tag:blogger.com,1999:blog-4603771006660912215.post4940624339160212030..comments2023-12-24T13:18:47.467+05:30Comments on भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी: मैं मूर्ख हूँ और अपने देश का बुरा चाहता हूँ(परिवर्धित संस्करण )चंदन कुमार मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-4603771006660912215.post-27878558891597266052011-07-05T23:52:59.048+05:302011-07-05T23:52:59.048+05:30@ है\हैं:
ठीक है बन्धु, ’हैं’ ही लिखा दिख रहा है। ...@ है\हैं:<br />ठीक है बन्धु, ’हैं’ ही लिखा दिख रहा है। व्याकरण विशारद तो मैं भी नहीं हूँ, आप के कथनानुसार आदरसूचक ही लिखा है तो ठीक ही लिखा होगा। अपनी तो खुद की भाषा ही बिगड़ी पड़ी है।<br />कमेंट का उद्देश्य यही था कि पहल अपनी तरफ़ से न हो। <br />असहमति से मुझे भी कभी दिक्कत नहीं होती, न जाहिर करने में और न स्वीकार करने में।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4603771006660912215.post-6992399478894391782011-07-05T20:19:11.180+05:302011-07-05T20:19:11.180+05:30आदरणीय संजय जी,
आपने अपने विचार यहाँ रखे इससे मुझे...आदरणीय संजय जी,<br />आपने अपने विचार यहाँ रखे इससे मुझे किसी तरह की आपत्ति नहीं है। हाँ, एक बात साफ करना चाहता हूँ कि 'इस सलिल ने जो पटना के ही हैं' लिखा है, इस बारे में। 'हैं' लिखा है जो आदरसूचक है। 'है' नहीं लिखा है, ध्यान से देखिए। और इससे पहले भी मैंने 'उन्होंने' यह संबोधन दिया है जो आदरसूचक ही है। मेरे हिसाब से समस्या नहीं है। हाँ 'इस' पर मतभेद हो सकता है। लेकिन मैंने अपनी हिन्दी की समझ से 'इन' नहीं लिखकर 'इस' लिखा है क्योंकि मुझे लगता है एकवचन के लिए कम से कम यहाँ पर इन नहीं लिखा जा सकता। हो सकता है कि मेरा व्याकर्ण का ज्ञान कम या गलत हो।<br /><br />बाकी आपकी बातों से मुझे कोई दिक्कत नहीं।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4603771006660912215.post-57716974219987368192011-07-05T19:54:53.555+05:302011-07-05T19:54:53.555+05:30श्रीमान चन्दन कुमार मिश्र जी,
सवाल करने का थोड़ा ब...श्रीमान चन्दन कुमार मिश्र जी,<br />सवाल करने का थोड़ा बहुत शौक मुझे भी रहा है, लेकिन मेरे सवाल आपके स्तर के नहीं होते, प्राय: निम्नस्तरीय ही होते हैं इसलिये ईमेल नहीं कर रहा और यहीं कमेंट कर रहा हूँ।<br /><br />कोई मुझे इस तरह से समझाने की कोशिश करे कि अमुक ब्लॉगर बहुत बड़ा ब्लॉगर है या ज्ञानी है तो मैं भी नहीं मानने वाला था, इसलिये आपको यह सलाह मैं भी नहीं दे रहा। बल्कि मैं खुद इस बड़े छोटे वाले वर्गीकरण के खिलाफ़ अपने तरीके से आवाज उठाता रहा हूँ, बेशक अपने अनगढ़ अंदाज में। मैं खुद अपने को बहुत तल्ख इंसान मानता हूँ, इसलिये जिससे बिगड़नी हो तो जल्दी बिगड़े, अपनी कोशिश भी यही रहती है। लेकिन इस पोस्ट के पहले पैरा में अपनी भाषा शैली देख लें - सहमति असहमति अपनी जगह पर रहे और अभिव्यक्ति का ढंग ठीक रहे तो बड़े बुजुर्ग उसे अच्छा ही बता गये हैं। ’इस सलिल ने जो पटना के ही है’ ये भाषा का क्या स्तर है?