरे वहाँ बूढ़े पीपल के पेड़ के नीचे राम के बहुत से मित्र इकट्ठे हो जाते हैं। वे सभी एक सवाल का जवाब खोजने की कोशि श करते हैं - भारतीय बैलों के पीठ पर कूबड़ क्यों होता है?)