रविवार, 27 फ़रवरी 2011

प्रखंडों में क्लर्की के लिए मारामारी कर रहे हैं बिहारी इंजीनियर


पटना,

बी टेक, बी ई, बी एस सी( इंजीनियरिंग), एम टेक, एम एस सी( इंजीनियरिंग), एम सी ए आदि ये है उच्च डिग्रियाँ जिसे पाने के लिए एक लम्बे समय के साथ काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं। लेकिन इनकी हालत या यूं कहें कि बिहार में इंजीनियरों की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है एक छोटी सी बहाली से जो अभी वर्तमान में बिहार सरकार द्वारा की जा रही है। इस बारे में थोड़ी सी जानकारी मैं यहां पहुंचा रहा हूं। बिहार सरकार ने कुछ दिन पहले कांट्रैक्ट पर एक नियुक्ति की घोषणा की। पद का नाम है ब्लाक आई टी एसिस्टेंट। पूरे बिहार में 534 पद। सैलरी है 8000 रूपये।  फरवरी की 11 तारीख को अंतिम दिन था इसके लिए आनलाइन आवेदन करने का। परिणाम घोषित हो चुके हैं। 3 मार्च 2011 को 11 बजे बुलाया गया है काउंसेलिंग के लिए। मेरे पास सात जिलों के परिणाम हैं जिन्हें मैं आपके सामने रखूंगा। सारण, सीवान, मधुबनी, जहानाबाद, अरवल, नवादा और पटना के परिणाम पर जरा विचार करते हैं।

शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

मैट्रिक परीक्षा के कारण लोगों की मौलिक सुविधाएं छिनी


सारण, मढौरा। मैट्रिक की परीक्षा शुरु हो चुकी है। सारण जिले के मढौरा अनुमंडल का मैं रहनेवाला हूं। वहां प्रशासन ने कुछ ऐसी ज्यादती की है वहां आम आदमी की मौलिक सुविधाओं तक को जबरन रोक दिया गया है। वहां प्रशासन ने 10 बजे से लेकर 1 बजे तक यानि परीक्षा शुरु होने के समय से लेकर खत्म होने तक सभी दुकानों को बंद रखने का आदेश दिया है। और इसका पालन भी किया जा रहा है। अगर कोई दुकान इस अवधि में खुली पायी जाय तो 2000 रूपये जुर्माना भी लगा  दिया गया है। यहां तक कि दवा की दुकानें भी बंद रखी जा रही हैं। क्या यह उचित है? अगर प्रशासन परीक्षा में कदाचार को रोकने में असफल हो जाय तो यह तरीका बिल्कुल उचित नहीं माना जा सकता। दुकानें बंद रखने का कोई औचित्य नहीं है। अगर कोई आदमी बीमार पड़ जाय और उसे दवा की जरुरत है तो वह दवा कहां से खरीद पायेगा। इसकी चिंता प्रशासन को नहीं है।

बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

वरदान का फेर (नाट्य रुपांतरण, भाग -1)


यह एक छोटी सी नाटिका है। यह शायद 1978-80 के आस-पास बिहार में दसवें वर्ग के हिन्दी की किताब में पहले अध्याय के रूप में पढाई जाती थी लेकिन शायद कहानी के रूप में। जब मैं 15-16 साल का था तब (यानि 2004-2005) में मैंने इसे मंच पर खेलने लायक बनाने के लिए इसे थोड़े से परिवर्तन के साथ नाटिका में बदल दिया था। इसमें संस्कृत के कुछ श्लोक भी जोड़े गये थे। इन श्लोकों की रचना भी मैंने की थी। मैंने श्लोकों का अर्थ नाटिका में तो नहीं दिया था पर यहां दे रहा हूँ। तो पढ़िये और इसका लुत्फ उठाइये। कखग की जगह उस जिले का नाम और अबस की जगह उस अनुमण्डल का नाम दे देना चाहिए जहां यह नाटिका खेली जा रही हो। आगे कपालवस्तु नामक जगह आयी है। यह जगह कोई गांव है ऐसा मान लीजिए।

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

'शीला की जवानी’ बीच चौराहे पर गाइये और देख लीजिये क्रान्ति


मिस्र में होस्नी मुबारक को भगाया जा चुका है। ट्यूनिशिया की देखा देखी वहां के नागरिकों के दिमाग में कुछ खलबली मची, सेना ने भी साथ दिया और हो गया तीस सालों से चले आ रहे शासन का समापन। यमन और अल्जीरिया भी नकल करने में लगे हुए हैं। फिलहाल सरकार ने इन दोनों देशों के लोगों पर रोक लगा दी है। लोकतंत्र का शोर शुरु हो रहा है यानि एक और लोकतांत्रिक देश। वहां के जनाक्रोश का असर भारत में क्या पड़ सकता है, इसपर विचार विनिमय शुरु हो चुका है तब क्रान्ति को लेकर कुछ कहना अप्रासंगिक नहीं होगा।

शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

बॉलीवुड के ‘प्राण’



बॉलीवुड में छ: दशक से ज्यादा बिताने वालों में एक नाम है प्राण। आज ही के दिन सन 1920 में उनका जन्म हुआ था। मैंने उनकी ज्यादा फिल्में नहीं देखीं हैं। फिर भी लगभग 15-20 फिल्मों में मैंने उन्हें अभिनय करते देखा है। अमरीश पुरी अब तक के सबसे प्रसिद्ध विलेन माने जाते हैं हमारे हिन्दी सिनेमा में। पर एक दौर था जब प्राण बॉलीवुड के प्राण होते थे। खलनायकी के लिए प्राण फिल्मों में पहली पसंद होते थे।

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

डाक्टरों व शिक्षकों की संवैधानिक लूट खसोट


कौन बनते हैं डाक्टर और शिक्षक ?

विभिन्न प्रकार के सिस्टम्स पर अनुसंधान करने वाले विद्वानों के अनुसार, किसी भी कार्य या सिस्टम के तीन आउटपुट होते हैं- एक तंत्र (System), सेवा (Service) या फिर कोई उत्पाद (Product)। इस सिद्धांत के आधार पर फैक्ट्रियाँ, दुकानें आदि चीजें अंत में उत्पाद पैदा करती हैं (ये अलग बात है कि कभी-कभी उत्पाद भी एक पूरा का तंत्र होता है) या पैसा। प्रशासन एक तंत्र है और इसका अंतिम उद्देश्य सेवा है। इसका काम पैसा कमाना नहीं होता है। इसी तरह शिक्षा और स्वास्थ्य एक स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय या अस्पताल के रूप में सिस्टम बनकर सामने आते हैं। हमारे राज्य में ये माना जाता है कि पटना में दो ही लोग कमा रहे हैं, पहले शिक्षक या कोचिंग संस्थान और दूसरे डाक्टर। यही बात कमोबेश लगभग सभी शहरों के लिए भी है।

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

नीतीशम् नमामि का दौर

नीतीश सरकार के कुछ अभूतपूर्व कार्य


छात्राओं को प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने पर दस हजार रूपये देने के राजनीतिक फायदे

1) बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के कर्मचारियों को सुनहरा अवसर मिले जिससे वे नंबर बढाने के नाम पर खूब पैसा ऐंठ सकते हैं । इसका सबूत खोजना बहुत कठिन है क्योंकि कौन इतना मूर्ख है जिसका नंबर बढा और दस हजार रूपये मिलेंगे वो आपसे यह बात कहेगा । कर्मचारियों की बात तो छोड़ ही दें । उनका तो पेशा है और पेशे के साथ बेईमानी करना घोर अपराध है ।