<br /><br />रही बात भगत सिंह पर विचार रखने की तो शहीद किसी एक की व्यक्तिगत पूँजी नहीं होते कि पेटेंट करा लिया, और जो आप कहेंगे या कोई और कहेगा वही शाश्वत सत्य हो गया। अपमान वाली बात हो तो उबलना स्वाभाविक है लेकिन विचार न मिलने पर ताने कसना या गलत तरीके से बोलना कहीं से ठीक नहीं है। <br /><br />आपने लिखा है कि आप ब्लॉग जगत में दस-पन्द्रह दिन से सक्रिय हैं, इस लिहाज से मैं थोड़ा सा पहले आ गया था सो बहुत से तमाशे देखे हैं और अब इनपर हँसी आती है। ऐसी पोस्ट्स(तथाकथित सार्थक बहस वाली) बहुधा मनोरंजन के लिये देख पढ़ लेते हैं, लेकिन यहाँ कमेंट करने की धृष्टता कर दी है। <br /><br />एक जगह पर आपका लिखा कुछ देखा था, हिंदी पट्टी में प्रचलित कुछ बात वगैरह - देश हिंदी पट्टी से इधर उधर भी है, कभी मौका लगा तो कुछ पंजाबी और हरियाणवी कहावतों, मुहावरों से भी परिचय करवाते हैं आपका। इसी बहाने मूड फ़्रेश हो जायेगा और देश की विविधता को जान लेंगे हम लोग:)<br /><br />इस कमेंट को बहुत ज्यादा सीरियसली लेने की जरूरत नहीं है क्योंकि मैं खुद बहुत सीरियस ब्लॉगर नहीं हूँ। हाँ, बनने बिगड़ने की अपने को भी कोई परवाह नहीं है क्योंकि यहाँ कोई किसी का आका नहीं है। <br /><br />शुभेच्छा स्वीकार करें।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4603771006660912215.post-65017992929075615812011-07-03T19:18:46.892+05:302011-07-03T19:18:46.892+05:30भगतसिंह के दस्तावेज़ों को नेट पर भी उपलब्ध कराए जान...भगतसिंह के दस्तावेज़ों को नेट पर भी उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है...<br />उन्होंने काफ़ी कुछ, ख़ुद कहा है...<br /><br />इसलिए ही भगतसिंह के विचारों से बचते हुए उन्हें भी, उनकी आम लोकप्रियता की वज़ह से सिर्फ़ एक पत्थर की मूर्ति का प्रतीक भर बना देना चाहते हैं...कुछ हितों को यही उचित लगता है...<br /><br />उनके विचारों की सीधी, आम प्रस्तुति की जरूरत है...रवि कुमारhttp://ravikumarswarnkar.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4603771006660912215.post-922655967217581572011-07-03T11:01:20.246+05:302011-07-03T11:01:20.246+05:30चंदन जी,
अच्छा किया आप ने उत्तर दे दिया। हालाँकि व...चंदन जी,<br />अच्छा किया आप ने उत्तर दे दिया। हालाँकि वहाँ जो कुछ हो रहा है उस का उत्तर देना जरूरी नहीं था। जो लोग अपने कुएँ में ही मस्त रहना चाहते हों उन्हें वहाँ से कौन बाहर निकाल सकता है?दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4603771006660912215.post-19619013971343988472011-07-03T08:56:08.549+05:302011-07-03T08:56:08.549+05:30ठीक है। अब तो परिवर्धित संस्करण लिख चुका हूँ।ठीक है। अब तो परिवर्धित संस्करण लिख चुका हूँ।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4603771006660912215.post-77732382954029371722011-07-03T08:53:57.580+05:302011-07-03T08:53:57.580+05:30'सार- सार को गही रहे, थोथा देय उड़ाय'.
@ ग...'सार- सार को गही रहे, थोथा देय उड़ाय'.<br />@ गुरु का स्वभाव सूप की भाँति होता है... जो सार-सार (उपयोगी) को रखकर थोथी (हल्की और निरर्थक) वस्तुओं को उड़ा (बाहर) कर देता है.<br />शिष्य में आचरण डालते हुए वह व्यर्थ बातों को दरकिनार कर देता है. ........ केवल यही आशय था. <br /><br />अपग्रेड को हम प्रोन्नत कह सकते हैं... फिलहाल यही सूझ रहा है. यदि कोई अन्य शब्द दिमाग में आया तो अवश्य कहूँगा.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4603771006660912215.post-23999639098813389472011-07-03T08:51:45.080+05:302011-07-03T08:51:45.080+05:30dohe ka arth ki --
mukhy ansho ko svikaar kar liy...dohe ka arth ki --<br /><br />mukhy ansho ko svikaar kar liya aatmsaat kar liya aur jo faaltu chijen thi unko chhod diya, ssar ko svikaar karne vaale hain aap.<br /><br />बहुत-बहुत आभार महोदय ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4603771006660912215.post-65979428920457284582011-07-03T08:09:25.008+05:302011-07-03T08:09:25.008+05:30आदरणीय प्रतुल जी,
आप यहाँ आए और अपनी बात कही। अच्...आदरणीय प्रतुल जी,<br /><br />आप यहाँ आए और अपनी बात कही। अच्छा लगा। लेकिन दोहे का अर्थ जरा विस्तार से बताएँ, मैं समझने में असमर्थ हूँ। <br /><br />और हाँ, इस पोस्ट को कुछ मिनटों में अपग्रेड(हिन्दी शब्द सूझ नहीं रहा) करने वाला हूँ। क्योंकि अभी ध्यान से देखा तो पता चला एक दो लोग ऐसे हैं जिनकी बार मैंने ध्यान से नहीं देखी थी।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4603771006660912215.post-1754332266130423442011-07-03T08:02:54.140+05:302011-07-03T08:02:54.140+05:30'सार- सार को गही रहे, थोथा देय उड़ाय'........'सार- सार को गही रहे, थोथा देय उड़ाय'...... उक्ति को इस तरह पढ़ा जाये.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4603771006660912215.post-90727519254141192632011-07-03T07:59:45.888+05:302011-07-03T07:59:45.888+05:30आदरणीय चन्दन जी,
आपके विचार सुलझे हैं... आपके प्रश...आदरणीय चन्दन जी,<br />आपके विचार सुलझे हैं... आपके प्रश्न जरूर पुनर्चिन्तन को बाध्य करते हैं. <br />आपका अंदाज कटुक्ति करने वाला अवश्य है किन्तु आपकी संवाद शैली सभ्य है.<br />मुझे तो आपका व्यक्तित्व 'थार-थार को गही रहे, थोथा देय उड़ाय' ... जैसा प्रतीत होता है.<br /><br />इतना ही कहूँगा... कुछ व्यक्ति जिन्हें हम भावुक कहते हैं... वे अतिवादी मानसिकता के हो सकते हैं. वे आपको मूर्ख या देशद्रोही तक कह देंगे ... केवल इसलिये कि वे अंध 'राष्ट्रभक्ति' करते हैं. उन्हें हर वो व्यक्ति बुरा ही लगेगा जो उनके सुर में सुर मिलाता नज़र नहीं आयेगा. <br />.<br />.<br />.<br />मैं जानता हूँ... कुछ व्यक्ति विपरीत बोलकर या विपरीत बातें करके सीधी बातों की (मतलब सत्य की) स्थापना करते हैं. <br />मुझे मेरे एक प्रिय प्रोफ़ेसर (गोपीनाथ प्रधान) मिले .... उन्होंने कहा मैं बाबा रामदेव और कपिल सिब्बल में ... कपिल सिब्बल को पसंद करता हूँ. <br />...... मैंने कहा मैं जानता हूँ ...... आप इसलिये ऐसा कहते हैं कि आप मुझे आंदोलित कर मुझसे अभी काफी कुछ सुनने की फिराक में हैं. <br /><br />चन्दन जी, आप जैसे उत्प्रेरक व्यक्ति न हों तो विवादास्पद विषयों पर पुनर्चिन्तन संभव न हो पाये. <br />सच्चे मायनों आप गुरु की भूमिका निभाते हैं.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.com